गीत- मजदूर दिवस : आज तो दोपहर भी सुनसान सी लगी थी, तपती सड़कें .... ।
शाम को फिर पीठ पर बोझा ले उठ खड़ा हुआ होगा । मजदूर है पर मजबूर नहीं....

रचना- खंजन सिन्हा
मजदूर दिवस
आज तो दोपहर भी सुनसान सी लगी थी
तपती सड़कें विरान सी लगी थी ।
न कोई चहल पहल थी
शायद आज कुछ पल के लिए
मजदूर आराम कर रहा होगा
या मजदूर दिवस की रैली में गया होगा।
शाम को फिर पीठ पर बोझा ले
उठ खड़ा हुआ होगा ।
मजदूर है पर मजबूर नहीं
कि हमेशा बोझ तले दबा हो।
अपनी क्षमता से अधिक न दबना प्यारे
जितना दबोगे उतना लोग दबाऐगे।
कुछ समय दूसरे के बोझ से न दबो
अपनी मेहनत से भूख मिटाते हो
फिर क्यो दूसरों से दबते हो ।
मजदूर हैं
मज़बूत हैं
पर मजबूर नहीं ।
खून पसीना बहाकर मेहनत करते हैं
स्वाभिमान से सिर उठा जीते हैं।
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