लघुकथा: मरे को क्या मारना...
नम्रता, वार्ड बॉय की सहायता से ऑपरेशन रूम से पेशेंट को वार्ड में शिफ्ट कर रही थी, एक्सीडेंट केस था।उसे बेड पर शिफ्ट करते समय....

लघुकथा
लेखिका- सुनीता मिश्रा, भोपाल
नम्रता, वार्ड बॉय की सहायता से ऑपरेशन रूम से पेशेंट को वार्ड में शिफ्ट कर रही थी, एक्सीडेंट केस था।उसे बेड पर शिफ्ट करते समय उसने देखा कि पेशेंट के दोनों पैर घुटनों से कटे हुए, चेहरा पूरा पट्टीयों से बँधा हुआ था।
ख़ैर ये तो हॉस्पिटल के कर्मचारियों के लिए रोजमर्रा की घटनाएं हैं।वह रात भर पेशेंट को समय पर दवा देती और इंजेक्शन लगाती रही।
आज़ डॉ के आदेशानुसार, पेशेंट के चेहरे से वह जैसे-जैसे पट्टीयाँ हटाती उसका चेहरा कठोर होता गया, हाथ काँपने लगे।
पेशेंट को अब तक होश नहीं आया था।
दो घंटे बाद एक इंजेक्शन लगाने का आदेश देकर डॉ चले गए।
वह वाशरूम गई अपना चेहरा आईने में कुछ पल तक देखती रही ------एसिड से जले दागों पर हाथ फेरा।
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अब जीवन रक्षक-दवा से भरी सिरिंज उसके हाथ में थी, अपना फ़र्ज निभाए या मरने के लिए छोड़ दे ---- उसने पेशेंट को देखा, दोनों पैर कटे, एक हाथ लटका हुआ, एक आँख अंदर धंसी हुई, चेहरे पर सिले गए गहरे घाव,मुँह में दस- बारह टूटे दाँत, ---अब मरे को क्या मारना ।
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