भारत में मोबाइल नंबर 10 अंकों का क्यों? सच्चाई जानकार हैरान रह जाएंगे आप।

भारत में हर मोबाइल नंबर ठीक 10 अंकों का होता है, न कम न ज्यादा। अगर एक अंक भी गलत हो या छूट जाए तो कॉल नहीं लगती। यह कोई संयोग नहीं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय टेलीकॉम

Oct 30, 2025 - 13:58
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भारत में मोबाइल नंबर 10 अंकों का क्यों? सच्चाई जानकार हैरान रह जाएंगे आप।
भारत में मोबाइल नंबर 10 अंकों का क्यों? सच्चाई जानकार हैरान रह जाएंगे आप।

भारत में हर मोबाइल नंबर ठीक 10 अंकों का होता है, न कम न ज्यादा। अगर एक अंक भी गलत हो या छूट जाए तो कॉल नहीं लगती। यह कोई संयोग नहीं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय टेलीकॉम यूनियन (आईटीयू) के सख्त मानकों, गणितीय गणना और भारत की बढ़ती आबादी को ध्यान में रखकर बनाई गई योजना का नतीजा है। 10 अंकों की यह व्यवस्था 1990 के दशक में शुरू हुई और आज 140 करोड़ से ज्यादा मोबाइल कनेक्शन होने के बावजूद यह सिस्टम मजबूती से काम कर रहा है। हर अंक का अपना मतलब है, जो नंबर को यूनिक बनाता है और नेटवर्क को कुशलता से चलाता है। आइए जानते हैं कि 10 अंक क्यों चुने गए, इनका गणित क्या है और हर डिजिट क्या दर्शाती है।

मोबाइल नंबर की शुरुआत देश कोड से होती है। भारत का देश कोड +91 है, लेकिन घरेलू कॉल में इसे डायल नहीं करते। असल नंबर 10 डिजिट का शुरू होता है। पहले दो अंक सर्विस प्रोवाइडर और सर्कल को बताते हैं। उदाहरण के लिए, 98xxxxxxx मुंबई सर्कल का एयरटेल नंबर है। अगले आठ अंक सब्सक्राइबर को यूनिक पहचान देते हैं। यह सिस्टम नेशनल नंबरिंग प्लान (एनएनपी) पर आधारित है, जिसे टेलीकॉम रेगुलेटरी अथॉरिटी ऑफ इंडिया (ट्राई) और डिपार्टमेंट ऑफ टेलीकॉम (डीओटी) संभालते हैं। एनएनपी 2003 में अपडेट हुआ, जब फिक्स्ड लाइन और मोबाइल को अलग किया गया। मोबाइल के लिए 9, 8, 7 और 6 सीरीज रखी गईं।

10 अंकों का चुनाव गणितीय जरूरत से हुआ। एक डिजिट में 10 संभावनाएं होती हैं (0 से 9)। अगर नंबर एन अंकों का हो तो कुल संभावित नंबर 10^एन होते हैं। 10 अंकों में 10^10 = 10 अरब नंबर संभव हैं। भारत में 2025 तक 120 करोड़ मोबाइल कनेक्शन हैं। 10 अरब की क्षमता पर्याप्त है, भले ही हर व्यक्ति को दो-तीन नंबर मिलें। अगर 9 अंक होते तो सिर्फ 1 अरब नंबर मिलते, जो 2010 तक ही खत्म हो जाते। 11 अंक होते तो 100 अरब नंबर मिलते, लेकिन डायलिंग में देरी होती और सिस्टम जटिल हो जाता। आईटीयू की ई.164 सिफारिश कहती है कि नंबर 15 अंकों से ज्यादा न हों। भारत ने 10 चुना ताकि याद रखना आसान हो और सिस्टम कुशल रहे।

हर डिजिट का मतलब समझिए। पहला अंक हमेशा 6, 7, 8 या 9 होता है। 0-5 फिक्स्ड लाइन, टोल फ्री या स्पेशल सर्विसेज के लिए रखे हैं। 9 सीरीज मोबाइल के लिए शुरू हुई, फिर 8, 7 और 6 जोड़ी गईं। पहले दो अंक टेलीकॉम सर्कल और ऑपरेटर बताते हैं। जैसे 98 मुंबई एयरटेल, 99 मुंबई वोडाफोन, 98 दिल्ली जियो नहीं बल्कि पुराना कोड। डीओटी ने हर सर्कल को कोड अलॉट किए। भारत को 22 टेलीकॉम सर्कल में बांटा गया है, जैसे महाराष्ट्र, दिल्ली, यूपी ईस्ट। हर सर्कल में ऑपरेटरों को कोड दिए गए। जैसे दिल्ली में 981 एयरटेल, 991 वोडाफोन। अगले आठ अंक सब्सक्राइबर आईडी हैं, जो रैंडम या सीक्वेंशियल अलॉट होते हैं।

यह सिस्टम पोर्टेबिलिटी को सपोर्ट करता है। मोबाइल नंबर पोर्टेबिलिटी (एमएनपी) 2011 में शुरू हुई। नंबर बदलकर ऑपरेटर बदला जा सकता है, लेकिन पहले दो अंक नहीं बदलते। इससे नेटवर्क रूटिंग आसान रहती है। आईएमईआई और सिम के साथ मिलकर नंबर यूजर को यूनिक बनाता है। अगर नंबर 11 अंक का होता तो डेटाबेस में बदलाव, डायलर सॉफ्टवेयर अपडेट और अंतरराष्ट्रीय कॉल में समस्या आती। 9 अंक में जगह कम पड़ जाती। 10 अंक बैलेंस है। अमेरिका, चीन जैसे देश भी 10 अंक इस्तेमाल करते हैं।

एनएनपी की शुरुआत 1950 में हुई, जब फिक्स्ड लाइन 6-7 अंक की थीं। 1995 में मोबाइल आए तो 10 अंक रखे गए। 2003 में लेवल 9 और 8 जोड़े गए। 2010 में 7 और 6 सीरीज शुरू हुई। आज 7000 से ज्यादा कोड अलॉट हैं। ट्राई हर साल रिव्यू करती है। 2024 में ट्राई ने एम2एम (मशीन टू मशीन) के लिए 13 अंकों की नई सीरीज शुरू की, लेकिन ह्यूमन यूज के लिए 10 ही रखे। कारण यह कि मशीनों को ज्यादा नंबर चाहिए, जैसे स्मार्ट मीटर, व्हीकल ट्रैकिंग। लेकिन आम यूजर के लिए 10 पर्याप्त।

गणितीय रूप से 10 अंक परफेक्ट हैं। 6xxxxxxx से 9xxxxxxx तक 4 अरब नंबर प्रति सर्कल। 22 सर्कल में 88 अरब। लेकिन कुछ कोड रिजर्व हैं, जैसे 100 पुलिस, 101 फायर। फिर भी 10 अरब से ज्यादा सक्रिय नंबर संभव। पोर्टिंग से डुप्लिकेशन नहीं होता। नेटवर्क में रूटिंग टेबल छोटी रहती है। अगर 11 अंक होते तो डेटा स्टोरेज 10 गुना बढ़ता। पुराने फोन सपोर्ट नहीं करते। इसलिए 10 अंक आदर्श।

हर अंक की भूमिका अलग है। पहला अंक सर्विस टाइप (मोबाइल)। दूसरे अंक सर्कल और ऑपरेटर। तीसरा से दसवां सब्सक्राइबर। चेक डिजिट नहीं है, लेकिन वैलिडेशन एल्गोरिदम से गलती पकड़ी जाती है। नंबर अलॉटमेंट सेंट्रलाइज्ड है। डीओटी की वेबसाइट पर कोड लिस्ट उपलब्ध। ऑपरेटर ब्लॉक में नंबर लेते हैं, जैसे 10 लाख का ब्लॉक। यूजर को रैंडम अलॉट होता है।

भविष्य में क्या? ट्राई ने कहा कि 2040 तक 10 अंक पर्याप्त। लेकिन अगर 200 करोड़ कनेक्शन हुए तो 5 सीरीज जोड़ी जा सकती है। 6जी में वॉइस ओवर आईपी बढ़ेगा, लेकिन नंबर सिस्टम वही रहेगा। भारत में 5जी रोलआउट हो रहा है, लेकिन नंबरिंग अपडेट नहीं। वर्चुअल नंबर, ई-सिम से मल्टीपल नंबर आसान, लेकिन बेस 10 अंक।

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