साहित्य

गीत: श्रमिक दिवस- हूं मजदूर, हिम्मत भरपूर, न मजबूर...

श्रम का स्वेद  कम नहीं मोती से कीमत आंकें...

गीत- मजदूर दिवस : आज तो दोपहर भी सुनसान सी लगी थी, तपती...

शाम को फिर पीठ पर बोझा ले   उठ खड़ा हुआ  होगा ।    मजदूर है पर मजबूर नहीं....

गीत: पूर्णिका- बंद है खिड़की-हवा में बात, कर रहा अपनत्...

शीश पर जा बैठ, रौंदी धूल कहे पग से देख निज औकात...

गीत- मन: काश की ये जीवन भी एक मौसम की तरह होता.... 

काश की ये जीवन भी एक मौसम की तरह होता, कभी धूप ,कभी छांव  तो कभी बादल बन जाता....

लघुकथा: मरे को क्या मारना...

नम्रता,  वार्ड बॉय की सहायता से ऑपरेशन रूम से  पेशेंट को वार्ड में शिफ्ट कर रही ...

लघुकथा: अँधा बाँटे रेवड़ी...

जंगल में भीषण गर्मी पड़ रही थी। नदियों, झरनों, तालाबों, कुओं आदि में पानी लगातार ...

लघुकथा: उत्तराधिकारी… 

अभी-अभी श्याम अपने मित्र रवि की चिता को अग्नि देकर आया था। रवि उसका बचपन का मित्...

कहानी: कर्म- वत्सला के भीतर कई दिनों से लगातार उथल पुथल...

दुनियां की नजरों में एक सशक्त महिला होते हुए भी अपने भीतर के अंतर्द्वंद से बाहर ...

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