Politics: इटावा कथावाचक कांड पर संजय निषाद की दो टूक: 'यह संविधान के खिलाफ, दोषियों पर होगी सख्त कार्रवाई'।
योगी सरकार के मंत्री संजय निषाद ने इटावा कांड की निंदा की, बोले- 'जातीय उत्पीड़न बर्दाश्त नहीं, एकता के लिए बना है संविधान'...
उत्तर प्रदेश के इटावा जिले के दांदरपुर गांव में यादव कथावाचकों के साथ हुई बदसलूकी और अमानवीय व्यवहार की घटना ने न केवल स्थानीय स्तर पर, बल्कि राष्ट्रीय राजनीति में भी तूफान खड़ा कर दिया है। इस मामले ने जातीय तनाव, सामाजिक समानता, और कानून-व्यवस्था पर सवाल उठाए हैं। योगी आदित्यनाथ सरकार में मत्स्य पालन मंत्री और निषाद पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष संजय निषाद ने इस घटना पर कड़ा रुख अपनाते हुए एबीपी न्यूज से बातचीत में कहा, "मैं इसकी कड़े शब्दों में निंदा करता हूं। यह उचित नहीं है। सभी को जीने का अधिकार है। मेरे यहां तो निषाद समाज संस्कृत का प्रचार करता है, निषाद पंडित हैं। यह जांच का विषय है, और जो दोषी होंगे, उन पर सख्त कार्रवाई होगी। अगर ऐसा ही होता रहा, तो पिछड़े अलग हो जाएंगे, दलित अलग हो जाएंगे, और अपर कास्ट अलग हो जाएंगे। संविधान तो समाज को एक करने के लिए बना था।" इस बयान ने इस मामले को और गंभीर बना दिया है, क्योंकि यह घटना अब सामाजिक एकता और संवैधानिक मूल्यों की रक्षा के सवाल से जुड़ गई है।
यह विवाद 21 जून 2025 को इटावा के बकेवर थाना क्षेत्र के दांदरपुर गांव में शुरू हुआ, जहां श्रीमद्भागवत कथा के लिए औरैया के अछल्दा से आए कथावाचक मुकुट मणि यादव और उनके सहायक संत कुमार यादव के साथ कुछ लोगों ने कथित तौर पर मारपीट की। आरोप है कि कथावाचकों ने अपनी जाति 'यादव' बताई, जिसके बाद उन्हें अपमानित किया गया, उनकी चोटी और बाल काटे गए, और एक महिला के पैर छूने व नाक रगड़ने के लिए मजबूर किया गया। कुछ रिपोर्ट्स में यह भी दावा किया गया कि कथावाचकों पर पेशाब छिड़का गया। यह पूरी घटना कैमरे में रिकॉर्ड हो गई और वीडियो के सोशल मीडिया पर वायरल होने के बाद पूरे प्रदेश में आक्रोश फैल गया।
पुलिस ने त्वरित कार्रवाई करते हुए चार आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया है, और राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने इटावा के एसएसपी से 10 दिनों के भीतर कार्रवाई की रिपोर्ट मांगी है। हालांकि, इस मामले ने नया मोड़ तब लिया, जब गांव की एक महिला, रेनू तिवारी, ने कथावाचक मुकुट मणि और उनके सहायक पर छेड़खानी का आरोप लगाया। रेनू ने दावा किया कि कथा के पहले दिन भोजन कराने के दौरान कथावाचक ने उनकी उंगली पकड़कर बदतमीजी की कोशिश की थी। इस आरोप ने मामले को और जटिल बना दिया है, क्योंकि अब दोनों पक्ष अपनी-अपनी बात को सही ठहराने में जुट गए हैं।
- संजय निषाद का बयान
निषाद पार्टी के अध्यक्ष और योगी सरकार में कैबिनेट मंत्री संजय निषाद ने इस घटना को संविधान के मूल सिद्धांतों के खिलाफ बताया। उन्होंने कहा कि उनकी पार्टी निषाद समाज को संस्कृत और धार्मिक कार्यों से जोड़ने का प्रयास कर रही है, और इस तरह की घटनाएं सामाजिक एकता को कमजोर करती हैं। संजय निषाद का यह बयान महत्वपूर्ण है, क्योंकि निषाद पार्टी योगी सरकार में बीजेपी की सहयोगी है, और उनकी यह टिप्पणी सरकार के लिए दबाव बढ़ा सकती है। उन्होंने जोर देकर कहा कि इस मामले की गहन जांच होनी चाहिए और दोषियों को सजा मिलनी चाहिए, ताकि भविष्य में ऐसी घटनाएं न हों।
संजय निषाद का यह बयान उनकी पहले की विवादास्पद टिप्पणियों से अलग है। उदाहरण के लिए, महाकुंभ में भगदड़ की घटना पर उनके "छोटी-मोटी घटना" वाले बयान ने विवाद खड़ा किया था, जिसके बाद उन्हें सफाई देनी पड़ी थी। इस बार, उन्होंने साफ तौर पर सामाजिक एकता और संवैधानिक मूल्यों की बात की, जो उनके समुदाय और राजनीतिक गठबंधन के लिए एक संतुलित रुख दर्शाता है।
इस घटना ने उत्तर प्रदेश की राजनीति को गरमा दिया है। समाजवादी पार्टी (सपा) के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने इस मामले को जातीय उत्पीड़न का उदाहरण बताते हुए योगी सरकार पर निशाना साधा। उन्होंने सोशल मीडिया पर लिखा, "यह वर्चस्ववादी और सामंती सोच की शर्मनाक बानगी है।" सपा के सांसद जितेंद्र दोहरे, विधायक राघवेंद्र गौतम, और जिला अध्यक्ष प्रदीप शाक्य ने इटावा के एसएसपी से मुलाकात कर कठोर कार्रवाई की मांग की। सपा ने इसे पिछड़ा, दलित, और अल्पसंख्यक (PDA) समुदायों के खिलाफ हमला करार दिया।
दूसरी ओर, ब्राह्मण महासभा ने कथावाचकों पर छेड़खानी का आरोप लगाते हुए मामले की निष्पक्ष जांच की मांग की है। महासभा के प्रदेश अध्यक्ष अरुण दुबे ने कहा कि कथावाचकों ने अपनी जाति छिपाई और महिलाओं के साथ अभद्र व्यवहार किया, जिसके बाद ग्रामीणों ने गुस्से में कार्रवाई की। उन्होंने चेतावनी दी कि एकतरफा कार्रवाई बर्दाश्त नहीं की जाएगी। विश्व यादव परिषद ने भी इस मामले में कथावाचकों का समर्थन करते हुए आंदोलन की चेतावनी दी है। संगठन के अध्यक्ष अवधेश यादव ने इसे हत्या के प्रयास के समान बताया और कठोर कार्रवाई की मांग की। यह घटना जातीय तनाव और सामाजिक समानता के मुद्दों को उजागर करती है। कथावाचकों के साथ मारपीट और अपमान को यादव समुदाय ने अपने खिलाफ हमले के रूप में देखा है, जबकि ब्राह्मण महासभा का कहना है कि कथावाचकों के व्यवहार ने विवाद को जन्म दिया। यह स्थिति उत्तर प्रदेश में पहले से मौजूद जातीय विभाजन को और गहरा सकती है।
पुलिस ने चार आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया है, लेकिन रेनू तिवारी के छेड़खानी के आरोपों ने जांच को और जटिल बना दिया है। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की नोटिस ने भी पुलिस पर दबाव बढ़ाया है। विशेषज्ञों का कहना है कि इस मामले में निष्पक्ष जांच और दोनों पक्षों की सुनवाई जरूरी है, ताकि सच सामने आए और सामाजिक तनाव कम हो। सोशल मीडिया पर वायरल वीडियो ने इस मामले को राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा का विषय बना दिया। कई यूजर्स ने इसे संविधान और मानवाधिकारों का उल्लंघन बताया, जबकि कुछ ने कथावाचकों के खिलाफ लगे आरोपों की जांच की मांग की। एक यूजर ने लिखा, "यह घटना दिखाती है कि हमारा समाज आज भी जातिगत भेदभाव से मुक्त नहीं हुआ है।" संजय निषाद का बयान इस बात की ओर इशारा करता है कि इस तरह की घटनाएं सामाजिक एकता को खतरे में डाल सकती हैं। उन्होंने संविधान के मूल्यों पर जोर देते हुए कहा कि समाज को एकजुट करने की जरूरत है। यह घटना सरकार और समाज के लिए एक चेतावनी है कि जातीय भेदभाव और हिंसा को रोकने के लिए ठोस कदम उठाने होंगे। स्कूलों और समुदायों में जागरूकता अभियान, निष्पक्ष जांच, और कठोर कानूनी कार्रवाई इस दिशा में महत्वपूर्ण हो सकती है।
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