भारत का सुदर्शन चक्र- ओडिशा तट पर स्वदेशी IADWS का सफल परीक्षण हुआ, चीन ने भी की तारीफ।
Trending News: भारत ने अपनी रक्षा क्षमता को नई ऊंचाइयों पर ले जाते हुए ओडिशा के तट पर स्वदेशी एकीकृत वायु रक्षा हथियार प्रणाली (IADWS) का पहला उड़ान परीक्षण सफलतापूर्वक किया। यह बहु-स्तरीय वायु रक्षा
भारत ने अपनी रक्षा क्षमता को नई ऊंचाइयों पर ले जाते हुए ओडिशा के तट पर स्वदेशी एकीकृत वायु रक्षा हथियार प्रणाली (IADWS) का पहला उड़ान परीक्षण सफलतापूर्वक किया। यह बहु-स्तरीय वायु रक्षा प्रणाली ड्रोन, क्रूज मिसाइल, हेलीकॉप्टर, और कम ऊंचाई पर उड़ने वाले विमानों जैसे हवाई खतरों को नष्ट करने में सक्षम है। इस प्रणाली में स्वदेशी क्विक रिएक्शन सरफेस-टू-एयर मिसाइल (QRSAM), अति लघु दूरी की वायु रक्षा प्रणाली (VSHORADS), और हाई-पावर लेजर आधारित डायरेक्टेड एनर्जी वेपन (DEW) शामिल हैं। इस उपलब्धि ने न केवल भारत की रक्षा तकनीक में आत्मनिर्भरता को मजबूत किया, बल्कि वैश्विक स्तर पर भी ध्यान आकर्षित किया। चीन के सैन्य विशेषज्ञों ने इसे “महत्वपूर्ण प्रगति” बताते हुए इसकी सराहना की है।
परीक्षण ओडिशा के चांदीपुर स्थित एकीकृत परीक्षण रेंज (ITR) में दोपहर 12:30 बजे किया गया। रक्षा मंत्रालय के अनुसार, इस दौरान तीन अलग-अलग लक्ष्यों—दो उच्च गति वाले फिक्स्ड-विंग ड्रोन और एक मल्टी-कॉप्टर ड्रोन—को एक साथ निशाना बनाया गया। इन लक्ष्यों को QRSAM, VSHORADS, और हाई-पावर लेजर हथियार द्वारा अलग-अलग दूरी और ऊंचाई पर नष्ट किया गया। सभी हथियार प्रणालियों, रडार, ड्रोन डिटेक्शन सिस्टम, और कमांड-एंड-कंट्रोल सेंटर ने बिना किसी कमी के काम किया। इस परीक्षण को रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) के वरिष्ठ वैज्ञानिकों और सशस्त्र बलों के अधिकारियों ने देखा।
IADWS एक बहु-स्तरीय रक्षा प्रणाली है, जो भारत की सामरिक और नागरिक सुविधाओं को हवाई खतरों से बचाने के लिए डिजाइन की गई है। यह प्रणाली मिशन सुदर्शन चक्र का हिस्सा है, जिसकी घोषणा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 15 अगस्त 2025 को स्वतंत्रता दिवस के मौके पर की थी। इस मिशन का लक्ष्य 2035 तक भारत को एक मजबूत स्वदेशी वायु रक्षा कवच प्रदान करना है, जो इजरायल के आयरन डोम जैसी प्रणालियों के समकक्ष हो। IADWS में शामिल तीन मुख्य हथियार हैं:
QRSAM (क्विक रिएक्शन सरफेस-टू-एयर मिसाइल): यह मध्यम दूरी की मिसाइल 30 किलोमीटर तक के हवाई खतरों, जैसे लड़ाकू विमान, हेलीकॉप्टर, और ड्रोन को नष्ट कर सकती है। इसे DRDO ने विकसित किया है और यह तेज प्रतिक्रिया के लिए जानी जाती है।
VSHORADS (वेरी शॉर्ट रेंज एयर डिफेंस सिस्टम): यह मैन-पोर्टेबल मिसाइल प्रणाली 6 किलोमीटर की दूरी तक कम ऊंचाई पर उड़ने वाले ड्रोन, हेलीकॉप्टर, और विमानों को निशाना बना सकती है। इसका विकास रिसर्च सेंटर इमारत (RCI) ने किया है।
DEW (डायरेक्टेड एनर्जी वेपन): यह हाई-पावर लेजर हथियार 30 किलोवाट की ऊर्जा उत्सर्जित करता है, जो बिना गोला-बारूद के ड्रोन और छोटे हवाई लक्ष्यों को 1-2 किलोमीटर की दूरी पर नष्ट कर सकता है। इसका विकास सेंटर फॉर हाई एनर्जी सिस्टम्स एंड साइंसेज (CHESS) ने किया है।
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने इस उपलब्धि पर DRDO, सशस्त्र बलों, और उद्योग भागीदारों को बधाई दी। उन्होंने सोशल मीडिया पर लिखा, “यह अनूठा उड़ान परीक्षण भारत की बहु-स्तरीय वायु रक्षा क्षमता को स्थापित करता है और महत्वपूर्ण सुविधाओं को हवाई खतरों से बचाने में मदद करेगा।” उन्होंने इसे आत्मनिर्भर भारत अभियान का एक महत्वपूर्ण कदम बताया। इस परीक्षण ने वैश्विक स्तर पर भी ध्यान खींचा है। चीन के सैन्य विशेषज्ञ और बीजिंग स्थित एयरोस्पेस नॉलेज पत्रिका के मुख्य संपादक वांग यानान ने ग्लोबल टाइम्स को बताया कि IADWS, खासकर इसका लेजर आधारित DEW, भारत की रक्षा तकनीक में “महत्वपूर्ण प्रगति” है। उन्होंने कहा कि QRSAM और VSHORADS तकनीकी रूप से सामान्य हैं, लेकिन लेजर हथियार केवल कुछ देशों—जैसे अमेरिका, रूस, चीन, ब्रिटेन, जर्मनी, और इजरायल—के पास उपलब्ध हैं। भारत का इस सूची में शामिल होना उसकी तकनीकी क्षमता को दर्शाता है।
इस प्रणाली का केंद्रीकृत कमांड-एंड-कंट्रोल सेंटर DRDO की रक्षा अनुसंधान और विकास प्रयोगशाला (DRDL) द्वारा विकसित किया गया है। यह सेंटर सभी हथियारों, रडार, और संचार प्रणालियों को एकीकृत करता है, जिससे यह प्रणाली जटिल हवाई खतरों से निपटने में सक्षम है। परीक्षण के दौरान, चांदीपुर ITR द्वारा तैनात उपकरणों ने उड़ान डेटा रिकॉर्ड किया, जिसने प्रणाली की सटीकता और प्रभावशीलता की पुष्टि की। यह परीक्षण मिशन सुदर्शन चक्र की दिशा में पहला कदम है। इस मिशन का लक्ष्य अगले दस वर्षों में भारत की सैन्य और नागरिक सुविधाओं को हवाई हमलों से बचाने के लिए एक मजबूत ढाल तैयार करना है।
द इकोनॉमिक टाइम्स के अनुसार, IADWS को 2026 तक पूरी तरह तैनात करने का लक्ष्य है, जिसकी अनुमानित लागत 50,000 करोड़ रुपये है। भविष्य में इसे प्रोजेक्ट कुशा के तहत लंबी दूरी की मिसाइलों के साथ एकीकृत किया जाएगा, जो 400 किलोमीटर से अधिक दूरी के खतरों को रोक सकती हैं। यह उपलब्धि भारत की रक्षा रणनीति के लिए महत्वपूर्ण है, खासकर पाकिस्तान और चीन के साथ सीमा तनाव को देखते हुए। मई 2025 में ऑपरेशन सिंदूर के दौरान भारत ने S-400, बराक-8, और आकाश जैसी प्रणालियों का उपयोग कर पाकिस्तानी ड्रोन और चीनी मिसाइलों को रोका था। IADWS इस रक्षा ढाल को और मजबूत करेगा। विशेषज्ञों का मानना है कि यह प्रणाली जटिल युद्ध परिदृश्यों में प्रभावी होगी, जैसे कि ड्रोन झुंडों या क्रूज मिसाइलों के हमले।
सोशल मीडिया पर इस खोज ने खूब चर्चा बटोरी। DRDO ने अपने X अकाउंट पर परीक्षण का एक वीडियो साझा किया, जिसमें तीनों लक्ष्यों को नष्ट करते हुए प्रणाली की ताकत दिखाई गई। एक यूजर ने लिखा, “भारत अब रक्षा तकनीक में दुनिया के शीर्ष देशों में शामिल है। सुदर्शन चक्र दुश्मनों के लिए चेतावनी है।” एक अन्य यूजर ने कहा, “लेजर हथियार भारत की तकनीकी ताकत का प्रतीक है। DRDO को सलाम।” यह परीक्षण भारत की आत्मनिर्भरता और रणनीतिक स्थिति को मजबूत करता है।
पहले भारत रूस से S-400 और इजरायल से बराक-8 जैसी प्रणालियों पर निर्भर था, लेकिन IADWS के साथ भारत ने स्वदेशी तकनीक में एक बड़ा कदम उठाया है। DRDO प्रमुख समीर वी. कामत ने कहा, “यह तो बस शुरुआत है। हम ऐसी तकनीकों पर काम कर रहे हैं, जो हमें स्टार वॉर्स जैसी क्षमताएं देंगी।” यह खोज न केवल सैन्य दृष्टिकोण से, बल्कि आर्थिक और तकनीकी दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है। इस प्रणाली के विकास में निजी क्षेत्र और उद्योगों की भागीदारी रही है, जो आत्मनिर्भर भारत अभियान को बढ़ावा देता है। विशेषज्ञों का मानना है कि IADWS भारत को वैश्विक रक्षा बाजार में एक प्रमुख खिलाड़ी बनाएगा। यह प्रणाली भविष्य में और उन्नत बनाई जा सकती है, जिससे भारत की वायु रक्षा और भी अजेय हो जाएगी।
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