मध्य प्रदेश में दिल दहला देने वाली घटना- सरकारी नौकरी के डर से नवजात को जिंदा दफनाया, ग्रामीणों ने बचाई जान

घटना छिंदवाड़ा जिले के धनौरा थाना क्षेत्र के नंदनवाड़ी गांव की है। आरोपी पति बबलू दंडोलिया (38 वर्ष) और पत्नी राजकुमारी (28 वर्ष) दोनों ही प्राथमिक सरकारी स्कूल में कक्षा 3 के शिक्षक हैं। वे 2009 से नौ

Oct 3, 2025 - 14:00
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मध्य प्रदेश में दिल दहला देने वाली घटना- सरकारी नौकरी के डर से नवजात को जिंदा दफनाया, ग्रामीणों ने बचाई जान
मध्य प्रदेश में दिल दहला देने वाली घटना- सरकारी नौकरी के डर से नवजात को जिंदा दफनाया, ग्रामीणों ने बचाई जान

मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा जिले से एक ऐसी घटना सामने आई है, जो मानवता को शर्मसार कर देती है। एक सरकारी स्कूल शिक्षक दंपति ने अपनी नौकरी बचाने के डर से अपने तीन दिन के नवजात बेटे को जिंदा दफना दिया। लेकिन चमत्कारिक रूप से बच्चे की रोने की आवाज सुबह होने पर ग्रामीणों को सुनाई दी, जिन्होंने उसे पत्थरों के नीचे से निकालकर जिला अस्पताल पहुंचाया। बच्चा अब खतरे से बाहर है, लेकिन उसके शरीर पर कीड़े के काटने के निशान हैं। यह घटना राज्य की दो-बच्चा नीति से जुड़ी है, जो सरकारी कर्मचारियों पर लागू होती है। पुलिस ने दंपति को गिरफ्तार कर लिया है और हत्या के प्रयास का मामला दर्ज किया है। यह मामला समाज में फैली कुरूप मानसिकता को उजागर करता है।

घटना छिंदवाड़ा जिले के धनौरा थाना क्षेत्र के नंदनवाड़ी गांव की है। आरोपी पति बबलू दंडोलिया (38 वर्ष) और पत्नी राजकुमारी (28 वर्ष) दोनों ही प्राथमिक सरकारी स्कूल में कक्षा 3 के शिक्षक हैं। वे 2009 से नौकरी में हैं। दंपति के पहले से तीन बच्चे हैं- एक 11 वर्षीय बेटी, सात वर्षीय बेटी और चार वर्षीय बेटा। मध्य प्रदेश सरकार की नीति के अनुसार, सरकारी कर्मचारी दो से अधिक बच्चे होने पर नौकरी से वंचित हो सकते हैं या निलंबित हो सकते हैं। इस डर से दंपति ने गर्भावस्था को गुप्त रखा। 23 सितंबर 2025 को राजकुमारी ने घर पर ही चौथे बच्चे- एक बेटे- को जन्म दिया। जन्म के तीन दिन बाद, 26 सितंबर की अहले सुबह, दंपति बच्चे को लेकर पास के जंगल में पहुंचे। वहां उन्होंने नवजात को एक उथली कब्र में दफना दिया और ऊपर से भारी पत्थर रख दिए।

पुलिस के अनुसार, बबलू ने पूछताछ में कबूल किया कि वे नौकरी गंवाने के डर से यह कदम उठाने को मजबूर हो गए। राजकुमारी ने भी अपना अपराध स्वीकार किया। घटना के बाद दंपति ने किसी को कुछ नहीं बताया। लेकिन सुबह करीब सात बजे, गांव के कुछ ग्रामीण जंगल में टहल रहे थे। अचानक उन्हें पत्थरों के नीचे से एक कमजोर रोने की आवाज सुनाई दी। वे दौड़े और पत्थर हटाकर बच्चे को बाहर निकाला। नवजात का शरीर खून से सना था, चेहरे और शरीर पर चींटियों और कीड़ों के काटने के निशान थे। ठंडी रात में वह लगभग दम तोड़ चुका था। ग्रामीणों ने तुरंत उसे नजदीकी स्वास्थ्य केंद्र ले जाकर प्राथमिक उपचार कराया, फिर छिंदवाड़ा जिला अस्पताल रेफर किया। डॉक्टरों ने बताया कि बच्चा अब स्थिर है और ऑक्सीजन पर है। उसके फेफड़ों में मिट्टी घुस गई थी, लेकिन समय पर बचाव से जान बच गई।

घटना की सूचना मिलते ही पुलिस हरकत में आ गई। बैतखापाहा थाना प्रभारी अनिल राठौर ने बताया कि ग्रामीणों की शिकायत पर जांच शुरू हुई। दंपति के घर की तलाशी ली गई, जहां से बच्चे के कपड़े और अन्य सबूत मिले। बबलू और राजकुमारी ने हिरासत में अपना जुर्म कबूल कर लिया। शुरू में बच्चे को छोड़ने का मामला दर्ज किया गया था, लेकिन बचाव के बाद इसे हत्या के प्रयास (IPC धारा 307) में बदल दिया गया। अमरवारा एसडीओपी कल्याणी बरकड़े ने कहा कि जांच जारी है और दंपति को न्यायालय में पेश किया जाएगा। पुलिस ने दो-बच्चा नीति के दुरुपयोग पर भी सवाल उठाए हैं।

मध्य प्रदेश में सरकारी कर्मचारियों के लिए दो-बच्चा नीति 2001 से लागू है। इसके तहत, स्थानीय निकाय, सरकारी नौकरी या प्रमोशन के लिए दो से अधिक जीवित बच्चे न होने चाहिए। शिक्षकों पर यह सख्ती से लागू होता है। राज्य सरकार का कहना है कि यह जनसंख्या नियंत्रण के लिए है। लेकिन कई मामलों में यह नीति विवादास्पद रही है। एनसीआरबी के आंकड़ों के अनुसार, मध्य प्रदेश में नवजातों को छोड़ने या मारने के मामले सबसे ज्यादा हैं। 2024 में 150 से अधिक ऐसे केस दर्ज हुए। विशेषज्ञों का मानना है कि आर्थिक दबाव और सामाजिक पूर्वाग्रह इसकी वजह हैं। इस घटना ने नीति की समीक्षा की मांग उठाई है। विपक्षी दलों ने सरकार पर लापरवाही का आरोप लगाया है।

दंपति के पड़ोसियों ने बताया कि वे सामान्य परिवार लगते थे। बबलू गांव के स्कूल में पढ़ाते हैं और राजकुमारी भी सहायक शिक्षिका हैं। गर्भावस्था छिपाने के लिए राजकुमारी ने छुट्टी नहीं ली। जन्म के बाद बच्चे को दूध पिलाया, लेकिन नौकरी का डर हावी हो गया। एक ग्रामीण ने कहा, "हमने कभी सोचा नहीं था कि ऐसा होगा। बच्चे की रोने की आवाज ने हमें चौंका दिया।" बचाव का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया, जिसमें बच्चा कांपता नजर आ रहा है। कई यूजर्स ने इसे इंसानियत की हत्या बताया।

बच्चे का भविष्य अब अनिश्चित है। चाइल्ड हेल्पलाइन को सूचित किया गया है। अस्पताल के चिकित्सकों ने कहा कि बच्चा पूरी तरह स्वस्थ होने पर डिस्चार्ज होगा। पुलिस ने परिवार के अन्य सदस्यों से पूछताछ की, लेकिन कोई संलिप्तता नहीं पाई। यह घटना समाज को झकझोर रही है। आयुर्वेद और आधुनिक चिकित्सा के दौर में भी मानवीय संवेदनाएं कम हो रही हैं। विशेषज्ञों ने सलाह दी कि सरकारी योजनाओं से परिवार नियोजन को बढ़ावा दें, लेकिन दंडात्मक नीतियां न अपनाएं।

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