सिद्धार्थनगर: प्रसव के दौरान महिला की मौत पर परिजनों का आक्रोश, अस्पताल में तोड़फोड़, आरके अस्पताल सील, चार पर मुकदमा। 

उत्तर प्रदेश के सिद्धार्थनगर जिले में एक निजी अस्पताल में प्रसव के दौरान एक महिला की मौत हो गई। इस घटना से गुस्साए परिजनों ने अस्पताल में तोड़फोड़ कर दी। आरोप है कि अस्पताल प्रशासन

Sep 24, 2025 - 12:42
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सिद्धार्थनगर: प्रसव के दौरान महिला की मौत पर परिजनों का आक्रोश, अस्पताल में तोड़फोड़, आरके अस्पताल सील, चार पर मुकदमा। 
प्रसव के दौरान महिला की मौत पर परिजनों का आक्रोश, अस्पताल में तोड़फोड़, आरके अस्पताल सील, चार पर मुकदमा। 

उत्तर प्रदेश के सिद्धार्थनगर जिले में एक निजी अस्पताल में प्रसव के दौरान एक महिला की मौत हो गई। इस घटना से गुस्साए परिजनों ने अस्पताल में तोड़फोड़ कर दी। आरोप है कि अस्पताल प्रशासन ने महिला की मौत को छिपाने की कोशिश की, जिसके बाद जिला प्रशासन ने अस्पताल को सील कर दिया। मुख्य चिकित्सा अधिकारी ने तत्काल कार्रवाई करते हुए अस्पताल बंद कराने का आदेश जारी किया। यह मामला जिले के मुख्यालय स्थित आरके अस्पताल से जुड़ा है, जहां महाराजगंज जिले के रामशंकर मौर्य अपनी गर्भवती पत्नी सरिता मौर्य को प्रसव के लिए लेकर आए थे। सरिता की अचानक मौत के बाद पूरा परिवार सदमे में है। पुलिस ने अस्पताल संचालक और डॉक्टर समेत चार लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर लिया है।

घटना सोमवार की शाम की बताई जा रही है। रामशंकर मौर्य ने बताया कि वह अपनी पत्नी सरिता को, जो कई महीनों से गर्भवती थीं, आरके अस्पताल में भर्ती कराया। डॉक्टरों ने सामान्य प्रसव की बात कही, लेकिन कुछ घंटों बाद ही सरिता की हालत बिगड़ने लगी। परिजनों के अनुसार, प्रसव के दौरान ही सरिता को ज्यादा रक्तस्राव हो गया। डॉक्टरों ने तुरंत ऑपरेशन का फैसला लिया, लेकिन ऑपरेशन थिएटर में जाते ही सरिता की सांसें थम गईं। अस्पताल स्टाफ ने परिजनों को सूचना देने के बजाय शव को छिपाने की कोशिश की। रामशंकर ने कहा कि जब वे अंदर घुसे तो पत्नी का शव बेड पर पड़ा था और डॉक्टर मौके से फरार हो चुके थे। इस बात से गुस्साए परिजनों ने अस्पताल के सामान पर हाथ साफ कर दिया। उन्होंने कुर्सियां तोड़ीं, दवाइयों को फेंका और मुख्य द्वार पर हंगामा मचाया।

सूचना मिलते ही स्थानीय लोग भी अस्पताल पहुंच गए। ग्रामीणों ने डॉक्टरों पर लापरवाही का आरोप लगाया। एक प्रत्यक्षदर्शी ने बताया कि अस्पताल में सीसीटीवी कैमरे भी काम नहीं कर रहे थे, जो संदेह को और बढ़ा रहा है। परिजनों का कहना है कि सरिता पूरी तरह स्वस्थ थीं और उनकी सभी जांच रिपोर्टें सामान्य थीं। फिर भी अस्पताल ने सस्ते इलाज के नाम पर उन्हें भर्ती किया और गलत दवाएं दीं। रामशंकर ने कहा कि प्रसव के बाद बच्चा तो सुरक्षित पैदा हुआ, लेकिन मां की जान चली गई। नवजात शिशु को अब जिला अस्पताल में भर्ती कराया गया है, जहां उसकी हालत स्थिर है। परिवार ने मांग की है कि दोषी डॉक्टरों पर हत्या का केस दर्ज हो।

मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ. ओमप्रकाश ने घटना की पुष्टि करते हुए कहा कि उन्होंने तुरंत अस्पताल का निरीक्षण किया। जांच में पाया गया कि अस्पताल के पास प्रसव के लिए जरूरी सुविधाएं नहीं थीं। ऑक्सीजन सिलेंडर की कमी और अनुभवी डॉक्टरों की अनुपस्थिति ने स्थिति को और खराब किया। सीएमओ ने बताया कि अस्पताल को तत्काल सील कर दिया गया है और सभी मरीजों को जिला अस्पताल स्थानांतरित कर दिया गया। उन्होंने कहा कि सरिता की मौत ऑपरेशन के दौरान रक्त की कमी से हुई लगती है, लेकिन पोस्टमार्टम रिपोर्ट का इंतजार है। सीएमओ ने जिले भर के निजी अस्पतालों के खिलाफ सख्ती बरतने का ऐलान किया। उन्होंने कहा कि बिना लाइसेंस के प्रसव कराने वालों पर अब कोई रहम नहीं होगा।

पुलिस ने सदर थाने में मुकदमा दर्ज किया है। आरोपी चार नामजद हैं- अस्पताल संचालक रामकुमार, डॉक्टर राजेश कुमार, स्टाफ नर्स रानी और वार्ड बॉय शंकर। इसके अलावा सात अज्ञात लोगों पर भी कार्रवाई की जा रही है, जिनमें दो अन्य नर्सें और पांच वार्ड बॉय शामिल हैं। एसपी रामलखन सिंह ने कहा कि फरार आरोपियों की तलाश में टीमें गठित की गई हैं। उन्होंने परिजनों को न्याय का भरोसा दिलाया। शव को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया गया है। रिपोर्ट आने के बाद आगे की कार्रवाई होगी। पुलिस ने अस्पताल के रिकॉर्ड जब्त कर लिए हैं।

यह घटना सिद्धार्थनगर जिले में स्वास्थ्य सेवाओं पर सवाल खड़े कर रही है। जिला मुख्यालय होने के बावजूद निजी अस्पतालों में बुनियादी सुविधाओं की कमी आम शिकायत है। ग्रामीण क्षेत्रों से लोग सस्ते इलाज के चक्कर में ऐसे अस्पतालों पर भरोसा करते हैं, लेकिन कई बार यह जानलेवा साबित होता है। पिछले साल सिद्धार्थनगर में ही एक सरकारी अस्पताल में प्रसव के दौरान दो महिलाओं की मौत हो चुकी है, जिसके बाद बड़े प्रदर्शन हुए थे। उस समय भी लापरवाही के आरोप लगे थे। विशेषज्ञों का कहना है कि ग्रामीण इलाकों में प्रसव सेवाओं को मजबूत करने की जरूरत है। आयुष्मान भारत योजना के तहत निजी अस्पतालों को जोड़ा गया है, लेकिन निगरानी की कमी बनी हुई है।

परिजन अभी भी सदर थाने के बाहर धरने पर हैं। वे सीएमओ कार्यालय पहुंचे और न्याय की मांग की। रामशंकर के भाई ने कहा कि सरिता परिवार की इकलौती बहू थीं। उनकी मौत से पूरा घर उजड़ गया। उन्होंने मांग की है कि आरोपी डॉक्टरों को आजीवन कारावास हो। स्थानीय विधायक ने भी मामले में हस्तक्षेप की बात कही। उन्होंने सीएमओ से मिलकर जांच की मांग की। विपक्षी दल भी इस मुद्दे को उठा रहे हैं। समाजवादी पार्टी के एक नेता ने कहा कि योगी सरकार में स्वास्थ्य सेवाएं नाममात्र की हैं। उन्होंने विधानसभा में मामला उठाने का वादा किया।

जिला प्रशासन ने शांति बनाए रखने के लिए अतिरिक्त पुलिस बल तैनात किया है। सीएमओ ने एक समिति गठित की है, जो निजी अस्पतालों का ऑडिट करेगी। सरिता के परिवार को सरकारी सहायता देने का आश्वासन दिया गया है। नवजात बच्चे के भविष्य के लिए परिवार को पेंशन और मासिक सहायता मिलेगी। डॉक्टरों का कहना है कि प्रसव के दौरान जटिलताएं आना सामान्य है, लेकिन लापरवाही से बचाव जरूरी है। अस्पताल स्टाफ ने सफाई दी कि वे पूरी कोशिश कर रहे थे, लेकिन संसाधनों की कमी थी। फिर भी, परिजनों का गुस्सा शांत नहीं हो रहा।

यह घटना पूरे जिले में चर्चा का विषय बनी हुई है। सोशल मीडिया पर वीडियो वायरल हो गए हैं, जिसमें तोड़फोड़ के दृश्य दिख रहे हैं। कई लोग पुलिस की निष्क्रियता पर सवाल उठा रहे हैं। स्वास्थ्य विभाग ने जागरूकता अभियान चलाने का फैसला लिया है, ताकि लोग सरकारी अस्पतालों का ही सहारा लें। सिद्धार्थनगर जैसे सीमावर्ती जिले में महाराजगंज और नेपाल से मरीज आते हैं, इसलिए सुविधाओं का अभाव बड़ा मुद्दा है। सरकार ने कई योजनाएं शुरू की हैं, लेकिन जमीनी स्तर पर अमल धीमा है। उम्मीद है कि इस घटना से सबक लिया जाएगा और भविष्य में ऐसी त्रासदी न हो।

परिजनों ने बताया कि सरिता एक साधारण गृहिणी थीं। वे गांव में सबकी मदद करती थीं। उनकी मौत ने परिवार को तोड़ दिया। रामशंकर अब अकेले ही खेतीबाड़ी संभालेंगे। बच्चे की परवरिश एक चुनौती होगी। स्थानीय पंचायत ने परिवार को हर संभव सहयोग का वादा किया है। पुलिस जांच पूरी होने पर कोर्ट में चार्जशीट दाखिल करेगी। सीएमओ ने कहा कि दोषी साबित होने पर लाइसेंस रद्द होगा। यह मामला उत्तर प्रदेश में मातृ मृत्यु दर को कम करने के प्रयासों को प्रभावित कर सकता है। राज्य सरकार ने लक्ष्य रखा है कि 2025 तक मातृ मृत्यु दर शून्य हो, लेकिन ऐसी घटनाएं बाधा बन रही हैं।

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