चेन्नई: Cooum नदी पर फैला जहरीला झाग, सेंबरंबक्कम झील के अतिप्रवाह ने बढ़ाई चिंता।
चेन्नई शहर की जीवनरेखा मानी जाने वाली Cooum नदी एक बार फिर प्रदूषण की भेंट चढ़ गई है। उत्तर पूर्वी मानसून के दौरान भारी बारिश से सेंबरंबक्कम झील का जलस्तर बढ़ गया और अतिरिक्त
चेन्नई शहर की जीवनरेखा मानी जाने वाली Cooum नदी एक बार फिर प्रदूषण की भेंट चढ़ गई है। उत्तर पूर्वी मानसून के दौरान भारी बारिश से सेंबरंबक्कम झील का जलस्तर बढ़ गया और अतिरिक्त पानी को नदी में छोड़ दिया गया। इससे नदी का प्रदूषित पानी समुद्र में पहुंचा और पट्टिनापक्कम से श्रीनिवासपुरम तक करीब डेढ़ किलोमीटर लंबे तट पर सफेद जहरीला झाग फैल गया। यह झाग फॉस्फेट और अन्य रासायनिक कचरे से बना है, जो स्वास्थ्य के लिए खतरनाक साबित हो रहा है। स्थानीय मछुआरों की आजीविका पर भी इसका बुरा असर पड़ रहा है। यह घटना हर साल मानसून में सेंबरंबक्कम झील के साथ होने वाली समस्या की याद दिलाती है, जहां प्रदूषण और अतिप्रवाह मिलकर पर्यावरणीय संकट पैदा करते हैं।
घटना 22 अक्टूबर 2025 की है। चेन्नई में पिछले कुछ दिनों से हो रही मूसलाधार बारिश ने शहर के जलाशयों को भर दिया। सेंबरंबक्कम झील, जो चेन्नई की पेयजल आपूर्ति का प्रमुख स्रोत है, पूरी क्षमता के करीब पहुंच गई। इस झील की कुल क्षमता 3,645 मिलियन क्यूबिक फीट है और ऊंचाई 24 फीट तक है। कांचीपुरम क्षेत्र में लगातार पानी आने से जलस्तर तेजी से बढ़ा। जल संसाधन विभाग ने अतिरिक्त पानी को Cooum नदी में छोड़ना शुरू कर दिया। लेकिन नदी पहले से ही सीवेज, औद्योगिक कचरे और घरेलू गंदगी से भरी हुई है। इससे पानी का मिश्रण समुद्र तट पर पहुंचा और तेज हवाओं व समुद्री लहरों के चक्रण से सफेद झाग बन गया। यह झाग पट्टिनापक्कम बीच पर फैल गया, जहां सैकड़ों मछुआरे रोजगार के लिए आते हैं।
तमिलनाडु प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अधिकारियों ने तुरंत जांच शुरू की। उनके परीक्षण में पता चला कि झाग का मुख्य कारण फॉस्फेट की अधिक मात्रा है। बोर्ड के अनुसार, पीएच मान और घुलित ऑक्सीजन सामान्य सीमा में हैं, लेकिन फॉस्फेट का स्तर खतरनाक रूप से ऊंचा है। राष्ट्रीय तटीय अनुसंधान केंद्र के डेटा से भी यही पुष्टि हुई। यह फॉस्फेट नदी में बहने वाले अनुपचारित सीवेज से आता है, जिसमें फॉस्फोरस युक्त डिटर्जेंट और रासायनिक अपशिष्ट शामिल हैं। चेन्नई के अडयार बेसिन में भारी बारिश ने नदी के प्रवाह को तेज कर दिया, जिससे यह झाग तट पर पहुंचा। स्थानीय मछुआरे बताते हैं कि इससे मछलियां मर रही हैं और समुद्र का पानी दूषित हो गया है। करीब 500 से अधिक परिवारों की आजीविका पर संकट मंडरा रहा है। वे कहते हैं कि हवा की दिशा बदलने पर यह झाग और फैल जाता है, जिससे सांस लेने में तकलीफ होती है।
Cooum नदी की लंबाई करीब 72 किलोमीटर है, जिसमें से 32 किलोमीटर चेन्नई शहर से गुजरती है। यह तिरुवल्लुर जिले के एक गांव से निकलकर बंगाल की खाड़ी में गिरती है। कभी इसे दक्षिण भारत का टेम्स कहा जाता था, लेकिन अब यह शहर का बदबूदार कलंक बन चुकी है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की 2022 की रिपोर्ट के अनुसार, नदी का सबसे प्रदूषित हिस्सा अवादी से सत्य नगर तक है, जहां जैविक ऑक्सीजन मांग यानी बीओडी 345 मिलीग्राम प्रति लीटर है। यह देश की 603 नदियों में सबसे ऊंचा स्तर है। सामान्य सीमा 3 मिलीग्राम प्रति लीटर से कहीं अधिक है। इससे नदी में घुलित ऑक्सीजन शून्य हो जाती है और कोई भी जीवित प्राणी जीवित नहीं रह पाता। तमिलनाडु प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने 2023 में अडयार, Cooum और बकिंघम नहर को मृत घोषित कर दिया था।
प्रदूषण के स्रोत कई हैं। शहर में 130 से अधिक सीवेज आउटफॉल सीधे नदी में गिरते हैं। अमीनजिकराई से नंगंबक्कम तक अधिकांश आउटफॉल इसी इलाके में हैं। मादुरावयल जैसे क्षेत्रों में प्रतिदिन 7 टन से अधिक ठोस कचरा नदी में फेंका जाता है। ऊपरी हिस्से में सिंचाई के लिए अत्यधिक पानी निकासी, तटबंधों पर अतिक्रमण और मुंह पर रेत का जमाव इसके प्रवाह को रोकता है। औद्योगिक इकाइयां, विशेषकर कपड़ा उद्योग से निकलने वाले नॉनिलफेनॉल जैसे हार्मोन बिगाड़ने वाले रसायन नदी को और जहरीला बना रहे हैं। एक हालिया अध्ययन में Cooum के सतह के पानी में नॉनिलफेनॉल 70 माइक्रोग्राम प्रति लीटर पाया गया, जो मानव स्वास्थ्य और वन्यजीवों के लिए खतरा है। यह रसायन कपड़ा प्रसंस्करण में इस्तेमाल होता है और मछलियों में प्रजनन क्षमता कम कर देता है।
सेंबरंबक्कम झील का इस घटना से सीधा संबंध है। यह झील हर मानसून में अतिप्रवाह की समस्या से जूझती है। 2024 में दिसंबर में इसका जलस्तर 21.19 फीट तक पहुंच गया था, जिससे निचले इलाकों में बाढ़ का खतरा पैदा हो गया। तमिलनाडु ने इस सीजन में औसत से 14 प्रतिशत अधिक बारिश रिकॉर्ड की, जो 393 मिलीमीटर के बजाय 447 मिलीमीटर हुई। झील चेन्नई की पेयजल आपूर्ति का आधा हिस्सा प्रदान करती है, लेकिन प्रदूषण के कारण इसका पानी भी संदिग्ध हो रहा है। हर साल मानसून में झील का अतिप्रवाह Cooum और अडयार नदियों में मिल जाता है, जिससे प्रदूषण फैलता है। 2015 की चेन्नई बाढ़ के बाद एक अध्ययन में पाया गया कि बाढ़ ने नदी के तलछट में पीएफएएस जैसे स्थायी रसायनों को और बढ़ा दिया। झील का डिसिल्टिंग कार्य 200 वर्षों बाद शुरू हुआ है, लेकिन मानसून में यह रुक जाता है।
सरकार ने नदियों की सफाई के लिए कई प्रयास किए हैं। 2010 में चेन्नई नदी जल प्राधिकरण का गठन हुआ, जिसने सिंगापुर से तकनीकी सहायता ली। विश्व बैंक ने Cooum बहाली के लिए 224.1 मिलियन रुपये दिए। चेन्नई नदियां बहाली ट्रस्ट ने अतिक्रमण हटाने और सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट लगाने का काम शुरू किया। लेकिन प्रगति धीमी है। चार मॉड्यूलर एसटीपी अभी तक काम नहीं कर रहे। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने 2014 में चेन्नई निगम, प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और लोक निर्माण विभाग को सख्त कार्रवाई का आदेश दिया था। फिर भी, सीवेज का 80 प्रतिशत अनुपचारित ही नदी में गिर रहा है। हाल ही में झाग की घटना पर अधिकारियों ने एंटी-फोमिंग रसायन छिड़कने का काम शुरू किया। मछुआरों को अस्थायी सहायता देने का वादा किया गया है।
पर्यावरण विशेषज्ञ कहते हैं कि यह समस्या जागरूकता की कमी से उपजी है। डॉ. जयश्री वेंकटेशन, केयर अर्थ एनजीओ की संस्थापक, बताती हैं कि निजी कंपनियां ही नहीं, सरकारी एजेंसियां भी जिम्मेदार हैं। मछली विभाग का कहना है कि पूर्ण डिसिल्टिंग, कचरा रोकथाम और सीवेज बंद करने से ही नदी में मछलियां लौटेंगी। सेंबरंबक्कम झील के लिए 22.9 करोड़ का प्रोजेक्ट शुरू हो रहा है, जिसमें बांध मरम्मत और बाढ़ संरक्षण शामिल है। लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि बिना जनभागीदारी के ये प्रयास विफल रहेंगे। अभिभावकों और स्कूलों को बच्चों को नदी किनारे कचरा न फेंकने की शिक्षा देनी चाहिए।
यह घटना चेन्नई के लिए चेतावनी है। शहर की आबादी 1 करोड़ से अधिक है और जल संकट गहरा रहा है। प्रदूषित नदियां न केवल पर्यावरण को नुकसान पहुंचा रही हैं, बल्कि स्वास्थ्य संकट भी पैदा कर रही हैं। मछलियों की मौत से खाद्य श्रृंखला प्रभावित हो रही है। तमिलनाडु में 10 नदियों के 57 हिस्से प्रदूषित हैं, जिनमें Cooum सबसे ऊपर है। सरकार को तत्काल कदम उठाने चाहिए, जैसे अवैध आउटफॉल बंद करना और मॉनिटरिंग बढ़ाना। एनजीओ ने परिवारों को कानूनी सहायता देने का ऐलान किया है। सोशल मीडिया पर लोग सफाई अभियान चला रहे हैं। एक यूजर ने लिखा, नदियां मर रही हैं, शहर भी मरेगा।
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