एमपी के गुना में सरकारी एंबुलेंस का टायर पंचर, 65 वर्षीय मरीज की रास्ते में मौत; लापरवाही पर सियासत गरमाई। 

मध्य प्रदेश के गुना जिले में स्वास्थ्य विभाग की कथित लापरवाही ने एक बुजुर्ग की जान ले ली। म्याना स्वास्थ्य केंद्र से जिला अस्पताल ले जाते समय सरकारी एंबुलेंस का

Nov 4, 2025 - 12:25
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एमपी के गुना में सरकारी एंबुलेंस का टायर पंचर, 65 वर्षीय मरीज की रास्ते में मौत; लापरवाही पर सियासत गरमाई। 
एमपी के गुना में सरकारी एंबुलेंस का टायर पंचर, 65 वर्षीय मरीज की रास्ते में मौत; लापरवाही पर सियासत गरमाई। 

मध्य प्रदेश के गुना जिले में स्वास्थ्य विभाग की कथित लापरवाही ने एक बुजुर्ग की जान ले ली। म्याना स्वास्थ्य केंद्र से जिला अस्पताल ले जाते समय सरकारी एंबुलेंस का टायर पंचर हो गया। एंबुलेंस में स्टेपनी न होने के कारण करीब एक घंटे तक इंतजार करना पड़ा। इसी देरी का नतीजा था कि 65 वर्षीय मरीज हरिशंकर ओझा की रास्ते में ही मौत हो गई। घटना 1 नवंबर 2025 की है, जब ओझा को पेट दर्द की शिकायत पर म्याना से रेफर किया गया था। परिवार ने ड्राइवर और स्वास्थ्य अधिकारियों पर लापरवाही का गंभीर आरोप लगाया है। एंबुलेंस 45 मिनट लेट पहुंची और फिर टायर पंचर की वजह से अस्पताल पहुंचने में और दो घंटे लग गए। इस घटना ने न सिर्फ परिवार को सदमे में डाल दिया, बल्कि स्थानीय स्तर पर स्वास्थ्य सेवाओं की पोल खोल दी। कांग्रेस विधायक ऋषि अग्रवाल ने जिला कलेक्टर से फोन पर बात कर दोषियों पर सख्त कार्रवाई की मांग की।

हरिशंकर ओझा गुना जिले के म्याना क्षेत्र के रहने वाले थे। वे एक साधारण किसान थे और परिवार में पत्नी, दो बेटे और एक बेटी हैं। 1 नवंबर को उन्हें तेज पेट दर्द हुआ। परिवार ने तुरंत म्याना स्वास्थ्य केंद्र पर ले जाया। वहां डॉक्टरों ने प्रारंभिक इलाज के बाद जिला अस्पताल रेफर कर दिया। ओझा के बड़े बेटे राजेश ने बताया कि एंबुलेंस को कॉल करने पर 45 मिनट तक इंतजार करना पड़ा। जब एंबुलेंस पहुंची, तो पिता पहले से ही बेहाल थे। ड्राइवर ने कहा कि उन्हें केवल मरीज को उठाने के निर्देश मिले थे। यात्रा शुरू होने के महज 10 किलोमीटर बाद नेशनल हाइवे पर एंबुलेंस का पिछला टायर पंचर हो गया। ड्राइवर ने स्टेपनी की तलाश की, लेकिन एंबुलेंस में वह मौजूद नहीं थी। नजदीकी गैराज तक जाने में आधा घंटा लग गया। इस बीच मरीज की हालत बिगड़ती चली गई। आखिरकार एक निजी वाहन का इंतजाम हुआ, लेकिन अस्पताल पहुंचते ही डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया।

परिवार का गुस्सा साफ दिख रहा था। राजेश ने कहा कि पिता को समय पर इलाज मिला होता, तो शायद बच जाते। एंबुलेंस में कोई मेडिकल स्टाफ भी नहीं था, सिर्फ ड्राइवर मौजूद था। पेट दर्द गंभीर था, लेकिन रेफरल के समय ही एंबुलेंस की व्यवस्था ठीक से न होने से देरी हुई। छोटा बेटा ने बताया कि वे रास्ते में कई बार चिल्लाए, लेकिन ड्राइवर ने कहा कि स्टेपनी लाने में समय लगेगा। करीब एक घंटे बाद जब वाहन आया, तो पिता की सांसें उखड़ चुकी थीं। परिवार ने तुरंत थाने में शिकायत दर्ज कराई। उन्होंने स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों पर भी आरोप लगाया कि सरकारी एंबुलेंस की मेंटेनेंस पर ध्यान नहीं दिया जाता। ओझा का शव पोस्टमार्टम के बाद परिवार को सौंप दिया गया। अंतिम संस्कार के दौरान गांव में सन्नाटा पसर गया। ग्रामीणों ने कहा कि ऐसी घटनाएं बार-बार हो रही हैं, लेकिन कोई सुधार नहीं होता।

गुना जिला अस्पताल पहुंचने पर डॉक्टरों ने कहा कि मरीज को ज्यादा देरी हो गई। प्रारंभिक जांच में पेट में इन्फेक्शन का पता चला था, जो समय पर इलाज से ठीक हो सकता था। लेकिन देरी ने सब बर्बाद कर दिया। ड्राइवर ने अपना बचाव किया। उसने कहा कि एंबुलेंस पुरानी है और स्टेपनी रखना उसका काम नहीं। निर्देश केवल मरीज को ले जाने का था। स्वास्थ्य विभाग के एक अधिकारी ने बताया कि जिले में 20 से ज्यादा सरकारी एंबुलेंस हैं, लेकिन रखरखाव की कमी है। वे कहते हैं कि बजट की कमी से वाहनों की नियमित जांच नहीं हो पाती। इस घटना के बाद विभाग ने जांच के आदेश दिए हैं। जिला कलेक्टर ने ड्राइवर को निलंबित करने पर विचार कर रहे हैं। लेकिन परिवार को न्याय कब मिलेगा, यह सवाल बना हुआ है।

यह घटना गुना में सियासत को भी गरमा रही है। स्थानीय कांग्रेस विधायक ऋषि अग्रवाल ने अस्पताल पहुंचकर परिवार से मुलाकात की। उन्होंने जिला कलेक्टर से फोन पर बात की और कहा कि यह स्वास्थ्य सेवाओं की विफलता है। अग्रवाल ने मांग की कि दोषी अधिकारियों पर एफआईआर दर्ज हो और मृतक परिवार को 10 लाख रुपये का मुआवजा दिया जाए। उन्होंने कहा कि भाजपा सरकार में स्वास्थ्य व्यवस्था ध्वस्त हो चुकी है। ग्रामीण क्षेत्रों में एंबुलेंस की कमी है और जो हैं, वे खराब हालत में। अग्रवाल ने सोशल मीडिया पर पोस्ट शेयर की, जिसमें लिखा कि गरीबों की जान की कीमत क्या है। विपक्ष ने इसे बड़ा मुद्दा बनाने की कोशिश की। पूर्व विधायक ने कहा कि चुनाव आने वाले हैं, लेकिन जनता की तकलीफें खत्म नहीं हो रही।

दूसरी ओर, जिला प्रशासन ने सफाई दी। कलेक्टर ने कहा कि जांच पूरी होने पर कार्रवाई होगी। ड्राइवर का बयान लिया जा रहा है। स्वास्थ्य विभाग ने एंबुलेंस की जांच टीम भेजी है। एक अधिकारी ने बताया कि जिले में 108 एंबुलेंस सेवा है, लेकिन सरकारी वाहनों की संख्या कम है। वे कहते हैं कि स्टेपनी जैसी बेसिक चीजें रखनी चाहिए, लेकिन संसाधनों की कमी है। ग्रामीणों ने भी प्रशासन पर निशाना साधा। एक बुजुर्ग ने कहा कि गांव में डॉक्टर नहीं, एंबुलेंस नहीं, फिर इलाज कैसे हो। म्याना स्वास्थ्य केंद्र पर सुविधाओं की कमी लंबे समय से है। परिवार ने कहा कि वे न्याय के लिए लड़ेंगे। बेटे ने कहा कि पिता की मौत पर कोई राजनीति नहीं, बस दोषियों को सजा मिले।

यह घटना मध्य प्रदेश के स्वास्थ्य तंत्र की कमियों को उजागर कर रही है। राज्य में ग्रामीण इलाकों में अस्पताल दूर हैं। नेशनल हाइवे पर यात्रा के दौरान ऐसी दुर्घटनाएं आम हैं। एक सर्वे के अनुसार, भारत में 10 प्रतिशत मरीज रास्ते में ही दम तोड़ देते हैं। एंबुलेंस में देरी या खराबी मुख्य कारण है। विशेषज्ञ कहते हैं कि गोल्डन ऑवर में मरीज को अस्पताल पहुंचाना जरूरी है, लेकिन व्यवस्था नहीं। गुना जैसे जिलों में सड़कें अच्छी हैं, लेकिन वाहनों का रखरखाव लापरवाह। एक एनजीओ ने कहा कि सरकारी एंबुलेंस में जीपीएस और मेडिकल किट अनिवार्य होनी चाहिए। इस घटना ने स्थानीय लोगों में आक्रोश बढ़ा दिया। वे कहते हैं कि गरीबों के लिए न्याय कठिन है।

परिवार अब विधवा पत्नी और बच्चों के भविष्य की चिंता में है। ओझा खेती पर निर्भर थे। बेटे मजदूरी करते हैं। उन्होंने कहा कि मुआवजा मिले तो अच्छा, लेकिन पिता की कमी कभी पूरी नहीं होगी। गांव में सभा हुई, जहां ग्रामीणों ने स्वास्थ्य केंद्र की मांग की। प्रशासन ने आश्वासन दिया कि सुधार होगा। लेकिन ऐसी घटनाएं बार-बार दोहराई जा रही हैं। कुछ महीने पहले ही भोपाल में एक एंबुलेंस दुर्घटना में दो मरीज मारे गए थे। वहां भी लापरवाही का आरोप लगा। मध्य प्रदेश सरकार ने स्वास्थ्य बजट बढ़ाने का दावा किया है, लेकिन जमीनी स्तर पर बदलाव नहीं।

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