गीत: पूर्णिका- बंद है खिड़की-हवा में बात, कर रहा अपनत्व छिपकर घात... ।
शीश पर जा बैठ, रौंदी धूल कहे पग से देख निज औकात...

आचार्य संजीव वर्मा सलिल
जबलपुर
पूर्णिका
.
बंद है खिड़की-हवा में बात
कर रहा अपनत्व छिपकर घात
.
हुए हैं लायक बहुत ही पूत
विवश वृद्धाश्रम पड़े जा तात
.
शीश पर जा बैठ, रौंदी धूल
कहे पग से देख निज औकात
.
उषा के पीछे पड़ा है सूर्य
प्रात भय से पीत झड़ता पात
.
ठठाता बुलडोजरों को सौंप
देश का निजाम लीडर मात
.
आँख से ले आँख आँखें फेर
किस तरह हों बेहतर हालात
.
साँकलें जा रूठ द्वारों से
न्योततीं तस्करों की बारात
.
कलमकारों ने कलम कर कलम
भेंट की सरकार को सौगात
.
पसेरी में बिक रहा साहित्य
तुल रहे हैं टकों में जज़्बात।
What's Your Reaction?






