जगदलपुर में ऐतिहासिक सरेंडर: रूपेश समेत 200 नक्सलियों ने हथियार डाले, अबूझमाड़ नक्सल मुक्त।
छत्तीसगढ़ के बस्तर क्षेत्र में नक्सलवाद के खिलाफ एक बड़ा कदम उठाया गया है। जगदलपुर में शुक्रवार को सैकड़ों नक्सलियों ने आत्मसमर्पण कर दिया। इनमें दंडकारण्य विशेष जोनल कमेटी
छत्तीसगढ़ के बस्तर क्षेत्र में नक्सलवाद के खिलाफ एक बड़ा कदम उठाया गया है। जगदलपुर में शुक्रवार को सैकड़ों नक्सलियों ने आत्मसमर्पण कर दिया। इनमें दंडकारण्य विशेष जोनल कमेटी के प्रवक्ता और केंद्रीय कमेटी सदस्य सतीश उर्फ टी वासुदेव राव उर्फ रूपेश प्रमुख थे। कुल 200 से अधिक नक्सली, जिनमें महिलाएं और बच्चे भी शामिल थे, इंद्रावती नदी पार कर बीजापुर से जगदलपुर पहुंचे। मुख्यमंत्री विष्णु देव साय और उपमुख्यमंत्री व गृह मंत्री विजय शर्मा की मौजूदगी में यह समारोह आयोजित हुआ। नक्सलियों ने आधुनिक हथियार जैसे एके-47, इंसास राइफल, एसएलआर और कार्बाइन समेत 100 से ज्यादा हथियार जमा किए। यह सरेंडर नक्सल संगठन को कमजोर करने वाला बड़ा झटका है। केंद्र सरकार ने इसे नक्सलवाद के अंत का संकेत बताया है।
यह घटना गुरुवार को शुरू हुई। नक्सली अबूझमाड़ के घने जंगलों से निकले। वे उसपरी घाटी के रास्ते इंद्रावती नदी पार कर बीजापुर पहुंचे। वहां सुरक्षा बलों ने उनका स्वागत किया। सुरक्षा कारणों से रास्ते में चाक-चौबंद इंतजाम थे। सीआरपीएफ, कोबरा और डीआरजी की टीमें तैनात रहीं। नक्सलियों को जगदलपुर लाने के लिए विशेष वाहन इस्तेमाल किए गए। रास्ते में कोई घटना नहीं हुई। जगदलपुर पहुंचते ही उन्हें अस्थायी कैंप में रखा गया। सुबह समारोह स्थल पर मुख्यमंत्री साय ने भाषण दिया। उन्होंने कहा कि यह शांति की दिशा में बड़ा कदम है। नक्सलियों को मुख्यधारा में लाने का प्रयास जारी रहेगा। उपमुख्यमंत्री शर्मा ने कहा कि सरेंडर करने वालों को लाल कालीन बिछाकर स्वागत किया जाएगा।
रूपेश का सरेंडर सबसे महत्वपूर्ण है। वे आंध्र प्रदेश के रहने वाले हैं, लेकिन छत्तीसगढ़ में सक्रिय थे। माड़ डिवीजन और इंद्रावती एरिया कमेटी में उनकी भूमिका थी। वे नक्सली संगठन के प्रवक्ता थे। महत्वपूर्ण फैसलों और बयानों के लिए वे जाना जाते थे। उनके ऊपर एक करोड़ रुपये का इनाम था। रूपेश ने कई वर्षों से जंगलों में छिपकर काम किया। लेकिन हाल की मुठभेड़ों और सरकारी नीतियों से दबाव बढ़ा। उन्होंने कहा कि वे हिंसा से तंग आ चुके हैं। अब शांति चाहते हैं। उनके साथ रनिता भी थीं, जो डीकेजेडसी की माड़ डिवीजन इंचार्ज थीं। रनिता पर भी भारी इनाम था। दोनों ने संगठन की कमजोरी का जिक्र किया। कहा कि ऊपरी नेता मारे जा चुके हैं। अब कोई भविष्य नहीं दिखता।
इस समूह में 13 महिलाएं और कुछ बच्चे भी थे। वे लंबे समय से जंगलों में रह रहे थे। सरेंडर करने वालों में कमांडर, फाइटर्स और सपोर्ट स्टाफ शामिल थे। हथियारों की संख्या से साफ है कि यह एक बड़ा गुट था। सरेंडर के बाद नक्सलियों को सरकारी नीति के तहत लाभ मिलेंगे। छत्तीसगढ़ सरकार की नक्सल सरेंडर पुनर्वास नीति 2025 के अनुसार, उन्हें 50 हजार रुपये नकद, कपड़े और आवास सुविधा दी जाएगी। प्रशिक्षण के बाद नौकरी या स्वरोजगार का मौका मिलेगा। नीति नीयद नेल्ला नार योजना के तहत अतिरिक्त मदद होगी। रूपेश जैसे बड़े नेताओं को विशेष पैकेज मिलेगा। वे जेल से मुक्त होकर समाज में लौट सकेंगे।
यह सरेंडर महाराष्ट्र में भूपति के सरेंडर से प्रेरित है। भूपति उर्फ मल्लोजुला वेणुगोपाल राव, जो पोलित ब्यूरो सदस्य थे, ने 15 अक्टूबर को गढ़चिरोली में 60 नक्सलियों समेत आत्मसमर्पण किया। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने इसे नक्सल आंदोलन का अंत बताया। भूपति पर भी एक करोड़ का इनाम था। उनके सरेंडर ने चेन रिएक्शन पैदा किया। छत्तीसगढ़ के नक्सली घबरा गए। सुरक्षा बलों की कार्रवाई तेज हो गई। बसवराजू जैसे नेता मारे जा चुके हैं। अबूझमाड़ और उत्तर बस्तर को नक्सल मुक्त घोषित किया गया। दक्षिण बस्तर में भी सफाई अभियान चल रहा है।
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने इसकी सराहना की। उन्होंने एक्स पर लिखा कि पिछले दो दिनों में 258 नक्सलियों ने हिंसा छोड़ी। छत्तीसगढ़ में 170 ने सरेंडर किया। महाराष्ट्र में 61। शाह ने कहा कि नक्सलवाद सांसें ले रहा है। इसका अंत 31 मार्च 2026 तक होगा। जनवरी 2024 से भाजपा सरकार बनने के बाद 2100 नक्सली सरेंडर कर चुके। 1785 गिरफ्तार हुए। 477 मारे गए। केंद्र ने छत्तीसगढ़ को चार लाख करोड़ से ज्यादा विकास के लिए दिए। बस्तर में बिजली, पानी, सड़क, शौचालय पहुंचे। हर घर में पांच लाख का स्वास्थ्य बीमा। पांच किलो मुफ्त चावल। शाह ने कहा कि नक्सली विकास रोकते थे। अब वे खुद हार मान रहे।
छत्तीसगढ़ सरकार ने सरेंडर को प्रोत्साहित करने के लिए कदम उठाए। गांव नक्सल मुक्त होने पर एक करोड़ का विकास फंड। बस्तर दशहरा लोकोत्सव में शाह ने अपील की। कहा कि बातचीत का कोई मतलब नहीं। सरेंडर पॉलिसी आकर्षक है। हथियार डालो, मुख्यधारा में लौटो। अन्यथा सुरक्षा बल सख्त कार्रवाई करेंगे। सीआरपीएफ और राज्य पुलिस ने अभियान तेज किया। ड्रोन, हेलीकॉप्टर और इंटेलिजेंस से नक्सलियों पर दबाव। कई गांवों में शांति लौटी। लोग खुले में रहने लगे। स्कूल खुल गए। बाजार चहल-पहल से भर गए।
यह सरेंडर बस्तर के लिए नई शुरुआत है। अबूझमाड़ जंगल पहले नक्सल किला था। वहां पहुंचना मुश्किल। लेकिन अब सुरक्षित। सरेंडर करने वाले नक्सली स्थानीय आदिवासी थे। गरीबी और बेरोजगारी ने उन्हें भटकाया। संगठन ने धोखा दिया। वे दशकों से हिंसा में फंसे। अब उन्हें शिक्षा और कौशल मिलेगा। महिलाओं को विशेष सहायता। बच्चे स्कूल जाएंगे। विशेषज्ञ कहते हैं कि यह सामाजिक परिवर्तन लाएगा। नक्सलवाद की जड़ें कमजोर होंगी। लेकिन चुनौतियां बाकी। बचे नक्सली प्रतिक्रिया दे सकते। सुरक्षा बढ़ानी होगी।
समारोह में स्थानीय लोग शामिल हुए। उन्होंने तालियां बजाईं। एक बुजुर्ग आदिवासी ने कहा कि अब बेटियां सुरक्षित घूमेंगी। कोई डर नहीं। मुख्यमंत्री साय ने वादा किया कि विकास तेज होगा। सड़कें, पुल, अस्पताल बनेंगे। पर्यटन बढ़ेगा। बस्तर का दशहरा प्रसिद्ध है। अब शांति के साथ मनाया जाएगा। केंद्र और राज्य मिलकर काम करेंगे। शाह ने कहा कि बस्तर को नया जीवन मिलेगा। नक्सली भूलों का प्रायश्चित करेंगे। समाज उन्हें स्वीकारेगा।
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