दिल्ली की जहरीली हवा: प्रदूषण से 8.2 साल कम हो रही जिंदगी, हर साल सर्दियों में क्यों बिगड़ जाती है स्थिति; नियंत्रण के उपाय क्या हैं।
दिल्ली की हवा हर साल सर्दियों में एक बड़ा खतरा बन जाती है। शिकागो विश्वविद्यालय की एनर्जी पॉलिसी इंस्टीट्यूट द्वारा जारी एयर क्वालिटी लाइफ इंडेक्स 2025 रिपोर्ट के मुताबिक,
दिल्ली की हवा हर साल सर्दियों में एक बड़ा खतरा बन जाती है। शिकागो विश्वविद्यालय की एनर्जी पॉलिसी इंस्टीट्यूट द्वारा जारी एयर क्वालिटी लाइफ इंडेक्स 2025 रिपोर्ट के मुताबिक, दिल्ली-एनसीआर के निवासियों की औसत आयु प्रदूषण के कारण 8.2 साल कम हो रही है। रिपोर्ट 2023 के डेटा पर आधारित है, जिसमें दिल्ली का पीएम2.5 स्तर 88.4 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर पाया गया, जो विश्व स्वास्थ्य संगठन के सुरक्षित मानक 5 माइक्रोग्राम से 22 गुना ज्यादा है। भारत में प्रदूषण से औसत आयु 3.5 साल कम हो रही है, लेकिन दिल्ली सबसे प्रभावित शहर है। रिपोर्ट के अनुसार, दक्षिण एशिया सबसे प्रदूषित क्षेत्र है, जहां बांग्लादेश का औसत स्तर 60.8 माइक्रोग्राम है, लेकिन दिल्ली का स्तर इससे भी ज्यादा खतरनाक है। यह प्रदूषण फेफड़ों की बीमारियां, हृदय रोग और कैंसर जैसी समस्याएं पैदा कर रहा है। हर साल अक्टूबर-नवंबर में एयर क्वालिटी इंडेक्स 400 से ऊपर चला जाता है, जो स्वास्थ्य के लिए घातक है। लेकिन सवाल यह है कि दिल्ली की हवा हर साल इतनी जहरीली क्यों हो जाती है? और इसे नियंत्रित करने के लिए क्या कदम उठाए जा सकते हैं? आइए, तथ्यों के आधार पर समझते हैं।
दिल्ली में प्रदूषण का स्तर साल भर ऊंचा रहता है, लेकिन सर्दियों में यह चरम पर पहुंच जाता है। मुख्य कारण मौसम की स्थिति है। सर्दियों में तापमान उलटा हो जाता है, यानी जमीन के पास ठंडी हवा की परत बन जाती है, जो प्रदूषकों को ऊपर जाने से रोकती है। हवाएं कम चलती हैं, जिससे धुंध और धुआं हवा में फंस जाता है। इंडो-गंगा मैदान की भौगोलिक स्थिति भी जिम्मेदार है। यह घाटी जैसा इलाका है, जहां हिमालय की दीवार प्रदूषकों को बाहर निकलने नहीं देती। उत्तर-पश्चिमी हवाएं पंजाब और हरियाणा से धुआं दिल्ली की ओर लाती हैं। रिपोर्ट्स बताती हैं कि सर्दियों में पीएम2.5 का स्तर गर्मियों से 59 प्रतिशत ज्यादा हो जाता है।
दूसरा बड़ा कारण पराली जलाना है। हर साल अक्टूबर-नवंबर में पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश के किसान धान की फसल कटाई के बाद पराली जलाते हैं। आईआईटी कानपुर की रिपोर्ट के अनुसार, यह दिल्ली के पीएम2.5 स्तर में 35 प्रतिशत तक योगदान देता है। किसान समय की कमी के कारण ऐसा करते हैं, लेकिन इससे मीथेन, कार्बन मोनोऑक्साइड और कैंसरकारी पदार्थ हवा में फैल जाते हैं। 2023 में पराली जलाने की घटनाएं 35 मिलियन टन तक पहुंचीं। तीसरा, वाहनों का बढ़ता नंबर। दिल्ली-एनसीआर में 10.9 मिलियन से ज्यादा वाहन हैं, जो सालाना 9.7 प्रतिशत बढ़ रहे हैं। वाहन पीएम2.5 के 20 प्रतिशत और नाइट्रोजन ऑक्साइड के 78 प्रतिशत उत्सर्जन के लिए जिम्मेदार हैं। पुराने डीजल वाहन और ट्रैफिक जाम स्थिति बिगाड़ते हैं।
चौथा, निर्माण कार्य। दिल्ली में तेजी से हो रहे निर्माण से धूल उड़ती है, जो पीएम10 का 38 प्रतिशत योगदान देती है। कचरा जलाना भी बड़ा मुद्दा है। दिल्ली रोजाना 190 से 246 टन कचरा जलाती है, जो विषैले गैस पैदा करता है। भलस्वा जैसे लैंडफिल साइट्स पर आग लगना आम है। उद्योग और थर्मल पावर प्लांट्स भी 11 प्रतिशत प्रदूषण फैलाते हैं। घरेलू ईंधन जलाना, जैसे लकड़ी या कोयला, 12 प्रतिशत योगदान देता है। दिवाली पर पटाखों से प्रदूषण 20-30 प्रतिशत बढ़ जाता है। विकिपीडिया और सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट की रिपोर्ट्स के अनुसार, ये सभी कारक मिलकर दिल्ली को दुनिया का सबसे प्रदूषित शहर बनाते हैं। 2023 में दिल्ली का एयर क्वालिटी इंडेक्स आधे साल से ज्यादा समय 200 से ऊपर रहा। स्वास्थ्य प्रभाव गंभीर हैं। रिपोर्ट के मुताबिक, प्रदूषण से भारत में सालाना 16.7 लाख मौतें होती हैं। दिल्ली में 11.5 प्रतिशत मौतें प्रदूषण से जुड़ी हैं। बच्चे, बुजुर्ग और सांस की बीमारियों वाले सबसे ज्यादा प्रभावित होते हैं।
अब सवाल है कि इस प्रदूषण को नियंत्रित कैसे किया जाए? कई उपाय संभव हैं, लेकिन इन्हें सख्ती से लागू करना जरूरी है। पहला, पराली जलाने पर रोक। सरकार ने पंजाब और हरियाणा में पराली प्रबंधन मशीनें सब्सिडी पर दी हैं। किसानों को जैविक खाद बनाने या बिजली उत्पादन के लिए प्रोत्साहन दें। दूसरा, वाहनों पर नियंत्रण। सीएनजी बसों की संख्या बढ़ाएं। दिल्ली सरकार ने 1000 अतिरिक्त सीएनजी बसें जोड़ने का ऐलान किया है। इलेक्ट्रिक वाहनों को बढ़ावा दें। 2022 में दिल्ली में 1.6 लाख इलेक्ट्रिक वाहन थे। पुराने वाहनों को स्क्रैप करें और ईवी पर रोड टैक्स माफी दें। कार पूलिंग को बढ़ावा दें और साइकिल लेन बनाएं।
तीसरा, निर्माण साइट्स पर धूल नियंत्रण। कंस्ट्रक्शन एरिया को कवर करें, पानी का छिड़काव करें और कचरे को ढककर रखें। आईआईटी कानपुर की रिपोर्ट कहती है कि इससे हवा की गुणवत्ता 50 प्रतिशत सुधर सकती है। चौथा, कचरा प्रबंधन। लैंडफिल साइट्स पर बायोमाइनिंग करें और कचरा जलाने पर सख्ती बरतें। पांचवां, उद्योगों पर निगरानी। प्रदूषण नियंत्रण डिवाइस लगवाएं और रीयल-टाइम एमिशन मॉनिटरिंग करें। बदरपुर जैसे कोयला प्लांट बंद करना सकारात्मक कदम था। छठा, पेड़ लगाना। अरावली रेंज में 1600 किलोमीटर लंबा ग्रीन कॉरिडोर बनाएं, जिसमें 135 करोड़ पेड़ लगें। सातवां, ग्रेडेड रिस्पॉन्स एक्शन प्लान (जीआरएपी) को मजबूत करें। एक्यूआई 300 पार होते ही निर्माण बंद करें, ट्रक प्रवेश रोके और स्कूल ऑनलाइन करें।
आठवां, सार्वजनिक परिवहन मजबूत करें। मेट्रो रेल का विस्तार करें, जो पहले से ही लाखों लोगों को राहत दे रही है। नौवां, जागरूकता अभियान। स्कूलों में पर्यावरण शिक्षा दें और पटाखों पर पूर्ण प्रतिबंध लगाएं। दसवां, सोलर एनर्जी को बढ़ावा। घरों और फैक्टरियों पर सोलर पैनल लगवाकर कोयला प्लांट्स को कम करें। दिल्ली सरकार ने 40 से ज्यादा मॉनिटरिंग स्टेशन लगाए हैं, जो प्रदूषण ट्रैक करते हैं। लेकिन विशेषज्ञ कहते हैं कि ये उपाय पर्याप्त नहीं। सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट के अनुसार, दिल्ली में प्रदूषण साल भर स्थिर रखने के लिए क्षेत्रीय सहयोग जरूरी है। पंजाब-हरियाणा के साथ मिलकर पराली प्रबंधन करें। सुप्रीम कोर्ट ने भी सख्ती बरतने को कहा है।
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