1962 के चीन युद्ध में मां के गहने दान करने की भावुक याद, आनंद महिंद्रा ने पूछा- क्या आज वैसी देशभक्ति संभव है।
महिंद्रा ग्रुप के चेयरमैन आनंद महिंद्रा ने सोशल मीडिया पर एक पुरानी याद साझा की है जो देशभक्ति की मिसाल बन गई है। उन्होंने बताया कि 1962 के भारत-चीन युद्ध के दौरान उनकी मां ने अपने
महिंद्रा ग्रुप के चेयरमैन आनंद महिंद्रा ने सोशल मीडिया पर एक पुरानी याद साझा की है जो देशभक्ति की मिसाल बन गई है। उन्होंने बताया कि 1962 के भारत-चीन युद्ध के दौरान उनकी मां ने अपने चूड़ियां और गहने दान कर दिए थे। यह बात उन्होंने एक आंकड़े पर प्रतिक्रिया देते हुए कही जो भारतीय महिलाओं के पास सोने के भंडार को दर्शाता है। आनंद महिंद्रा ने सोचा कि इतना सोना होने के बावजूद क्या आज के समय में वैसी ही भावना से दान संभव है। यह पोस्ट सोशल मीडिया पर वायरल हो गई और लोगों ने देशभक्ति की पुरानी कहानियों को याद किया।
आनंद महिंद्रा का यह पोस्ट 23 अक्टूबर 2025 को एक्स पर आया। उन्होंने एक अन्य यूजर के पोस्ट का जवाब दिया जिसमें कहा गया था कि भारतीय महिलाओं के पास 25 हजार 488 टन सोना है। यह अमेरिका, जर्मनी, इटली, फ्रांस, रूस, चीन और स्विट्जरलैंड जैसे दस देशों के सोने से ज्यादा है। आनंद ने इसे प्रभावशाली आंकड़ा बताया और लिखा कि इससे उन्हें बचपन की एक याद ताजा हो गई। वह तब सात साल के थे। मुंबई में सड़क पर अपनी मां के साथ खड़े थे। तभी सरकारी ट्रक गुजरे जिनमें से मेगाफोन से अपील हो रही थी कि देश की रक्षा के लिए गहने और सोना दान करें। आनंद ने देखा कि उनकी मां चुपचाप अपने कुछ सोने के चूड़ियां और हार निकालकर एक कपड़े के थैले में रखा। फिर उसे ट्रक पर खड़े स्वयंसेवकों को सौंप दिया। आनंद ने लिखा कि वह दृश्य आज भी आंखों के सामने आ जाता है। उन्होंने पूछा कि क्या आज के दौर में इतने बड़े पैमाने पर स्वैच्छिक दान, उत्साह और विश्वास से भरा हुआ संभव है। यह याद उन्हें याद दिलाती है कि किसी देश की मजबूती सिर्फ नीतियों पर नहीं बल्कि लोगों की सामूहिक इच्छाशक्ति पर टिकी होती है।
यह पोस्ट लोगों को भावुक कर गया। कई यूजर्स ने अपनी दादी-नानी की कहानियां साझा कीं। कुछ ने कहा कि आज भी जरूरत पड़े तो वैसा ही होगा। आनंद महिंद्रा का यह बयान न सिर्फ व्यक्तिगत है बल्कि पूरे देश की उस भावना को छूता है जब लोग नेहरू सरकार के आह्वान पर एकजुट हो गए थे। 1962 का भारत-चीन युद्ध भारत के इतिहास का दुखद अध्याय है। अक्टूबर से नवंबर तक चला यह युद्ध भारत के लिए अप्रत्याशित था। चीन ने अचानक हमला कर दिया और कई क्षेत्रों पर कब्जा कर लिया। भारत की सेना को हार का सामना करना पड़ा। इस संकट में प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने 28 अक्टूबर 1962 को रेडियो पर अपील की। उन्होंने नेशनल डिफेंस फंड बनाया और लोगों से आर्थिक मदद मांगी। खास तौर पर महिलाओं से सोना और गहने दान करने को कहा। नेहरू ने कहा कि यह देश की रक्षा के लिए जरूरी है।
इस अपील का असर जबरदस्त रहा। पूरे देश में स्वयंसेवक घर-घर गए। सड़कों पर ट्रक चलाए गए जहां लोग अपने गहने जमा करते थे। आंकड़ों के मुताबिक कुल 22 करोड़ रुपये की राशि इकट्ठी हुई जो आज के हिसाब से हजारों करोड़ के बराबर है। इसमें सोने और चांदी के गहनों की मात्रा हजारों किलोग्राम थी। पंजाब ने सबसे ज्यादा योगदान दिया। वहां 252 किलोग्राम सोना दान हुआ जबकि बाकी भारत से सिर्फ 5.37 किलोग्राम। यह आंकड़ा सोशल मीडिया पर वायरल हो गया और आनंद महिंद्रा ने भी इसे अपने पोस्ट में उद्धृत किया। राजस्थान के अजमेर शरीफ दरगाह ने भी 2 किलोग्राम सोना दान किया। इसके अलावा एक लाख रुपये के डिफेंस सेविंग सर्टिफिकेट खरीदे। तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने भी अपील की। कई राजघरानों और अमीर परिवारों ने बड़ी मात्रा में दान दिया।
इंदिरा गांधी ने भी इसमें हिस्सा लिया। हाल ही में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने एक बहस में इसका जिक्र किया। उन्होंने कहा कि 1962 युद्ध में इंदिरा ने अपने गहने दान कर दिए थे। पंडित मोतीलाल नेहरू और जवाहरलाल नेहरू ने स्वतंत्रता संग्राम के लिए अपना घर दान किया था। यह परंपरा नेहरू परिवार की थी। आनंद महिंद्रा की मां इंदिरा महिंद्रा भी इसी भावना की मिसाल हैं। महिंद्रा परिवार उद्योगपति था लेकिन उन्होंने बिना हिचक दान किया। आनंद ने बताया कि सड़क पर खड़े होकर देखना और मां का चुपचाप कदम उठाना आज भी प्रेरणा देता है। स्वयंसेवकों पर पूरा विश्वास था। कोई रसीद या फॉर्म नहीं भरना पड़ता था। लोग तालियां बजाते थे। यह उत्साह देशव्यापी था।
1962 की यह मुहिम न सिर्फ आर्थिक मदद थी बल्कि मनोबल बढ़ाने वाली भी। सेना को हथियार खरीदने के लिए पैसा मिला। विदेशी मदद भी आई लेकिन घरेलू योगदान ने देश को एकजुट किया। नेहरू की अपील रेडियो पर सुनकर लाखों महिलाएं आगे आईं। गांवों से लेकर शहरों तक गहने जमा हुए। सोना पिघलाकर बार बनाए गए जो विदेश बेचे गए। इससे विदेशी मुद्रा मिली। युद्ध खत्म होने के बाद फंड का हिसाब दिया गया। ज्यादातर पैसा सेना के लिए इस्तेमाल हुआ। यह अभियान भारत की एकता का प्रतीक बना। इतिहासकार कहते हैं कि इससे महिलाओं की भूमिका उभरी। वे घर की धुरी हैं और देश की भी।
आज के संदर्भ में आनंद महिंद्रा का सवाल गहरा है। भारतीय महिलाओं के पास दुनिया का 11 प्रतिशत सोना है। विश्व सोने परिषद के आंकड़ों के मुताबिक यह 25 हजार टन से ज्यादा है। यह आर्थिक ताकत दिखाता है। लेकिन क्या संकट में इसे दान करने की भावना बची है। कुछ लोग कहते हैं कि आज डिजिटल युग है। दान ऑनलाइन हो सकता है। लेकिन 1962 का वह स्पर्श और विश्वास कहां। कोविड महामारी में लोगों ने दान दिया लेकिन वैसा पैमाना नहीं। आनंद का पोस्ट बहस छेड़ रहा है। कुछ यूजर्स ने कहा कि जरूरत पड़ेगी तो फिर से होगा। युवा पीढ़ी सोशल मीडिया से जागरूक है। लेकिन भरोसे की कमी है। सरकारी योजनाओं में पारदर्शिता चाहिए।
यह पोस्ट महिंद्रा की मानवीय छवि को मजबूत करता है। आनंद अक्सर सोशल मीडिया पर विचार साझा करते हैं। वे उद्योगपति हैं लेकिन देशभक्ति पर खुलकर बोलते हैं। 1962 की याद से वे कहते हैं कि नीतियां महत्वपूर्ण हैं लेकिन लोगों का मनोबल ज्यादा। भारत आज मजबूत अर्थव्यवस्था वाला देश है। लेकिन सीमाओं पर तनाव बरकरार है। चीन के साथ संबंध जटिल हैं। लद्दाख में गतिरोध है। ऐसे में पुरानी कहानियां प्रेरणा देती हैं। आनंद ने लिखा कि पंजाब का दान प्रेरणादायक है। बाकी देश ने कम दिया लेकिन कुल योगदान बड़ा था।
इस घटना से 1965 के पाकिस्तान युद्ध की भी याद आती है। तब हैदराबाद के नवाब मीर उस्मान अली खान ने 425 किलोग्राम सोना निवेश किया। अफवाह थी कि 5000 किलोग्राम दान किया लेकिन वास्तविकता कम थी। फिर भी योगदान सराहनीय। 1971 के बांग्लादेश युद्ध में भी दान अभियान चले। लेकिन 1962 का सबसे भावुक था क्योंकि हार का दर्द था। नेहरू ने कहा था कि यह अंतिम विकल्प है। महिलाओं ने जवाब दिया। आनंद की मां जैसी हजारों महिलाएं थीं।
आज सोना निवेश का साधन है। लोग इसे बेचने से हिचकते हैं। लेकिन संकट में भावना जागती है। यूक्रेन युद्ध में यूरोपीय देशों ने सोना बेचा। भारत को भी सीखना चाहिए। आनंद का सवाल समयोचित है। सरकार को पारदर्शी फंड बनाना चाहिए। लोग दान करें तो विश्वास हो। युवाओं को पुरानी कहानियां सुनानी चाहिए। स्कूलों में 1962 की पढ़ाई हो। इससे देशभक्ति बढ़ेगी।
आनंद महिंद्रा का यह बयान उद्योग और समाज को जोड़ता है। महिंद्रा ग्रुप ऑटोमोबाइल से लेकर कृषि तक फैला है। लेकिन आनंद व्यक्तिगत कहानियां साझा कर प्रेरित करते हैं। उनका पोस्ट हजारों लाइक्स और शेयर मिले। लोग कमेंट में अपनी यादें बता रहे हैं। एक यूजर ने लिखा कि उनकी दादी ने भी चूड़ियां दीं। दूसरा बोला कि आज दान तो करते हैं लेकिन गहने नहीं। यह बहस जारी है।
1962 की वह भावना आज भी जीवित है। आनंद ने सही कहा कि देश की ताकत लोगों में है। संकट आएगा तो एकजुट होंगे। लेकिन तैयारी अब करनी है। जागरूकता फैलानी है। सोने का भंडार आर्थिक सुरक्षा है लेकिन भावना से बड़ा कुछ नहीं। आनंद की मां की तरह चुपचाप दान करने वाली महिलाएं देश की असली शक्ति हैं। यह याद हमें सिखाती है कि इतिहास दोहराना नहीं चाहिए लेकिन उससे सीखना जरूरी है।
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