Viral: ‘गोपाल’ की असल पहचान तजम्मुल, धार्मिक जांच पर सियासी तूफान, मुजफ्फरनगर ढाबा विवाद में हिन्दू संगठनों ने जताई नाराजगी।
उत्तर प्रदेश में कांवड़ यात्रा से पहले दिल्ली-देहरादून नेशनल हाइवे-58 पर स्थित ‘पंडित जी वैष्णो ढाबा’ पर धार्मिक पहचान को लेकर एक विवाद ...
मुजफ्फरनगर। उत्तर प्रदेश में कांवड़ यात्रा से पहले दिल्ली-देहरादून नेशनल हाइवे-58 पर स्थित ‘पंडित जी वैष्णो ढाबा’ पर धार्मिक पहचान को लेकर एक विवाद ने तूल पकड़ लिया। इस मामले में एक बड़ा खुलासा हुआ, जब ढाबे के एक कर्मचारी, जो खुद को ‘गोपाल’ बता रहा था, का असली नाम आधार कार्ड के अनुसार तजम्मुल निकला। तजम्मुल ने दावा किया कि ढाबा मालिक ने उसकी धार्मिक पहचान छिपाने के लिए उसे ‘गोपाल’ नाम से पेश करने और हिंदू प्रतीकों जैसे कड़ा पहनने का निर्देश दिया था। इस घटना ने न केवल साम्प्रदायिक तनाव को हवा दी, बल्कि राजनीतिक और सामाजिक स्तर पर भी गर्मागर्म बहस छेड़ दी। समाजवादी पार्टी (सपा) और ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) जैसे दलों ने इसकी तुलना आतंकवाद से की, जबकि हिंदू संगठनों ने इसे धार्मिक भावनाओं की रक्षा का अभियान बताया।
यह विवाद 28 जून 2025 को शुरू हुआ, जब कांवड़ यात्रा से पहले योग साधना यशवीर आश्रम के महंत स्वामी यशवीर महाराज के नेतृत्व में एक हिंदू संगठन ने दिल्ली-देहरादून हाइवे पर ढाबों की जांच शुरू की। उनका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना था कि कांवड़ यात्रा मार्ग पर स्थित ढाबे और होटल अपनी असली पहचान के साथ संचालित हों, ताकि श्रद्धालुओं की धार्मिक भावनाओं का सम्मान हो। इस अभियान के दौरान, ‘पंडित जी वैष्णो ढाबा’ पर पहुंची टीम ने कर्मचारियों से उनके आधार कार्ड मांगे। आरोप है कि एक कर्मचारी, जिसने खुद को ‘गोपाल’ बताया, ने आधार कार्ड दिखाने से इनकार कर दिया। इसके बाद स्थिति तनावपूर्ण हो गई, और संगठन के कार्यकर्ताओं ने कथित तौर पर कर्मचारी की धार्मिक पहचान की पुष्टि करने के लिए उसकी पैंट उतारने की कोशिश की। इस घटना का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया, जिसने विवाद को और भड़का दिया। बाद में, एबीपी न्यूज और अन्य मीडिया जांच में पता चला कि ‘गोपाल’ का असली नाम तजम्मुल है, जैसा कि उसके आधार कार्ड पर दर्ज है। तजम्मुल ने बताया कि ढाबा मालिक मोहम्मद सनोवर ने उसे हिंदू नाम अपनाने और कड़ा पहनने का निर्देश दिया था ताकि वह हिंदू ग्राहकों के बीच स्वीकार्य लगे।
- ढाबा मालिक और कर्मचारी का पक्ष
तजम्मुल के इस खुलासे ने मामले को नया मोड़ दे दिया। उसने कहा, “होटल मालिक ने मुझसे कहा कि तुम्हारा नाम गोपाल है, और तुम पंडित जी के लड़के कहलाओगे। उन्होंने मेरे हाथ में कड़ा भी पहनवाया ताकि मैं हिंदू लगूं।” ढाबे की मालकिन दीक्षा शर्मा हैं, लेकिन जमीन का मालिक एक मुस्लिम व्यक्ति बताया गया है। स्वामी यशवीर महाराज ने दावा किया कि इस तरह की गतिविधियां धार्मिक भावनाओं के साथ खिलवाड़ हैं और भारतीय दंड संहिता की धारा 420 (धोखाधड़ी) के तहत अपराध हैं। दूसरी ओर, ढाबा मैनेजर धर्मेंद्र भारद्वाज ने आरोप लगाया कि स्वामी यशवीर की टीम ने उनके साथ मारपीट की और कर्मचारियों के साथ अपमानजनक व्यवहार किया। इस शिकायत के आधार पर, पुलिस ने मालिक मोहम्मद सनोवर, मैनेजर धर्मेंद्र, और तीन अन्य लोगों के खिलाफ मारपीट और अपमानजनक व्यवहार का मुकदमा दर्ज किया।
विवाद के बाद, मुजफ्फरनगर पुलिस ने त्वरित कार्रवाई की। पुलिस ने स्वामी यशवीर के छह कार्यकर्ताओं—सुमित बहरागी, रोहित, विवेक, सुमित, सनी, और राकेश—को नोटिस जारी कर तीन दिनों के भीतर थाने में पेश होने को कहा। पुलिस अधीक्षक ने कहा, “किसी को भी कानून हाथ में लेने की अनुमति नहीं है। धार्मिक आधार पर जबरन पहचान की जांच स्वीकार्य नहीं है।” इसके अलावा, विवाद के बाद ‘पंडित जी वैष्णो ढाबा’ को बंद कर दिया गया। नए मैनेजर सुनील शर्मा ने बताया कि स्टाफ को बदल दिया गया है, और अब सभी कर्मचारी हिंदू हैं। हालांकि, ढाबे की दैनिक आय प्रभावित होने के कारण इसे बंद करना पड़ा। इस घटना ने राजनीतिक गलियारों में भी हलचल मचा दी। सपा के पूर्व सांसद एसटी हसन ने इस अभियान की तुलना आतंकवाद से की और कहा, “किसी का आधार कार्ड मांगना और पैंट उतारना गैरकानूनी है। यह पहलगाम जैसे हमलों से कम नहीं है।” AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने भी इसकी निंदा की और इसे मुस्लिम समुदाय को निशाना बनाने का प्रयास बताया।
वहीं, हिंदूवादी नेताओं ने इस अभियान का समर्थन किया। साध्वी प्राची ने स्वामी यशवीर के कदम की सराहना की और कहा कि कांवड़ यात्रा के दौरान श्रद्धालुओं की भावनाओं का सम्मान होना चाहिए। उन्होंने मुस्लिम नेताओं के बयानों पर पलटवार करते हुए कहा, “जो लोग धार्मिक भावनाओं का मजाक उड़ाते हैं, उन्हें जवाब देना होगा।” यह विवाद कांवड़ यात्रा के दौरान ढाबों पर नेमप्लेट लगाने के सरकारी आदेश से भी जुड़ा है। उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड सरकारों ने 2025 की कांवड़ यात्रा के लिए सभी ढाबा और दुकान मालिकों को अपनी असली पहचान और लाइसेंस प्रदर्शित करने का निर्देश दिया है। इस नियम का उद्देश्य पारदर्शिता और श्रद्धालुओं की भावनाओं का सम्मान करना है, लेकिन इसे कुछ नेताओं ने धार्मिक भेदभाव का आधार बताया। इस घटना ने कई सवाल खड़े किए हैं। पहला, क्या निजी व्यक्तियों या संगठनों को धार्मिक पहचान की जांच का अधिकार है? दूसरा, क्या ढाबा मालिक द्वारा कर्मचारी की पहचान छिपाने का प्रयास नैतिक और कानूनी रूप से उचित था? तीसरा, क्या इस तरह के अभियान साम्प्रदायिक सौहार्द को नुकसान पहुंचा सकते हैं?
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