सुप्रीम कोर्ट का आदेश- महिला आईपीएस अधिकारी को झूठे केस के लिए पति और ससुराल से सार्वजनिक माफी मांगने का निर्देश।
Order Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेश की एक महिला आईपीएस अधिकारी और उनके माता-पिता को उनके पूर्व पति और ससुराल वालों से झूठे आपराधिक....
सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेश की एक महिला आईपीएस अधिकारी और उनके माता-पिता को उनके पूर्व पति और ससुराल वालों से झूठे आपराधिक मामले दर्ज करने के लिए बिना शर्त सार्वजनिक माफी मांगने का आदेश दिया। कोर्ट ने कहा कि इन झूठे आरोपों के कारण पति को 109 दिन और उनके पिता को 103 दिन जेल में बिताने पड़े, जिससे उन्हें मानसिक और शारीरिक आघात पहुंचा। सुप्रीम कोर्ट ने माफी को हिंदी और अंग्रेजी के एक-एक प्रमुख राष्ट्रीय अखबार में प्रकाशित करने का निर्देश दिया। मामला मध्य प्रदेश की एक वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी से जुड़ा है, जिन्होंने अपने पति और ससुराल वालों के खिलाफ वैवाहिक विवाद के बाद कई आपराधिक मामले दर्ज किए थे। इनमें दहेज प्रताड़ना (IPC धारा 498A), बलात्कार, और अन्य गंभीर आरोप शामिल थे। कोर्ट की जांच में पाया गया कि ये आरोप झूठे और आधारहीन थे, जिन्हें बदले की भावना से दर्ज किया गया था। इनके कारण पति को 109 दिन और उनके पिता को 103 दिन जेल में बिताने पड़े। सुप्रीम कोर्ट ने इन आरोपों को "निंदनीय और दुर्भावनापूर्ण" करार देते हुए कहा कि इनसे परिवार को अपूरणीय क्षति हुई।
मुख्य न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ और जस्टिस जे. बी. पारदीवाला की पीठ ने इस मामले को सुनते हुए कहा कि झूठे आरोपों ने न केवल कानून का दुरुपयोग किया, बल्कि निर्दोष लोगों को गंभीर मानसिक और सामाजिक नुकसान भी पहुंचाया। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि इस तरह की कार्रवाइयां मानसिक क्रूरता की श्रेणी में आती हैं।
- सुप्रीम कोर्ट के प्रमुख निर्देश
सार्वजनिक माफी:
सुप्रीम कोर्ट ने आईपीएस अधिकारी और उनके माता-पिता को अपने पूर्व पति, ससुर, और ससुराल के अन्य सदस्यों से बिना शर्त माफी मांगने का आदेश दिया। माफी का नोटिस हिंदी और अंग्रेजी के एक-एक प्रमुख राष्ट्रीय अखबार के राष्ट्रीय संस्करण में प्रकाशित करना होगा। इसमें उन सभी आरोपों को झूठा स्वीकार करना होगा, जिनके कारण परिवार को नुकसान हुआ।
विवाह रद्द करना:
कोर्ट ने दोनों पक्षों के बीच सहमति के आधार पर विवाह को रद्द कर दिया। यह फैसला हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13B के तहत लिया गया, जिसमें आपसी सहमति से तलाक की अनुमति दी जाती है। कोर्ट ने यह भी सुनिश्चित किया कि माफी का प्रकाशन इस फैसले का हिस्सा होगा।
कानूनी कार्रवाई पर टिप्पणी:
कोर्ट ने कहा कि झूठे आरोप लगाना न केवल कानून का दुरुपयोग है, बल्कि यह सामाजिक और पारिवारिक ताने-बाने को भी नुकसान पहुंचाता है। मुख्य न्यायाधीश ने टिप्पणी की, "इन मुकदमों ने पति और उनके परिवार को जो शारीरिक और मानसिक आघात दिया, उसकी कोई भरपाई नहीं हो सकती।"
- झूठे आरोप
महिला आईपीएस अधिकारी ने अपने पति, ससुर, और ससुराल के अन्य सदस्यों के खिलाफ कई आपराधिक मामले दर्ज किए थे। इनमें शामिल थे:
दहेज प्रताड़ना (IPC धारा 498A): अधिकारी ने आरोप लगाया कि उनके पति और ससुराल वाले दहेज के लिए मानसिक और शारीरिक प्रताड़ना करते थे।
बलात्कार और अन्य गंभीर आरोप: कुछ मामलों में गंभीर आपराधिक आरोप शामिल थे, जो जांच में झूठे पाए गए।
आपराधिक साजिश: ससुराल वालों पर साजिश रचने का भी आरोप लगाया गया था।
जांच में इनमें से कोई भी आरोप सिद्ध नहीं हुआ। सुप्रीम कोर्ट ने पाया कि ये मामले व्यक्तिगत रंजिश और बदले की भावना से प्रेरित थे। कोर्ट ने यह भी नोट किया कि अधिकारी ने अपनी स्थिति और प्रभाव का दुरुपयोग कर इन मामलों को बढ़ावा दिया।
इस फैसले ने देश भर में व्यापक चर्चा छेड़ दी है। सोशल मीडिया पर कई यूजर्स ने इसे कानून के दुरुपयोग को रोकने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम बताया। कुछ लोगों ने इसे "न्याय की जीत" करार दिया, क्योंकि झूठे आरोपों के कारण निर्दोष लोगों को जेल में समय बिताना पड़ा।
हालांकि, कुछ संगठनों और कार्यकर्ताओं ने चिंता जताई कि यह फैसला वास्तविक पीड़िताओं के लिए दहेज प्रताड़ना कानून (IPC धारा 498A) के तहत शिकायत दर्ज करने को और जटिल कर सकता है। उनका कहना है कि इस तरह के फैसले से पीड़िताओं को अपनी आवाज उठाने में डर लग सकता है। दूसरी ओर, पुरुष अधिकार संगठनों ने इस फैसले का स्वागत किया और इसे झूठे मामलों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मिसाल बताया।
- कानून के दुरुपयोग पर सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में कानून के दुरुपयोग पर गंभीर चिंता जताई। कोर्ट ने कहा कि IPC की धारा 498A, जिसे महिलाओं को दहेज प्रताड़ना से बचाने के लिए बनाया गया था, का अक्सर गलत इस्तेमाल होता है। इस तरह के मामलों में निर्दोष लोगों को फंसाने की प्रवृत्ति को रोकने के लिए कोर्ट ने पहले भी कई दिशानिर्देश जारी किए हैं, जैसे कि 2017 के राजेश शर्मा बनाम उत्तर प्रदेश राज्य मामले में। उस फैसले में कोर्ट ने परिवार कल्याण समितियों के गठन का सुझाव दिया था, जिसे बाद में 2018 में संशोधित किया गया।
इस मामले में कोर्ट ने यह भी कहा कि झूठे आरोप लगाना अपने आप में मानसिक क्रूरता है। पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट के एक फैसले (देवेश यादव बनाम मीनल) का हवाला देते हुए कोर्ट ने बताया कि झूठी शिकायतें और आपराधिक कार्रवाइयां पति और उनके परिवार के लिए मानसिक यातना का कारण बन सकती हैं।
- सुप्रीम कोर्ट ने माफी के नोटिस के लिए स्पष्ट दिशानिर्देश दिए:
माफी बिना शर्त होनी चाहिए और इसमें सभी झूठे आरोपों को स्पष्ट रूप से वापस लेना होगा।
इसे हिंदी और अंग्रेजी के एक-एक प्रमुख राष्ट्रीय अखबार में प्रकाशित करना होगा।
माफी में पति और ससुराल वालों को हुए मानसिक और शारीरिक नुकसान के लिए खेद व्यक्त करना होगा।
प्रकाशन की लागत आईपीएस अधिकारी और उनके माता-पिता को वहन करनी होगी।
कोर्ट ने यह भी सुनिश्चित किया कि माफी का प्रकाशन तलाक की प्रक्रिया पूरी होने से पहले हो, ताकि यह दोनों पक्षों के लिए एक निष्पक्ष समाधान का हिस्सा बने।
यह पहला मौका नहीं है जब कोर्ट ने झूठे आरोपों के लिए सख्त रुख अपनाया है। मई 2023 में दिल्ली की एक अदालत ने एक महिला वकील और उनके पिता के खिलाफ ससुर पर दुष्कर्म का झूठा आरोप लगाने के लिए FIR दर्ज करने का आदेश दिया था। उस मामले में भी कोर्ट ने कहा था कि झूठे आरोप लगाना अपराध है और इससे निर्दोष लोगों का अपमान होता है।
इसी तरह, सुप्रीम कोर्ट और विभिन्न हाई कोर्ट्स ने समय-समय पर दहेज प्रताड़ना कानून के दुरुपयोग पर चिंता जताई है। उदाहरण के लिए, 2010 और 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने इस कानून के गलत इस्तेमाल को रोकने के लिए दिशानिर्देश जारी किए थे।
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला कानून के दुरुपयोग को रोकने और निर्दोष लोगों को अनावश्यक परेशानी से बचाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। महिला आईपीएस अधिकारी द्वारा अपने पति और ससुराल वालों के खिलाफ झूठे आरोप लगाने के कारण उन्हें जेल में समय बिताना पड़ा और सामाजिक अपमान का सामना करना पड़ा। कोर्ट का यह आदेश कि माफी प्रमुख अखबारों में प्रकाशित की जाए, एक कड़ा संदेश देता है कि कानून का गलत इस्तेमाल बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।
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