हरिद्वार अस्पताल में अमानवीय लापरवाही- गर्भवती महिला को भर्ती से किया इनकार, फर्श पर तड़पकर दिया बच्चे को जन्म
महिला दर्द से कराहती रही। उसके साथ आई आशा कार्यकर्ता और परिजनों ने कई बार मदद की गुहार लगाई। आशा वर्कर ने तो जोखिम उठाकर डिलीवरी में सहायता की, लेकिन अस्पताल का कोई स्टाफ आगे न
उत्तराखंड के हरिद्वार जिले से एक ऐसी घटना सामने आई है, जो न केवल स्वास्थ्य व्यवस्था की पोल खोलती है, बल्कि इंसानियत को भी शर्मसार कर देती है। यहां जिला महिला अस्पताल में एक गरीब गर्भवती महिला को प्रसव पीड़ा होने पर भर्ती करने से साफ मना कर दिया गया। दर्द से तड़पती महिला को मजबूरन अस्पताल के फर्श पर ही बच्चे को जन्म देना पड़ा। परिजनों के अनुसार, ड्यूटी पर तैनात डॉक्टर ने महिला को बाहर निकाल दिया और कहा कि यहां डिलीवरी नहीं होगी। इस अमानवीय व्यवहार ने पूरे समाज को झकझोर दिया है।
घटना 30 सितंबर 2025 की रात की है। ब्रह्मपुरी कॉलोनी की रहने वाली महिला, जिसका नाम पूतुल बताया जा रहा है, अपने पति के साथ रात करीब नौ बजकर तीस मिनट पर जिला महिला अस्पताल पहुंची। वह एक दैनिक मजदूर की पत्नी है और आर्थिक रूप से कमजोर परिवार से ताल्लुक रखती है। प्रसव पीड़ा शुरू हो चुकी थी, लेकिन अस्पताल पहुंचते ही स्टाफ ने भर्ती करने से इनकार कर दिया। ड्यूटी पर मौजूद संविदा डॉक्टर सोनाली ने कथित तौर पर कहा कि महिला की ड्यू डेट अभी आई नहीं है और यहां डिलीवरी नहीं की जाएगी। उन्होंने महिला को वापस घर जाने की सलाह दी। परिजन गिड़गिड़ाते रहे, लेकिन डॉक्टर ने टस से मस न किया।
महिला दर्द से कराहती रही। उसके साथ आई आशा कार्यकर्ता और परिजनों ने कई बार मदद की गुहार लगाई। आशा वर्कर ने तो जोखिम उठाकर डिलीवरी में सहायता की, लेकिन अस्पताल का कोई स्टाफ आगे नहीं आया। करीब चार घंटे तक महिला वेटिंग वार्ड के बाहर फर्श पर लेटी रही। आखिरकार, रात डेढ़ बजे के आसपास उसने फर्श पर ही बच्चे को जन्म दिया। जन्म के बाद भी स्टाफ की लापरवाही जारी रही। एक नर्स ने कथित तौर पर व्यंग्य भरे लहजे में कहा, 'मजा आया? और बच्चा पैदा करेगी?' यह सुनकर परिजन स्तब्ध रह गए। उन्होंने पूछा कि अगर बच्चे को कुछ हो जाता तो जिम्मेदारी कौन लेता?
घटना का पूरा वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया। वीडियो में महिला दर्द से पछाड़ें मारती नजर आ रही है, जबकि स्टाफ दूर खड़ा तमाशा देख रहा है। आशा वर्कर वीडियो बना रही थी, तो डॉक्टर ने उसका फोन छीनने की कोशिश की। परिजनों ने बताया कि सुबह होते ही वे अस्पताल पहुंचे, तो महिला ने सारी घटना सुनाई। एक परिजन सोनी ने कहा, 'जब हम सुबह आए, तो उसने बताया कि किसी ने बेड पर लिटाने तक की जहमत नहीं उठाई। डिलीवरी के बाद नर्स का वह ताना सुनकर हमारा खून खौल गया। क्या कोई ऐसा बोल सकता है?' सोनी ने सख्त कार्रवाई की मांग की है।
यह घटना सामने आते ही सोशल मीडिया पर तीखी प्रतिक्रियाएं आने लगीं। कई यूजर्स ने इसे स्वास्थ्य व्यवस्था पर करारा प्रहार बताया। एक यूजर ने लिखा, 'विश्वगुरु बनने की बातें तो ठीक हैं, लेकिन गरीबों को फर्श पर तड़पने दो?' दूसरे ने कहा, 'अस्पताल जहां जान बचाने के लिए होते हैं, वहां मौत का इंतजार करवाना क्या न्याय है?' विपक्षी दलों ने भी सरकार को घेरा। कांग्रेस नेता ने ट्वीट किया, 'धामी सरकार के अच्छे दिन यही हैं? उत्तराखंड भ्रष्टाचार का केंद्र बन गया है।' भाजपा सरकार पर लापरवाही के आरोप लगे।
प्रशासन ने घटना पर तुरंत संज्ञान लिया। हरिद्वार के मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ. आरके सिंह ने प्रारंभिक रिपोर्ट ली और विस्तृत जांच के आदेश दिए। उन्होंने कहा, 'महिला अस्पताल से रिपोर्ट मांगी गई है। दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई होगी।' जांच के बाद संविदा डॉक्टर सोनाली की सेवाएं समाप्त कर दी गईं। दो नर्सों को नोटिस जारी किया गया। एक नर्स के खिलाफ प्रतिकूल एंट्री दर्ज की गई। महिला आयोग की अध्यक्ष कुसुम कंडवाल ने भी हस्तक्षेप किया। उन्होंने सीएमओ और जिला मजिस्ट्रेट कमल जोशी को निर्देश दिए कि जांच कराई जाए और दोषियों पर नियमानुसार कार्रवाई हो। कंडवाल ने कहा, 'गर्भवती महिला के साथ ऐसा अमानवीय व्यवहार बर्दाश्त नहीं। भविष्य में ऐसी घटनाएं न हों, इसके लिए कदम उठाए जाएंगे।'
जांच रिपोर्ट में सामने आया कि डॉक्टर सोनाली ने महिला को भर्ती न करने का कारण ड्यू डेट न आना बताया, लेकिन परिजनों का कहना है कि पीड़ा स्पष्ट थी। अस्पताल प्रशासन ने स्वीकार किया कि लापरवाही हुई है। गनीमत रही कि जच्चा-बच्चा दोनों सुरक्षित हैं। बच्ची स्वस्थ है और मां की हालत स्थिर बताई जा रही है। लेकिन यह घटना सवाल खड़ी करती है कि सरकारी अस्पतालों में आपातकालीन सुविधाएं क्यों अपर्याप्त हैं? आशा कार्यकर्ताओं को प्रशंसा मिली, जिन्होंने संकट में सहारा दिया। एक आशा वर्कर ने कहा, 'हमने जोखिम लिया, लेकिन डॉक्टरों ने तो देखा तक नहीं।'
उत्तराखंड में स्वास्थ्य सेवाओं की यह कोई पहली घटना नहीं है। पहले भी कई मामलों में लापरवाही सामने आई है। कोविड काल में तो सैकड़ों परिवारों ने ऐसी यंत्रणाएं झेलीं। लेकिन यह घटना विशेष रूप से दर्दनाक है क्योंकि यह एक नई जिंदगी से जुड़ी है। विशेषज्ञों का कहना है कि सरकारी अस्पतालों में स्टाफ की कमी, संसाधनों का अभाव और संवेदनशीलता की कमी बड़ी समस्या है। राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के तहत गर्भवती महिलाओं के लिए मुफ्त डिलीवरी और देखभाल का प्रावधान है, लेकिन जमीनी स्तर पर अमल नहीं हो रहा।
परिजनों ने अब न्याय की उम्मीद जताई है। पति ने कहा, 'हम गरीब हैं, लेकिन हमारी बेटी की जिंदगी बच गई। बस दोषियों को सजा मिले, ताकि कोई और परिवार न टूटे।' समाजसेवी संगठनों ने भी अस्पताल का घेराव करने की चेतावनी दी है। यह घटना पूरे देश के लिए एक आईना है। जहां एक ओर सरकार स्वास्थ्य बजट बढ़ाने की बात करती है, वहीं दूसरी ओर बुनियादी सुविधाएं चरमरा रही हैं। हरिद्वार जैसे तीर्थ शहर में ऐसी घटना होना और भी शर्मनाक है, जहां लाखों यात्री आते हैं।
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