भारत बुलडोजर से नहीं, कानून से चलता है- CJI बीआर गवई का मॉरीशस में दिया बयान, विध्वंस न्याय पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले की याद दिलाई।
मॉरीशस की राजधानी पोर्ट लुईस में एक अंतरराष्ट्रीय व्याख्यान के दौरान भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) भूषण रामकृष्ण गवई ने एक ऐसा बयान दिया, जो न केवल भारतीय न्याय व्यवस्था
मॉरीशस की राजधानी पोर्ट लुईस में एक अंतरराष्ट्रीय व्याख्यान के दौरान भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) भूषण रामकृष्ण गवई ने एक ऐसा बयान दिया, जो न केवल भारतीय न्याय व्यवस्था की मजबूती को रेखांकित करता है, बल्कि कार्यपालिका की मनमानी पर भी करारा प्रहार करता है। 3 अक्टूबर 2025 को 'सिर मॉरिस रॉल्ट मेमोरियल लेक्चर 2025' में बोलते हुए CJI गवई ने कहा कि भारत का कानूनी तंत्र कानून के शासन से निर्देशित होता है, न कि 'बुलडोजर के शासन' से। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले का जिक्र किया, जिसमें अवैध विध्वंस को 'बुलडोजर न्याय' करार देते हुए इसे असंवैधानिक ठहराया गया था। यह बयान उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में अपराधियों के घरों पर बुलडोजर चलाने की प्रथा पर सवाल खड़े करता है, जहां बिना सुनवाई के संपत्ति नष्ट की जाती रही है। CJI ने जोर देकर कहा कि कार्यपालिका न्यायाधीश, जूरी और फांसी देने वाले का एक साथ काम नहीं कर सकती। यह बयान मॉरीशस के राष्ट्रपति धरमबीर गोकुल, प्रधानमंत्री नवीनचंद्र रामगूलाम और चीफ जस्टिस रेहाना मंगली गुलबुल की मौजूदगी में दिया गया, जो भारत-मॉरीशस संबंधों को मजबूत करने का प्रतीक है।
यह व्याख्यान 'सबसे बड़े लोकतंत्र में कानून का शासन' विषय पर था। सिर मॉरिस रॉल्ट मॉरीशस के पूर्व चीफ जस्टिस थे, जिन्होंने 1978 से 1982 तक सेवा की। CJI गवई तीन दिवसीय आधिकारिक यात्रा पर मॉरीशस पहुंचे थे, जहां उन्होंने महात्मा गांधी जयंती के अवसर पर गांधी प्रतिमा पर पुष्प अर्पित किया। लेक्चर में उन्होंने भारतीय संविधान की मूल संरचना का जिक्र किया। 1973 के केशवानंद भारती मामले का हवाला देते हुए कहा कि यह फैसला संसद की संविधान संशोधन की शक्ति को सीमित करता है। उन्होंने मेनका गांधी मामले (1978) का भी उल्लेख किया, जहां व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार को विस्तार दिया गया। CJI ने कहा कि कानून का शासन केवल नियमों का समूह नहीं, बल्कि एक नैतिक और सामाजिक ढांचा है, जो समानता, गरिमा और अच्छे शासन को सुनिश्चित करता है। महात्मा गांधी और डॉ. बीआर अंबेडकर के योगदान का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि इनकी दृष्टि ने भारत को विविध समाज में न्यायपूर्ण व्यवस्था दी।
CJI गवई का बुलडोजर पर टिप्पणी उनके 2024 के फैसले से जुड़ी है। सुप्रीम कोर्ट ने नवंबर 2024 में एक ऐतिहासिक फैसले में कहा था कि अपराध के आरोपियों के घरों का विध्वंस बिना कानूनी प्रक्रिया के नहीं हो सकता। यह फैसला उत्तर प्रदेश के झांसी में एक मामले से शुरू हुआ, जहां एक आरोपी के घर को बिना नोटिस के ध्वस्त कर दिया गया था। कोर्ट ने इसे संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन माना, जो जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार की रक्षा करता है। फैसले में कहा गया कि विध्वंस से न केवल आरोपी, बल्कि उसके परिवार के सदस्य भी प्रभावित होते हैं, जो निर्दोष होते हैं। कार्यपालिका को जज, जूरी और एक्जीक्यूटर की भूमिका एक साथ निभाने का अधिकार नहीं। CJI गवई ने लेक्चर में कहा कि यह फैसला कानून के शासन का स्पष्ट संदेश था। उन्होंने कहा कि विध्वंस कानूनी प्रक्रिया को दरकिनार करता है और संपत्ति के मौलिक अधिकार (अनुच्छेद 300A) का हनन करता है। यह फैसला पूरे देश में लागू होगा, और राज्यों को नोटिस, सुनवाई और अपील का अवसर देना होगा।
भारत में बुलडोजर कार्रवाई की प्रथा 2022 से चर्चा में आई। उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में अपराधियों के घरों पर बुलडोजर चलाए गए। सरकार ने इसे 'माफिया विरोधी अभियान' बताया, लेकिन मानवाधिकार संगठनों ने इसे मनमाना बताया। Amnesty International ने कहा कि यह सांप्रदायिक आधार पर लक्षित था। मध्य प्रदेश और गुजरात में भी ऐसी कार्रवाइयां हुईं। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद यूपी सरकार ने दिशानिर्देश जारी किए। अब विध्वंस से पहले 15 दिन का नोटिस देना जरूरी है। CJI गवई ने लेक्चर में कहा कि कानूनी प्रक्रिया ही न्याय सुनिश्चित करती है। उन्होंने त्वरित तलाक (शायरा बानो मामला, 2017) को समाप्त करने और निजता के अधिकार (पुट्टास्वामी मामला, 2017) को मौलिक बनाने वाले फैसलों का भी जिक्र किया। इलेक्टोरल बॉन्ड योजना (2024) को असंवैधानिक ठहराने वाले फैसले का उल्लेख करते हुए कहा कि मनमानी समानता और न्याय के विरुद्ध है।
मॉरीशस यात्रा भारत-मॉरीशस संबंधों को मजबूत करने का अवसर थी। CJI गवई ने राष्ट्रपति गोकुल और प्रधानमंत्री रामगूलाम से मुलाकात की। दोनों देशों ने उपनिवेशवाद के कष्ट साझा किए। CJI ने कहा कि दोनों लोकतांत्रिक समाज हैं, जहां कानून सबके लिए बराबर है। लेक्चर में उन्होंने सामाजिक न्याय पर जोर दिया। कहा कि कानूनों ने ऐतिहासिक अन्याय सुधारा है, और हाशिए पर पड़े समुदायों ने कानून का सहारा लिया। राजनीतिक क्षेत्र में कानून का शासन अच्छे शासन का पैमाना है। उन्होंने कहा कि कानून का शासन सार्वभौमिक नहीं, बल्कि राजनीतिक संघर्षों और सांस्कृतिक मूल्यों से आकार लेता है। भारत में यह संवैधानिक मूल्यों से जुड़ा है। लेक्चर के बाद मॉरीशस चीफ जस्टिस ने CJI की सराहना की।
यह बयान भारत में बहस छेड़ रहा है। विपक्ष ने कहा कि यह योगी सरकार पर प्रहार है। कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने ट्वीट किया कि CJI ने साफ कहा कि बुलडोजर से नहीं, कानून से चलेगा देश। भाजपा ने कहा कि सरकार कानून का पालन करती है। विशेषज्ञों का कहना है कि यह फैसला कार्यपालिका-न्यायपालिका संतुलन बनाए रखेगा। CJI गवई ने कहा कि कानून का शासन प्रक्रियात्मक और पदार्थपूर्ण दोनों स्तरों पर काम करता है। यह राज्य की मनमानी रोकता है, समानता सुनिश्चित करता है। उन्होंने कहा कि न्यायपालिका ने कानून को सामाजिक, राजनीतिक और संवैधानिक बहस में उतारा है।
CJI गवई का कार्यकाल महत्वपूर्ण रहा। वे 2024 में CJI बने। दलित समुदाय से आने वाले पहले CJI हैं। उन्होंने कई ऐतिहासिक फैसले दिए। बुलडोजर फैसला उनमें प्रमुख है। लेक्चर में उन्होंने कहा कि यह फैसला उन्हें अत्यधिक संतुष्टि देता है। मॉरीशस यात्रा के दौरान उन्होंने महात्मा गांधी इंस्टीट्यूट में भाग लिया। यात्रा भारत की वैश्विक छवि मजबूत करती है। CJI ने कहा कि कानून का शासन लोकतंत्र की आत्मा है। यह बयान न केवल भारत, बल्कि दुनिया के लोकतंत्रों के लिए संदेश है।
What's Your Reaction?