खेत की खुदाई में मिली राधा-कृष्ण की प्राचीन अष्टधातु मूर्ति, पानी भरा घड़ा और भोजपत्र मिलने से उमड़ी भक्तों की भीड़। 

खेत की खुदाई में मिली राधा-कृष्ण की प्राचीन अष्टधातु मूर्ति, पानी भरा घड़ा और भोजपत्र मिलने से उमड़ी भक्तों की भीड़

Nov 22, 2025 - 12:17
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खेत की खुदाई में मिली राधा-कृष्ण की प्राचीन अष्टधातु मूर्ति, पानी भरा घड़ा और भोजपत्र मिलने से उमड़ी भक्तों की भीड़। 
खेत की खुदाई में मिली राधा-कृष्ण की प्राचीन अष्टधातु मूर्ति, पानी भरा घड़ा और भोजपत्र मिलने से उमड़ी भक्तों की भीड़। 

उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले में एक छोटे से गांव ने अचानक पूरे क्षेत्र को आस्था और रहस्य की दुनिया में डुबो दिया है। मिर्जापुर कलां गांव के एक खेत में रेस्टोरेंट खेत की खुदाई में मिली राधा-कृष्ण की प्राचीन अष्टधातु मूर्ति, पानी भरा घड़ा और भोजपत्र मिलने से उमड़ी भक्तों की भीड़। बनाने के लिए हो रही साधारण खुदाई के दौरान कुछ ऐसा मिला, जिसने सबको हैरान कर दिया। वहां से राधा-कृष्ण की प्राचीन अष्टधातु की मूर्ति, एक पानी से भरा मिट्टी का घड़ा और संस्कृत भाषा में लिखा भोजपत्र निकला। यह घटना 20 नवंबर 2025 को घटी, जब खेत के मालिक ब्रजेश सिंह के मजदूर काम कर रहे थे। जैसे ही फावड़ा जमीन में उतरा, तो किसी कठोर चीज से टकराने की आवाज आई। उत्सुकता से मिट्टी हटाई गई, तो पहले एक पुराना मिट्टी का घड़ा सामने आया। घड़े को तोड़ते ही उसके अंदर से चमकदार मूर्ति और भोजपत्र बाहर आ गए।

मूर्ति को देखते ही मजदूरों की आंखें फैल गईं। यह राधा-कृष्ण की जोड़ी थी, जो अष्टधातु से बनी हुई लग रही थी। अष्टधातु एक विशेष धातु मिश्रण है, जिसमें आठ प्रकार के धातुओं का समावेश होता है, जैसे सोना, चांदी, तांबा, जस्ता, टिन, सीसा, पारा और लोहा। प्राचीन काल में ऐसी मूर्तियां मंदिरों में स्थापित की जाती थीं, क्योंकि इन्हें शुभ और टिकाऊ माना जाता था। मूर्ति का आकार छोटा है, लगभग एक फुट ऊंचाई का, लेकिन इसकी नक्काशी इतनी बारीक है कि हर भाव साफ दिखाई देता है। राधा की मुस्कान और कृष्ण की बांसुरी वादन की मुद्रा लोगों को पुरानी याद दिला रही है। भोजपत्र पर संस्कृत में कुछ लेख है, जो शायद पूजन विधि या मंत्रों से जुड़ा हो। विशेषज्ञों का कहना है कि यह भोजपत्र हिमालयी क्षेत्र के भोजपत्र वृक्ष की छाल से बना है, जो प्राचीन ग्रंथ लिखने के लिए इस्तेमाल होता था।

घटना और भी रहस्यमयी तब हो गई, जब खुदाई के दौरान मूर्ति के पास से एक सांप निकला। मजदूरों ने फावड़े से सावधानी से हटाने की कोशिश की, लेकिन सांप घायल हो गया और कुछ ही देर में उसकी सांसें थम गईं। ग्रामीणों ने इसे चमत्कार माना। उनके अनुसार, सांप मूर्ति की रक्षा कर रहा था, जैसे प्राचीन कथाओं में नाग देवता भगवान की रक्षा करते हैं। खेत के मालिक ब्रजेश सिंह ने बताया कि वे रेस्टोरेंट बनाने की योजना बना रहे थे, लेकिन अब यह जगह पूजा स्थल बन गई है। उन्होंने कहा, हमने कभी सोचा भी नहीं था कि हमारे खेत में ऐसी धरोहर छिपी होगी। जैसे ही खबर फैली, गांव में भक्तों का सैलाब उमड़ पड़ा। लोग दूर-दूर से आ रहे हैं, मूर्ति के दर्शन कर रहे हैं और प्रसाद बांट रहे हैं। महिलाएं भजन गा रही हैं, जबकि पुरुष फूलमाला चढ़ा रहे हैं। स्थानीय पंडितों ने तत्काल पूजा-अर्चना शुरू कर दी और मूर्ति को अस्थायी रूप से एक छोटे चबूतरे पर स्थापित किया।

यह खोज उन्नाव के इतिहास को नई रोशनी दे रही है। उन्नाव जिला गंगा नदी के किनारे बसा है और यहां प्राचीन काल से ही धार्मिक स्थल रहे हैं। पुरातत्व विभाग के अधिकारियों का मानना है कि यह मूर्ति मध्यकालीन या इससे पुरानी हो सकती है। अष्टधातु का उपयोग वैष्णव परंपरा में आम था, जो भक्ति आंदोलन के समय फला-फूला। भोजपत्र पर लिखा लेख पढ़ने के बाद ही इसकी सटीक उम्र का पता चलेगा। विशेषज्ञों ने इसे लखनऊ के संग्रहालय भेजने का प्रस्ताव दिया है, ताकि वैज्ञानिक जांच हो सके। लेकिन ग्रामीण इसका विरोध कर रहे हैं। वे चाहते हैं कि मूर्ति यहीं रहे और गांव में एक छोटा मंदिर बन जाए। ब्रजेश सिंह ने कहा, यह हमारी धरोहर है, इसे कहीं ले जाने से हमारी आस्था को ठेस पहुंचेगी। पुलिस ने भी मौके पर पहुंचकर सुरक्षा की व्यवस्था की है, क्योंकि भीड़ बढ़ने से अफरा-तफरी की स्थिति बन रही थी।

इस घटना ने पूरे उत्तर प्रदेश में चर्चा पैदा कर दी है। सोशल मीडिया पर वीडियो वायरल हो रहे हैं, जहां लोग मूर्ति को देखकर भावुक हो जाते हैं। एक ग्रामीण ने कहा, यह भगवान का संकेत है कि हम अपनी जड़ों को भूल न जाएं। उन्नाव के जिलाधिकारी ने पुरातत्व विभाग को निर्देश दिए हैं कि जल्द से जल्द जांच पूरी करें। अगर मूर्ति प्राचीन साबित हुई, तो यह क्षेत्र पर्यटन का केंद्र बन सकता है। पहले भी उत्तर प्रदेश में खेतों से ऐसी खोजें हुई हैं। उदाहरण के लिए, गोरखपुर में विष्णु की मूर्ति मिली थी, जो नौवीं शताब्दी की बताई गई। इसी तरह, प्रयागराज में राधा-कृष्ण की मूर्तियां चोरी होने के बाद लौट आई थीं। ये घटनाएं दिखाती हैं कि हमारी मिट्टी में कितनी समृद्ध विरासत दबी हुई है।

मिर्जापुर कलां गांव अब शांत नहीं रहा। सुबह से शाम तक भक्तों की आवाजाही जारी है। बच्चे मूर्ति के सामने घुटने टेक रहे हैं, जबकि बुजुर्ग पुरानी कथाएं सुना रहे हैं। ब्रजेश सिंह के परिवार ने फैसला किया है कि रेस्टोरेंट की योजना स्थगित रहेगी। वे अब इस जगह को पवित्र मान रहे हैं। पुरातत्वविदों का एक दल कल पहुंचा, जिन्होंने मूर्ति की फोटो खींची और नमूने लिए। उनका प्रारंभिक अनुमान है कि यह मूर्ति कम से कम 300-500 साल पुरानी हो सकती है। भोजपत्र पर लिखा श्लोक रामायण या भागवत पुराण से प्रेरित लगता है। घड़े का पानी साफ था, जो संभवतः पूजा के लिए रखा गया था। सांप की मौत को ग्रामीण चमत्कार मानते हैं, लेकिन वैज्ञानिक इसे संयोग कह रहे हैं।

यह खोज न केवल धार्मिक महत्व रखती है, बल्कि सांस्कृतिक धरोहर को बचाने का संदेश भी देती है। आज के दौर में जब पुरानी चीजें नष्ट हो रही हैं, ऐसी घटनाएं हमें जागरूक करती हैं। उन्नाव प्रशासन ने घोषणा की है कि अगर मूर्ति गांव में ही रखी जाती है, तो मंदिर निर्माण में सहायता की जाएगी। भक्तों में उत्साह है, और वे उम्मीद कर रहे हैं कि यह जगह भविष्य में बड़ा तीर्थ बन जाए। ब्रजेश सिंह का कहना है, हम किसान हैं, लेकिन भगवान ने हमें यह उपहार दिया है। अब हम इसे संभालेंगे। घटना के बाद गांव में शांति का माहौल है, लेकिन आस्था की लहर तेज हो गई है। लोग कह रहे हैं कि राधा-कृष्ण ने खुद को प्रकट किया है, ताकि भक्ति की ज्योत बनी रहे।

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