जिग्नेश कविराज ने पिता के स्कूटर को दी अनोखी समाधि- खेरालु में बनाया यादगार स्मारक।
Gujarat News: गुजरात के मशहूर लोक गायक जिग्नेश कविराज ने अपने पिता के पुराने स्कूटर को एक अनोखे अंदाज में सम्मान देते हुए उसे समाधि दी। यह....
गुजरात के मशहूर लोक गायक जिग्नेश कविराज ने अपने पिता के पुराने स्कूटर को एक अनोखे अंदाज में सम्मान देते हुए उसे समाधि दी। यह स्कूटर उनके करियर की शुरुआत में गाँव-गाँव कार्यक्रमों के लिए सफर का साथी रहा। जिग्नेश ने अपने पैतृक गाँव खेरालु, मेहसाणा जिले में अपने घर के सामने इस स्कूटर का स्मारक बनाया। उन्होंने इस भावुक पल को सोशल मीडिया पर साझा किया, जिसे उनके प्रशंसकों ने खूब पसंद किया। जिग्नेश कविराज ने इंस्टाग्राम पर अपने पिता हसमुखभाई बारोट और उनके पुराने बजाज सुपर स्कूटर की तस्वीर साझा की। उन्होंने लिखा, "यह मेरे पिता का स्कूटर है, जिस पर हम दोनों मेरे करियर के शुरुआती दिनों में गाँव-गाँव कार्यक्रमों के लिए जाया करते थे। हमने इस स्कूटर को अपने घर के सामने एक स्मारक के रूप में स्थापित किया है।" यह स्कूटर 1980 और 1990 के दशक में मध्यमवर्गीय परिवारों का पसंदीदा वाहन था। जिग्नेश के लिए यह सिर्फ एक स्कूटर नहीं, बल्कि उनकी मेहनत और संघर्ष की कहानी का प्रतीक है।
जिग्नेश ने बताया कि उनके पिता और चाचा उन्हें इस स्कूटर पर बैठाकर छोटे-छोटे भजन और संगीतमय कार्यक्रमों में ले जाया करते थे। एक बार एक कार्यक्रम देर रात तक चला, और उन्हें बस स्टैंड पर पूरी रात बितानी पड़ी क्योंकि उनका गाँव दूर था। इस तरह की यादें इस स्कूटर को उनके लिए खास बनाती हैं।
खेरालु गाँव में जिग्नेश के परिवार ने इस स्कूटर को समाधि देने के लिए पूजा-अर्चना की। तस्वीरों में उनके पिता हसमुखभाई स्कूटर के पास पूजा करते नजर आए। परिवार ने इसे कबाड़ में देने या बेचने के बजाय स्मारक के रूप में संरक्षित करने का फैसला किया। यह अनोखा कदम भारतीय संस्कृति में प्रिय वस्तुओं को सम्मान देने की परंपरा को दर्शाता है।
जिग्नेश कविराज का जन्म 3 सितंबर 1988 को खेरालु, मेहसाणा में हुआ। संगीत उनके परिवार में विरासत की तरह रहा। उनके पिता हसमुखभाई, बड़े भाई विशालभाई, दादा और चाचा सभी संगीत से जुड़े थे। जिग्नेश को बचपन से ही गायन का शौक था, लेकिन परिवार चाहता था कि वह पढ़ाई पर ध्यान दे। फिर भी, जिग्नेश ने संगीत को चुना और आठवीं कक्षा के बाद पढ़ाई छोड़ दी।
13 साल की उम्र में एक शादी समारोह में जिग्नेश ने मणिराज बारोट का गाना "लिली तुवर सूकी तुवर" गाया, जिसे लोगों ने खूब पसंद किया। इसके बाद उनकी पहली ऑडियो कैसेट "दशमांणी माहेर" आई, जो लाखों लोगों तक पहुंची। इसके बाद जिग्नेश का नाम गुजरात में मशहूर हो गया। उनके गाने जैसे "हाथ मा छे व्हिस्की", "बेवफा तने दूर थी सलाम" और "मारा बर्थडे मा याद तारी आवी" ने उन्हें लोकप्रियता की नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया।
जिग्नेश ने गुजराती सिनेमा में भी काम किया। 2017 में उन्होंने "जानू मारी लाखोमा एक" और "जीव थी वाली मारी जानूडी" जैसी फिल्मों में गायन और अभिनय किया। वह हर साल 50-60 लाइव कार्यक्रम करते हैं, जिनमें नवरात्रि के गरबा और दांडिया शामिल हैं। वह न्यूजीलैंड, अमेरिका, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और दुबई जैसे देशों में भी प्रदर्शन कर चुके हैं।
2022 में जिग्नेश ने खेरालु से गुजरात विधानसभा चुनाव में निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में हिस्सा लिया। उन्होंने कहा, "खेरालु मेरा गाँव है, जहां से मुझे पहला समर्थन मिला। मैं इसे विकसित करना चाहता हूं।" हालांकि, वह किसी राजनीतिक दल से नहीं जुड़े।
जिग्नेश की इस भावुक पहल ने सोशल मीडिया पर तारीफ बटोरी। प्रशंसकों ने लिखा, "यह स्कूटर सिर्फ वाहन नहीं, बल्कि जिग्नेश के संघर्ष की कहानी है।" कई लोगों ने इसे भावनात्मक और प्रेरणादायक बताया।
जिग्नेश कविराज ने अपने पिता के स्कूटर को समाधि देकर एक अनोखा उदाहरण पेश किया है। यह स्कूटर उनके करियर की शुरुआत और पिता के साथ बिताए पलों का प्रतीक है। उनकी यह पहल न केवल उनके संघर्ष को दर्शाती है, बल्कि गुजराती संस्कृति और भावनाओं को भी सामने लाती है। जिग्नेश की गायकी और यह भावुक कदम उन्हें प्रशंसकों के दिलों में और खास बनाता है।
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