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शाम को फिर पीठ पर बोझा ले उठ खड़ा हुआ होगा । मजदूर है पर मजबूर नहीं....
शीश पर जा बैठ, रौंदी धूल कहे पग से देख निज औकात...
काश की ये जीवन भी एक मौसम की तरह होता, कभी धूप ,कभी छांव तो कभी बादल बन जाता....
नम्रता, वार्ड बॉय की सहायता से ऑपरेशन रूम से पेशेंट को वार्ड में शिफ्ट कर रही ...
जंगल में भीषण गर्मी पड़ रही थी। नदियों, झरनों, तालाबों, कुओं आदि में पानी लगातार ...
अभी-अभी श्याम अपने मित्र रवि की चिता को अग्नि देकर आया था। रवि उसका बचपन का मित्...
दुनियां की नजरों में एक सशक्त महिला होते हुए भी अपने भीतर के अंतर्द्वंद से बाहर ...