इंसानी खोपड़ी का सूप पीने वाले नरभक्षी राजा कोलंदर के खौफ के साम्राज्य का अंत, लखनऊ कोर्ट ने सुनाई उम्रकैद की सजा। 

उत्तर प्रदेश की राजधानी, एक बार फिर सुर्खियों में है, लेकिन इस बार कारण है एक ऐसा अपराधी जिसने न केवल इंसानों की हत्या की, बल्कि...

May 24, 2025 - 11:13
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इंसानी खोपड़ी का सूप पीने वाले नरभक्षी राजा कोलंदर के खौफ के साम्राज्य का अंत, लखनऊ कोर्ट ने सुनाई उम्रकैद की सजा। 

लखनऊ: उत्तर प्रदेश की राजधानी, एक बार फिर सुर्खियों में है, लेकिन इस बार कारण है एक ऐसा अपराधी जिसने न केवल इंसानों की हत्या की, बल्कि अपनी क्रूरता और नरभक्षी प्रवृत्तियों से पूरे देश को हिलाकर रख दिया। राम निरंजन उर्फ राजा कोलंदर, जिसे लोग "नरपिशाच" और "खोपड़ी संग्रहकर्ता" के नाम से जानते हैं, को लखनऊ की सीजेएम कोर्ट ने 25 साल पुराने डबल मर्डर केस में उम्रकैद की सजा सुनाई है। यह सजा 1999 में मनोज सिंह और उनके ड्राइवर रवि श्रीवास्तव की हत्या के मामले में दी गई है, जिसमें राजा कोलंदर और उसके साले बच्छराज को दोषी पाया गया। दोनों पर ढाई-ढाई लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया गया है।

राजा कोलंदर, जिसका असली नाम राम निरंजन कोल है, प्रयागराज के नैनी क्षेत्र के शंकरगढ़ का रहने वाला था। वह कभी केंद्रीय आयुध भंडार (COD) छिवकी में एक साधारण कर्मचारी था। बाहर से सामान्य दिखने वाला यह शख्स अंदर से एक खूंखार सीरियल किलर और नरभक्षी था। उसकी क्रूरता की कहानी तब सामने आई जब 2000 में पत्रकार धीरेंद्र सिंह की हत्या के बाद पुलिस ने उसके फार्महाउस की तलाशी ली। तलाशी के दौरान पुलिस को 14 मानव खोपड़ियां और कई नरकंकाल मिले, जो राजा कोलंदर की बीमार मानसिकता और नरभक्षी प्रवृत्तियों का भयावह सबूत थे। राजा कोलंदर पर आरोप था कि वह अपने शिकार की हत्या करने के बाद उनके सिर काटता, मस्तिष्क निकालकर उसका सूप बनाता और उसे बड़े चाव से पीता था। उसका दावा था कि मानव मस्तिष्क का सूप पीने से उसका दिमाग तेज होता है। इतना ही नहीं, वह खोपड़ियों को संग्रह करता और उन्हें अपने फार्महाउस में सजाता था। कुछ खोपड़ियों पर उसने नाम और जाति के आधार पर निशान बनाए थे, जो उसकी बीमार मानसिकता को और उजागर करता है।

  • 1999 का डबल मर्डर केस: एक भयावह अपराध

यह मामला 1999 का है, जब 22 वर्षीय मनोज कुमार सिंह और उनके ड्राइवर रवि श्रीवास्तव लखनऊ के चारबाग रेलवे स्टेशन से छह यात्रियों को लेकर रीवा के लिए निकले थे। इन यात्रियों में एक महिला भी शामिल थी। उनकी आखिरी लोकेशन रायबरेली के हरचंदपुर में एक चाय की दुकान पर मिली। इसके बाद वे लापता हो गए। तीन दिन तक कोई सुराग न मिलने पर मनोज के पिता शिव हर्ष सिंह ने नाका थाने में गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज कराई। बाद में, पुलिस ने प्रयागराज के शंकरगढ़ के जंगलों में दोनों के क्षत-विक्षत शव बरामद किए। जांच में पता चला कि राजा कोलंदर और उसके साले बच्छराज ने इन दोनों की हत्या की थी। पुलिस के अनुसार, राजा कोलंदर ने मनोज और रवि को टैक्सी में बैठाकर रायबरेली ले जाया, जहां जंगल में उनकी बेरहमी से हत्या कर दी गई। उनकी खोपड़ियों को उबालकर सूप बनाया गया और शवों के बाकी हिस्सों को जंगल में फेंक दिया गया। इस मामले में पुलिस ने 21 मार्च 2001 को चार्जशीट दाखिल की, लेकिन कानूनी पेचीदगियों के कारण सुनवाई मई 2013 में शुरू हो सकी।

  • पत्रकार धीरेंद्र सिंह की हत्या: क्रूरता का खुलासा

राजा कोलंदर की क्रूरता का असली चेहरा 2000 में पत्रकार धीरेंद्र सिंह की हत्या के बाद सामने आया। धीरेंद्र को राजा कोलंदर की आपराधिक गतिविधियों की जानकारी हो गई थी, जिसके कारण उसने उन्हें अपना दुश्मन मान लिया। 14 दिसंबर 2000 को धीरेंद्र को राजा ने अपने पिपरी फार्महाउस पर बुलाया। वहां बच्छराज ने धीरेंद्र को गोली मार दी। उनकी सिर कटी लाश यूपी-मध्य प्रदेश सीमा पर रीवा के पास मिली, लेकिन सिर का कोई सुराग नहीं मिला। पुलिस जांच में धीरेंद्र का सामान राजा के फार्महाउस से बरामद हुआ, और उसने हत्या की बात कबूल कर ली। तलाशी के दौरान 14 मानव खोपड़ियां और नरकंकाल मिले, जिनमें से कुछ को उसने अपने फार्महाउस में दफनाया था। इस खुलासे ने पूरे देश को स्तब्ध कर दिया।

  • राजा कोलंदर की मानसिकता: एक बीमार दिमाग

राजा कोलंदर की सोच और व्यवहार सामान्य से परे थे। वह खुद को "राजा" मानता था और अपने शिकार को अपनी "अदालत" में सजा देता था। उसने अपनी पत्नी का नाम फूलन देवी और अपने बेटों का नाम अदालत और जमानत रखा था, जो उसकी विचित्र मानसिकता को दर्शाता है। वह अपने शिकार को जाति के आधार पर चुनता और उनकी खोपड़ियों को रंगकर, नाम लिखकर सजाता था। उसका मानना था कि कुछ खास जातियों के लोगों का मस्तिष्क अधिक तेज होता है, और वह इसे खाकर अपनी बुद्धि बढ़ाने की कोशिश करता था। उसके फार्महाउस में मिली खोपड़ियों में से एक उसके सहकर्मी काली प्रसाद श्रीवास्तव की थी, जिसे उसने इसलिए मारा क्योंकि वह कायस्थ बिरादरी से था। राजा का दावा था कि कायस्थों का दिमाग तेज होता है, और उसने काली प्रसाद के मस्तिष्क को उबालकर सूप बनाया। राजा कोलंदर का नाम आज भी प्रयागराज और आसपास के इलाकों में खौफ का पर्याय है। उसकी कहानी नेटफ्लिक्स की डॉक्यूमेंट्री "Indian Predator: Butcher of Delhi" से प्रेरित एक अन्य सीरियल किलर की कहानी से मिलती-जुलती है। उसकी क्रूरता ने न केवल अपराध की दुनिया में, बल्कि सामाजिक और मनोवैज्ञानिक चर्चाओं में भी एक नई बहस छेड़ दी।

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इस मामले की सुनवाई लखनऊ की एडीजे कोर्ट नंबर-5 में जज रोहित सिंह की अध्यक्षता में हुई। 25 साल की लंबी कानूनी प्रक्रिया के बाद, 23 मई 2025 को राजा कोलंदर और बच्छराज को उम्रकैद की सजा सुनाई गई। दोनों पर ढाई-ढाई लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया गया, जिसे न देने पर अतिरिक्त सजा भुगतनी होगी। इससे पहले, 2012 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने धीरेंद्र सिंह की हत्या के मामले में भी दोनों को उम्रकैद की सजा सुनाई थी। धीरेंद्र सिंह के परिवार ने कोर्ट के फैसले पर संतुष्टि जताई, लेकिन उनका कहना है कि अभी पूरा न्याय नहीं मिला है। राजा कोलंदर पर 20 से ज्यादा हत्याओं का आरोप है, और कई मामले अभी भी लंबित हैं। पीड़ित परिवारों का मानना है कि इस तरह के अपराधी को और सख्त सजा मिलनी चाहिए थी।

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