सीएम उमर अब्दुल्ला और फारूख अब्दुल्ला रावण दहन में शामिल होंगे, जम्मू-कश्मीर में दशहरे की भव्य धूम
इस वर्ष दशहरे की तैयारियां सितंबर के अंत से ही शुरू हो गईं। जम्मू शहर में परेड ग्राउंड, गांधी नगर दशहरा ग्राउंड और कोल कंडोली जैसे स्थानों पर भव्य रामलीला का मंच
दो अक्टूबर 2025 को पूरे भारत में दशहरा पर्व की धूम मची हुई है। यह विजयादशमी का दिन है, जब अच्छाई की बुराई पर जीत का उत्सव मनाया जाता है। जम्मू-कश्मीर में भी यह त्योहार खास अंदाज में मनाया जा रहा है। यहां की वादियों में रंग-बिरंगे मेले, रामलीला के मंचन और रावण दहन की तैयारियां जोरों पर हैं। खास बात यह है कि जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला और पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. फारूख अब्दुल्ला रावण दहन समारोह में हिस्सा लेंगे। यह आयोजन श्रीनगर के शेर-ए-कश्मीर स्टेडियम में होगा, जहां कश्मीरी पंडित समुदाय के साथ मिलकर वे इस परंपरा को निभाएंगे। यह न केवल धार्मिक उत्सव है, बल्कि सामाजिक एकता का प्रतीक भी है। जम्मू-कश्मीर में दशहरा हिंदू-मुस्लिम भाईचारे की मिसाल पेश करता है, जहां मुस्लिम कारीगर दशकों से रावण, मेघनाथ और कुंभकर्ण के पुतले बना रहे हैं। आइए इस पर्व की पृष्ठभूमि, तैयारियों और नेताओं की भूमिका को विस्तार से समझें।
दशहरा, जिसे विजयादशमी भी कहा जाता है, हिंदू पंचांग के आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को मनाया जाता है। इस वर्ष यह दो अक्टूबर को पड़ रहा है। यह नवरात्रि के नौ दिनों के बाद दसवां दिन है। पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान राम ने इसी दिन लंका के राक्षस राजा रावण का वध किया था। रामायण में वर्णित यह घटना अच्छाई की बुराई पर विजय का प्रतीक है। दूसरी ओर, देवी दुर्गा ने महिषासुर का संहार किया। जम्मू-कश्मीर जैसे विविधतापूर्ण राज्य में दशहरा रामलीला और दुर्गा पूजा दोनों रूपों में मनाया जाता है। जम्मू क्षेत्र में रामलीला का बोलबाला है, जबकि कश्मीर घाटी में कश्मीरी पंडित समुदाय रामनवमी की तरह दशहरा को महत्व देता है। यहां रावण दहन के साथ-साथ सामुदायिक भोज और सांस्कृतिक कार्यक्रम भी होते हैं।
इस वर्ष दशहरे की तैयारियां सितंबर के अंत से ही शुरू हो गईं। जम्मू शहर में परेड ग्राउंड, गांधी नगर दशहरा ग्राउंड और कोल कंडोली जैसे स्थानों पर भव्य रामलीला का मंचन हो रहा है। प्रशासन ने सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए हैं। हजारों श्रद्धालु इन आयोजनों में शामिल हो रहे हैं। जम्मू के अलावा, कठुआ, सांबा और राजौरी जैसे जिलों में भी 50 से अधिक स्थानों पर रावण दहन होगा। श्रीनगर में कश्मीरी पंडित संगठन ने 2007 से लगातार यह उत्सव मना रहे हैं। इस बार शेर-ए-कश्मीर स्टेडियम में 50 फुट ऊंचा रावण का पुतला जलाया जाएगा। कार्यक्रम में राम-सीता के चरित्रों को जीवंत करने वाले कलाकारों के साथ आतिशबाजी और लोक नृत्य भी होंगे। कश्मीर घाटी में नौ दिनों तक चली नवरात्रि के बाद यह चरमोत्कर्ष है।
इस दशहरे की खासियत मुस्लिम कारीगरों का योगदान है। जम्मू के गियासुद्दीन खान और उनके परिवार ने 40 वर्षों से रावण के पुतले बना रहे हैं। वे बांस, कपड़े और कागज से विशाल प्रतिमाएं तैयार करते हैं। इस वर्ष भी उन्होंने 50 आयोजनों के लिए पुतले बनाए। गियासुद्दीन कहते हैं कि यह उनका धंधा नहीं, बल्कि भाईचारा है। हिंदू भाइयों के लिए काम करना उन्हें गर्व महसूस कराता है। यह परंपरा 1980 के दशक से चली आ रही है। कश्मीर में 1990 के दशक में पंडितों का पलायन हुआ, लेकिन दशहरा की परंपरा नहीं रुकी। मुस्लिम भाई इसकी जिम्मेदारी संभालते रहे। यह उदाहरण पूरे देश को एकता का संदेश देता है।
मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला का इस आयोजन में शामिल होना सामाजिक सद्भाव का प्रतीक है। उमर अब्दुल्ला जम्मू-कश्मीर नेशनल कॉन्फ्रेंस के उपाध्यक्ष हैं और अक्टूबर 2024 में वे फिर से मुख्यमंत्री बने। वे 2009 से 2015 तक भी इस पद पर रहे। उनके पिता डॉ. फारूख अब्दुल्ला पूर्व मुख्यमंत्री हैं और नेशनल कॉन्फ्रेंस के अध्यक्ष। फारूख अब्दुल्ला ने 1982 से 2002 तक तीन बार मुख्यमंत्री का दायित्व निभाया। दोनों ही नेता कश्मीरी मुस्लिम परिवार से हैं, लेकिन वे हिंदू त्योहारों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं। एक अक्टूबर को उमर अब्दुल्ला ने दशहरा की पूर्व संध्या पर संदेश जारी किया। उन्होंने कहा कि यह पर्व सत्य, धर्म और न्याय के मूल्यों को मजबूत करता है। विपक्षी दलों के साथ मिलकर वे राज्य को एकजुट करने का प्रयास कर रहे हैं।
डॉ. फारूख अब्दुल्ला ने भी महानवमी और दशहरा पर बधाई संदेश दिया। उन्होंने कहा कि ये त्योहार अच्छाई की बुराई पर जीत का प्रतीक हैं। वे शांति, समृद्धि और भाईचारे की कामना की। फारूख अब्दुल्ला ने कश्मीरी पंडितों को वापस लौटने का आह्वान किया। पिछले वर्ष दशहरा पर उन्होंने कहा था कि पंडित भाइयों का घर लौटना समय आ गया है। नई सरकार उनके पुनर्वास के लिए हर इंतजाम करेगी। हिंदू-मुस्लिम एकता का नारा देते हुए उन्होंने शेर-ए-कश्मीर का प्रसिद्ध उद्घोष दोहराया, हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, आपस में सब भाई-भाई। यह बयान जम्मू के लोगों को आश्वस्त करने के लिए था, जहां बीजेपी मजबूत है। फारूख अब्दुल्ला ने कहा कि नेशनल कॉन्फ्रेंस जम्मू की दुश्मन नहीं, बल्कि सबको साथ ले चलेगी।
श्रीनगर के शेर-ए-कश्मीर स्टेडियम में रावण दहन का आयोजन कश्मीरी पंडित सभा द्वारा किया जा रहा है। यहां उमर और फारूख अब्दुल्ला मुख्य अतिथि होंगे। वे पुतले जलाने के बाद संबोधन देंगे। यह आयोजन 2024 के विधानसभा चुनाव के बाद पहला बड़ा सामुदायिक कार्यक्रम है। चुनाव में नेशनल कॉन्फ्रेंस ने 43 सीटें जीतीं और कांग्रेस के साथ गठबंधन कर सरकार बनाई। उमर अब्दुल्ला ने गंदरबल से जीत हासिल की। वे राज्य की बहाली और विकास पर फोकस कर रहे हैं। दशहरा पर उनका संदेश था कि यह पर्व हमें कठिनाइयों के सामने डटे रहना सिखाता है। लेफ्टिनेंट गवर्नर मनोज सिन्हा ने भी बधाई दी और एकता पर जोर दिया।
जम्मू-कश्मीर में दशहरा केवल धार्मिक नहीं, सांस्कृतिक भी है। जम्मू में रामलीला के मंचनों में हजारों लोग जुटते हैं। परेड ग्राउंड पर 70 फुट ऊंचा रावण पुतला जलाया जाएगा। सुरक्षा के लिए पुलिस ने चेकपॉइंट लगाए हैं। कश्मीर में पंडितों के अलावा मुस्लिम परिवार भी उत्सव में शरीक होते हैं। 1990 के पलायन के बाद भी यह परंपरा बची रही। कश्मीर लाइफ और न्यूज18 जैसी मीडिया ने मुस्लिम कारीगरों की कहानियां उजागर कीं। गियासुद्दीन का परिवार जम्मू में पुतले बनाकर ट्रक से श्रीनगर भेजता है। वे कहते हैं कि त्योहार सबका है।
इस दशहरे का महत्व इसलिए भी ज्यादा है क्योंकि जम्मू-कश्मीर में हाल के वर्षों में शांति स्थापित हो रही है। 2019 में अनुच्छेद 370 हटने के बाद पहला विधानसभा चुनाव 2024 में हुआ। नई सरकार राज्य की बहाली पर काम कर रही है। उमर अब्दुल्ला ने बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों का हवाई सर्वेक्षण किया और राहत पहुंचाई। फारूख अब्दुल्ला ने सेब बागान प्रभावित किसानों के लिए आवाज उठाई। दशहरा पर वे एकता का संदेश देकर राजनीतिक माहौल को सकारात्मक बनाएंगे। कश्मीरी पंडितों का पुनर्वास उनकी प्राथमिकता है। डॉगरी, बौद्ध और अन्य समुदायों को साथ लेने का वादा किया है।
दशहरा का संदेश कालातीत है। यह बुराई पर अच्छाई की जीत सिखाता है। जम्मू-कश्मीर जैसे संवेदनशील क्षेत्र में यह सामंजस्य बढ़ाता है। बच्चे रामलीला देखकर प्रेरित होते हैं, महिलाएं दुर्गा पूजा में शक्ति का आह्वान करती हैं। मेले में खिलौने, मिठाइयां और सांस्कृतिक प्रदर्शनियां होती हैं। पर्यटन विभाग ने भी प्रचार किया है। यह पर्व आर्थिक गतिविधियां बढ़ाता है। कारीगरों को रोजगार मिलता है।
उमर और फारूख अब्दुल्ला का रावण दहन में शामिल होना ऐतिहासिक है। यह अब्दुल्ला परिवार की परंपरा है। शेख अब्दुल्ला, फारूख के पिता, ने भी एकता पर जोर दिया। उमर का जन्म इंग्लैंड में हुआ, लेकिन वे कश्मीर से जुड़े हैं। वे युवाओं को प्रेरित करते हैं। दशहरा पर वे कहेंगे कि राज्य सबका है। यह आयोजन मीडिया में छाया रहेगा। इंडिया टीवी ने इसे हेडलाइन बनाया। कश्मीर रीडर और द कश्मीर मॉनिटर ने बधाई संदेशों को कवर किया।
जम्मू-कश्मीर का दशहरा देश को एकता का पैगाम देता है। मुश्किलों के बावजूद परंपराएं जिंदा हैं। उमर सरकार विकास और सद्भाव पर काम करेगी। पंडितों की वापसी से घाटी फिर से रंगीन हो जाएगी। यह पर्व नई शुरुआत का संकेत है। सबको दशहरे की बधाई। अच्छाई हमेशा जीतेगी।
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