देश- विदेश: प्राडा ने माना कि कोल्हापुरी चप्पल की नकल की, भारतीय कारीगरी को मिला सम्मान, कंपनी को मिली फटकार
महाराष्ट्र चैंबर ऑफ कॉमर्स, इंडस्ट्री एंड एग्रीकल्चर (MACCIA) ने इस मामले में तुरंत कदम उठाया। MACCIA के अध्यक्ष ललित गांधी ने 25 जून 2025 को प्राडा को एक ...
इटली के मशहूर लग्जरी फैशन ब्रांड प्राडा ने हाल ही में अपने स्प्रिंग-समर 2026 पुरुषों के फैशन शो में प्रदर्शित सैंडल्स को लेकर बड़ा खुलासा किया है। कंपनी ने स्वीकार किया कि ये सैंडल्स भारत की पारंपरिक कोल्हापुरी चप्पलों से प्रेरित हैं, जिन्हें महाराष्ट्र और कर्नाटक के कारीगर सदियों से बनाते आ रहे हैं। इस खुलासे से पहले प्राडा पर सांस्कृतिक चोरी (कल्चरल अप्रोप्रिएशन) का आरोप लगा था, क्योंकि कंपनी ने अपने शो में इन सैंडल्स को केवल "लेदर सैंडल्स" के रूप में पेश किया था, बिना भारतीय कारीगरी या कोल्हापुरी चप्पलों का जिक्र किए। महाराष्ट्र चैंबर ऑफ कॉमर्स, इंडस्ट्री एंड एग्रीकल्चर (MACCIA) की फटकार और सोशल मीडिया पर तीखी आलोचना के बाद प्राडा को अपनी प्रेरणा स्वीकार करनी पड़ी।
- कोल्हापुरी चप्पल: भारत की सांस्कृतिक धरोहर
कोल्हापुरी चप्पल केवल एक जूता नहीं, बल्कि भारत की सांस्कृतिक और कारीगरी की धरोहर का प्रतीक है। ये चप्पलें महाराष्ट्र के कोल्हापुर और आसपास के क्षेत्रों, साथ ही कर्नाटक के कुछ हिस्सों में, खासकर अथनी, निप्पाणी और मडभवी जैसे गांवों में, कारीगरों द्वारा हस्तनिर्मित की जाती हैं। इनका इतिहास 13वीं शताब्दी तक जाता है, जब इन्हें राजा बिज्जला और उनके मंत्री बसवन्ना के समय में डिजाइन किया गया था। ये चप्पलें अपनी सादगी, टिकाऊपन, और आराम के लिए जानी जाती हैं। इन्हें भैंस या गाय के चमड़े से बनाया जाता है, जिसे प्राकृतिक सब्जी रंगों से रंगा जाता है। एक जोड़ी चप्पल बनाने में 3 से 15 दिन तक का समय लगता है, और इसमें पूरी तरह से हस्तकला का उपयोग होता है।
कोल्हापुरी चप्पलों की खासियत इनका खुला डिजाइन, टी-स्ट्रैप, और पैरों के आकार के अनुरूप ढलने की क्षमता है। ये न केवल टिकाऊ होती हैं, बल्कि पर्यावरण के अनुकूल भी हैं, क्योंकि इन्हें बनाने में प्राकृतिक सामग्री का उपयोग होता है। 2019 में भारत सरकार ने कोल्हापुरी चप्पलों को भौगोलिक संकेतक (GI) टैग प्रदान किया, जो इसे महाराष्ट्र और कर्नाटक के आठ जिलों (प्रत्येक में चार) तक सीमित करता है। यह टैग इन चप्पलों की प्रामाणिकता और कारीगरों के अधिकारों की रक्षा करता है।
- प्राडा का फैशन शो और विवाद की शुरुआत
23 जून 2025 को मिलान फैशन वीक में प्राडा ने अपने स्प्रिंग-समर 2026 पुरुषों के कलेक्शन को पेश किया। इस शो में 56 लुक्स प्रदिए गए, जिनमें से कम से कम सात में मॉडल्स ने ऐसी सैंडल्स पहनी थीं, जो कोल्हापुरी चप्पलों से मिलती-जुलती थीं। इन सैंडल्स में खुला डिजाइन, टी-स्ट्रैप, और तन रंग का चमड़ा था, जो कोल्हापुरी चप्पलों की विशिष्ट विशेषताएं हैं। हालांकि, प्राडा ने अपने शो नोट्स में इन्हें केवल "लेदर सैंडल्स" कहा, बिना भारतीय कारीगरी या कोल्हापुर का कोई उल्लेख किए। इसके बाद सोशल मीडिया पर तीखी प्रतिक्रिया देखने को मिली। फैशन क्रिटिक डाइट साब्या और सेलिब्रिटी स्टाइलिस्ट अनाइता श्रॉफ अदजानिया जैसे लोगों ने प्राडा पर सांस्कृतिक चोरी का आरोप लगाया। एक यूजर ने X पर लिखा, "प्राडा SS26 में कोल्हापुरी चप्पल शामिल है, जो कोल्हापुर, महाराष्ट्र, भारत से उत्पन्न हुई है और अपनी जटिल डिजाइन और कारीगरी के लिए जानी जाती है। पश्चिमी फैशन उद्योग फिर से भारतीय फैशन की नकल कर रहा है।" कई यूजर्स ने इसे "नया फैशन उपनिवेशवाद" करार दिया, जिसमें पश्चिमी ब्रांड्स भारतीय डिजाइनों को बिना श्रेय दिए अपने नाम से बेचते हैं।
- महाराष्ट्र चैंबर ऑफ कॉमर्स की भूमिका
महाराष्ट्र चैंबर ऑफ कॉमर्स, इंडस्ट्री एंड एग्रीकल्चर (MACCIA) ने इस मामले में तुरंत कदम उठाया। MACCIA के अध्यक्ष ललित गांधी ने 25 जून 2025 को प्राडा को एक पत्र लिखा, जिसमें उन्होंने कोल्हापुरी चप्पलों की सांस्कृतिक और आर्थिक महत्ता पर जोर दिया। पत्र में लिखा गया, "कोल्हापुरी चप्पलें महाराष्ट्र, भारत की सांस्कृतिक पहचान का प्रतीक हैं। ये न केवल क्षेत्रीय पहचान को दर्शाती हैं, बल्कि कोल्हापुर और आसपास के जिलों में हजारों कारीगरों और उनके परिवारों की आजीविका को भी समर्थन देती हैं।"
- गांधी ने प्राडा से तीन मांगें कीं:
डिजाइन की प्रेरणा को सार्वजनिक रूप से स्वीकार करना।
स्थानीय कारीगरों के साथ सहयोग या उचित मुआवजे की संभावनाओं को तलाशना।
पारंपरिक ज्ञान और सांस्कृतिक अधिकारों का सम्मान करने वाली नैतिक फैशन प्रथाओं को अपनाना।
इसके साथ ही, MACCIA ने कोल्हापुरी चप्पलों को पेटेंट कराने का फैसला किया ताकि भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोका जा सके। गांधी ने कहा, "GI टैग भारत सरकार द्वारा दिया गया है, लेकिन यह अंतरराष्ट्रीय बाजार में पर्याप्त नहीं है। हमें अपने उत्पादों को पेटेंट कराना होगा।"
- प्राडा का जवाब
सोशल मीडिया और MACCIA की आलोचना के बाद प्राडा ने 28 जून 2025 को जवाब दिया। प्राडा ग्रुप के कॉर्पोरेट सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी हेड लोरेंजो बेर्तेली ने MACCIA को लिखे पत्र में कहा, "हम स्वीकार करते हैं कि प्राडा मेन्स 2026 फैशन शो में प्रदर्शित सैंडल्स भारत की पारंपरिक हस्तनिर्मित चप्पलों से प्रेरित हैं, जिनका सदियों पुराना इतिहास है। हम भारतीय कारीगरी के सांस्कृतिक महत्व को गहराई से मान्यता देते हैं।" हालांकि, प्राडा ने यह भी स्पष्ट किया कि ये सैंडल्स अभी डिजाइन चरण में हैं और इन्हें व्यावसायिक रूप से लॉन्च करने का फैसला नहीं लिया गया है। बेर्तेली ने कहा, "हम जिम्मेदार डिजाइन प्रथाओं, सांस्कृतिक सहभागिता, और भारतीय कारीगर समुदायों के साथ सार्थक संवाद को बढ़ावा देने के लिए प्रतिबद्ध हैं।" प्राडा ने भविष्य में स्थानीय कारीगरों के साथ सहयोग की संभावना पर भी विचार करने का वादा किया।
- कारीगरों की आवाज
कोल्हापुर और आसपास के क्षेत्रों के कारीगरों ने इस घटना पर मिश्रित प्रतिक्रिया दी। अथनी में कोल्हापुरी चप्पल क्लस्टर चलाने वाले शिवराज सौदागर ने कहा, "प्राडा ने हमारा ब्रांड वैश्विक स्तर पर ले जाकर एक तरह से हमारा भला किया है। लेकिन हम चाहते हैं कि सरकार और प्राडा हमें बेहतर डिजाइन और बिक्री में मदद करें। एक कारीगर को एक जोड़ी चप्पल के लिए 250-400 रुपये मिलते हैं, जबकि मध्यस्थ इसे 1,500-2,000 रुपये में बेचते हैं और रिटेलर इसे 4,000 रुपये तक बेचते हैं। अगर प्राडा इसे एक लाख रुपये में बेच रहा है, तो हमें इसका 10% भी मिल जाए, तो हम खुश होंगे।" वहीं, कोल्हापुर के एक अन्य कारीगर राजकुमार जयसिंगराव पवार ने कहा, "प्राडा हमारे डिजाइन की नकल कर सकता है, लेकिन हमारी तरह की सटीकता और कारीगरी कोई नहीं कर सकता।" कारीगरों ने यह भी मांग की कि प्राडा जैसे बड़े ब्रांड्स उनके साथ सहयोग करें ताकि उनकी आजीविका में सुधार हो।
इस मामले ने कानूनी और नैतिक सवालों को भी जन्म दिया है। भारत में कोल्हापुरी चप्पलों को 2018 में GI टैग मिला था, जो इसे अनधिकृत व्यावसायिक उपयोग से बचाता है। हालांकि, कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि GI कानून डिजाइन की नकल को पूरी तरह से रोक नहीं सकते। IP वकील प्रियंका खिमानी ने कहा, "अगर प्राडा 'कोल्हापुरी' नाम का उपयोग नहीं करता या कोल्हापुर से संबंधित दावा नहीं करता, तो कानूनी कार्रवाई मुश्किल है। लेकिन नैतिक जिम्मेदारी साफ है। अंतरराष्ट्रीय फैशन हाउस को उस सांस्कृतिक धरोहर को स्वीकार करना चाहिए, जिससे वे प्रेरणा लेते हैं।" महाराष्ट्र के संत रोहिदास लेदर इंडस्ट्रीज एंड चर्मकार डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन (LIDCOM) और कर्नाटक के LIDKAR, जो GI टैग के संयुक्त धारक हैं, इस मामले में कानूनी कार्रवाई पर विचार कर रहे हैं। LIDCOM के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, "हम कानूनी विकल्पों का मूल्यांकन कर रहे हैं। चूंकि कंपनी इटली में है, हम भारत के वाणिज्य मंत्रालय के माध्यम से उचित चैनल से संपर्क करेंगे।"
इस मामले ने राजनीतिक हलकों में भी हलचल मचाई। बीजेपी सांसद धनंजय महादिक ने कोल्हापुरी चप्पल कारीगरों के एक प्रतिनिधिमंडल के साथ महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस से मुलाकात की और इस मामले में हस्तक्षेप की मांग की। महादिक ने कहा, "हम बॉम्बे हाई कोर्ट में जनहित याचिका दायर करने की प्रक्रिया में हैं। यह हमारे कारीगरों के अधिकारों और उनकी आजीविका की रक्षा के लिए है।" राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (शरदचंद्र पवार) के विधायक रोहित पवार ने भी इस मामले को "सांस्कृतिक चोरी" करार दिया और सरकार से कार्रवाई की मांग की।
प्राडा का कोल्हापुरी चप्पलों से प्रेरणा लेना और फिर उसकी स्वीकारोक्ति भारतीय कारीगरी की वैश्विक पहचान का प्रतीक है। लेकिन यह मामला यह भी दिखाता है कि सांस्कृतिक धरोहर का सम्मान और कारीगरों की आजीविका की रक्षा कितनी जरूरी है। MACCIA और कारीगरों की मांग है कि प्राडा जैसे ब्रांड्स न केवल प्रेरणा को स्वीकार करें, बल्कि स्थानीय समुदायों के साथ सहयोग करें ताकि उनकी कला और आजीविका को बढ़ावा मिले। यह घटना भारतीय कारीगरों के लिए एक अवसर हो सकती है, बशर्ते वैश्विक ब्रांड्स और सरकारें मिलकर उनके हितों की रक्षा करें। यह घटना वैश्विक फैशन उद्योग में सांस्कृतिक संवेदनशीलता और नैतिकता के महत्व को रेखांकित करती है। यह पहली बार नहीं है जब पश्चिमी ब्रांड्स ने भारतीय डिजाइनों को बिना श्रेय दिए अपनाया है। पहले भी, दुपट्टे को "स्कैंडिनेवियन स्कार्फ" और साड़ी को "गाउन" के रूप में पेश किया गया है। इस तरह की घटनाएं भारतीय कारीगरी को वैश्विक मंच पर ले जाती हैं, लेकिन अगर इसमें मूल कारीगरों को श्रेय या मुआवजा नहीं मिलता, तो यह उनके साथ अन्याय है।
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