पुष्कर में देव उठनी एकादशी का भव्य उत्सव: भगवान विष्णु के जागरण पर विशेष पूजा-अर्चना, तुलसी विवाह की तैयारियां शुरू
राजस्थान के पुष्कर में आज देव उठनी एकादशी का पावन पर्व धूमधाम से मनाया गया। इस अवसर पर भगवान विष्णु चार महीने की योग निद्रा से जागृत होकर क्षीर सागर
राजस्थान के पुष्कर में आज देव उठनी एकादशी का पावन पर्व धूमधाम से मनाया गया। इस अवसर पर भगवान विष्णु चार महीने की योग निद्रा से जागृत होकर क्षीर सागर से उठे। पुष्कर के प्रसिद्ध वराह मंदिर में भक्तों ने सुबह से ही विशेष आरती, पूजन और श्रृंगार किया। मंदिर परिसर फूलों, दीपों और रंगोली से सजा नजर आया। यह दिन चातुर्मास का समापन दर्शाता है, जिसके बाद विवाह, मुंडन, गृह प्रवेश जैसे सभी शुभ कार्य फिर से शुरू हो जाते हैं। पुष्कर झील के घाटों पर स्नान करने वाले श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ी और भजन-कीर्तन की गूंज सुनाई दी। इस पर्व के साथ ही विश्व प्रसिद्ध पुष्कर मेला भी शुरू हो गया, जिसमें देश-विदेश से लाखों पर्यटक और भक्त पहुंच रहे हैं। तुलसी विवाह की तैयारियां भी जोरों पर हैं, जो कल दो नवंबर को मनाया जाएगा। यह उत्सव न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि सांस्कृतिक विरासत को भी जीवंत करता है।
देव उठनी एकादशी, जिसे प्रबोधिनी एकादशी या देवोत्थान एकादशी भी कहा जाता है, कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाया जाता है। हिंदू पंचांग के अनुसार, 2025 में यह पर्व एक नवंबर को मनाया गया। यह वह दिन है जब भगवान विष्णु आषाढ़ शुक्ल एकादशी से शुरू हुए चातुर्मास की चार महीने की नींद से जागते हैं। पुराणों में वर्णित है कि देव शयनी एकादशी पर भगवान विष्णु शेषनाग की शय्या पर क्षीर सागर में योग निद्रा में चले जाते हैं। इस दौरान जगत का संचालन माता लक्ष्मी करती हैं। चातुर्मास में भक्त विवाह जैसे शुभ कार्य टाल देते हैं, क्योंकि यह भगवान की विश्राम अवधि होती है। एकादशी पर जागरण के बाद भगवान फिर से सृष्टि की रक्षा का दायित्व संभालते हैं। स्कंद पुराण के अनुसार, ब्रह्मा जी ने नारद मुनि को इसकी महिमा बताई थी। जो भक्त इस व्रत का पालन करता है, वह पापों से मुक्त होकर वैकुंठ धाम को प्राप्त करता है।
पुष्कर राजस्थान का एक प्राचीन तीर्थ स्थल है, जो ब्रह्मा जी के एकमात्र मंदिर के लिए जाना जाता है। यहां की पुष्कर झील को मोक्षदायिनी माना जाता है। वराह मंदिर भगवान विष्णु के वराह अवतार को समर्पित है और एकादशी पर यहां का महत्व बढ़ जाता है। सुबह सूर्योदय से पहले भक्त स्नान कर मंदिर पहुंचे। पुजारी ने भगवान का विशेष अभिषेक घी, दूध और पंचामृत से किया। फिर फूलों का श्रृंगार, चंदन का तिलक और तुलसी पत्र अर्पित किए गए। आरती के दौरान घंटियां, शंख और मंत्रों की ध्वनि से वातावरण गुंजायमान हो गया। मंदिर के महंत ने बताया कि इस बार भीड़ पहले से अधिक है, क्योंकि चातुर्मास के बाद भक्तों का उत्साह दोगुना है। महिलाओं ने पीले वस्त्र पहने, जो समृद्धि का प्रतीक है। बच्चे हाथों में दीये लेकर परिक्रमा करते नजर आए।
इस पर्व पर व्रत का विशेष महत्व है। भक्त सुबह उपवास रखते हैं और फलाहार पर रहते हैं। पूजा विधि सरल है। घर में भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की मूर्ति स्थापित कर दीप जलाएं। तुलसी पत्र, कमल के फूल, पान और मिठाई चढ़ाएं। विष्णु सहस्रनाम का पाठ करें या 'ओम नमो भगवते वासुदेवाय' मंत्र जपें। शाम को दीपदान करें। व्रत अगले दिन द्वादशी पर पारण करें, जो दो नवंबर को सुबह छह से आठ बजे तक है। विशेषज्ञों का कहना है कि यह व्रत मोक्ष प्राप्ति का साधन है। महाराष्ट्र और गुजरात में पंढरपुर यात्रा का समापन इसी दिन होता है। पुष्कर में यह पर्व मेला के साथ जुड़ जाता है। मेला 30 अक्टूबर से शुरू हो चुका था, लेकिन एकादशी पर इसका मुख्य आकर्षण बढ़ गया।
पुष्कर मेला दुनिया का सबसे बड़ा पशु मेला है, जिसमें ऊंट, घोड़े और पशुओं की खरीद-फरोख्त होती है। लेकिन धार्मिक रूप से यह तीर्थ मेला है। एकादशी पर साधु-संत झील के घाटों पर डेरा डालते हैं। वे उपदेश देते हैं और भजन गाते हैं। इस बार विदेशी पर्यटक भी मंत्रमुग्ध होकर भाग ले रहे हैं। एक पर्यटक ने कहा कि यह उत्सव भारतीय संस्कृति की जीवंतता दिखाता है। मेला पूर्णिमा तक चलेगा, जिसमें सांस्कृतिक कार्यक्रम, नृत्य और हस्तशिल्प प्रदर्शनी होगी। स्थानीय कलाकार राजस्थानी लोक नृत्य प्रस्तुत करेंगे। प्रशासन ने सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए हैं। ट्रैफिक जाम से बचने के लिए विशेष पार्किंग और शटल बसें चलाई गईं। स्वास्थ्य शिविर लगाए गए हैं, जहां मुफ्त चिकित्सा उपलब्ध है।
तुलसी विवाह देव उठनी एकादशी का अभिन्न अंग है। यह प्रतीकात्मक विवाह तुलसी माता और शालिग्राम भगवान के बीच होता है। तुलसी को विष्णु प्रिया माना जाता है। बिना कन्या वाले दंपति इसे करवाते हैं, जो कन्यादान का फल देता है। कल दो नवंबर को घरों और मंदिरों में यह रस्म होगी। तुलसी को दुल्हन की तरह सजाया जाएगा। शालिग्राम को वर के रूप में स्थापित कर फेरे लिए जाएंगे। मंगल गीत गाए जाएंगे। यह रस्म वैवाहिक जीवन की सुख-शांति लाती है। पुष्कर में बड़े स्तर पर तुलसी विवाह का आयोजन होगा। भक्तों को मंगल कलश वितरित किए जाएंगे।
यह पर्व न केवल धार्मिक है, बल्कि सामाजिक एकता का प्रतीक भी। चातुर्मास में आत्मचिंतन का समय बीतने के बाद नई शुरुआत होती है। भक्तों का मानना है कि भगवान के जागरण से जीवन में सकारात्मक ऊर्जा आती है। विशेषज्ञ कहते हैं कि यह त्योहार पर्यावरण संरक्षण का संदेश भी देता है, क्योंकि तुलसी पूजा प्रकृति पूजा है। पुष्कर की झील का जल शुद्ध माना जाता है, जो पाप धोता है। इस दिन स्नान से मोक्ष की प्राप्ति होती है। साधु बताते हैं कि एकादशी व्रत से इंद्रियां नियंत्रित होती हैं।
देश भर में यह पर्व मनाया गया। दिल्ली के बिड़ला मंदिर, तिरुपति बालाजी, द्वारका और जगन्नाथ पुरी में विशेष पूजा हुई। आईएसकॉन मंदिरों में मंगला आरती और कीर्तन हुए। भक्तों ने प्रसाद वितरण में भाग लिया। गुजरात में दीपावली की तैयारियां तेज हो गईं। महाराष्ट्र में वारकरी संप्रदाय ने पंढरपुर में समापन यात्रा की। इस पर्व से विवाह सीजन शुरू हो गया। पंडितों का कहना है कि नवंबर-दिसंबर में शादियां बढ़ेंगी।
पुष्कर में स्थानीय लोग उत्साहित हैं। एक बुजुर्ग ने कहा कि बचपन से यह पर्व देख रहे हैं, हर बार नई ऊर्जा मिलती है। युवा भक्त सोशल मीडिया पर फोटो शेयर कर रहे हैं। मेला अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देता है। होटल, दुकानें और परिवहन सेवाएं फल-फूल रही हैं। पर्यटन विभाग ने प्रचार किया, जिससे विदेशी आगमन बढ़ा। लेकिन भीड़ प्रबंधन चुनौती है। पुलिस ने ड्रोन से निगरानी की।
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