UP News: KGMU ट्रॉमा सेंटर में चिकित्सा चमत्कार- 7 वर्षीय बच्चे के दिमाग से 8 सेमी कील निकालकर बचाई जान। 

लखनऊ के किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी (KGMU) ट्रॉमा सेंटर ने 29 मई 2025 को एक असाधारण चिकित्सा उपलब्धि हासिल की। एक 7 वर्षीय ....

May 30, 2025 - 12:49
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UP News: KGMU ट्रॉमा सेंटर में चिकित्सा चमत्कार- 7 वर्षीय बच्चे के दिमाग से 8 सेमी कील निकालकर बचाई जान। 

लखनऊ के किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी (KGMU) ट्रॉमा सेंटर ने 29 मई 2025 को एक असाधारण चिकित्सा उपलब्धि हासिल की। एक 7 वर्षीय बच्चे के सिर में गर्दन के रास्ते घुसी 8 सेंटीमीटर लंबी कील को 10 घंटे की जटिल सर्जरी के बाद सफलतापूर्वक निकाला गया। यह बच्चा उत्तर प्रदेश के बलरामपुर जिले के नवाजपुर गांव का रहने वाला है और एक दुर्घटना में यह कील उसके सिर में प्रवेश कर गई थी। KGMU की ट्रॉमा सर्जरी टीम ने अपनी विशेषज्ञता और समन्वित प्रयासों से बच्चे की जान बचाई, जो अब खतरे से बाहर है और अस्पताल में डॉक्टरों की निगरानी में रिकवरी कर रहा है। यह सर्जरी चिकित्सा विज्ञान में एक मील का पत्थर साबित हुई है, जो KGMU के न्यूरोसर्जरी और ट्रॉमा विभाग की उत्कृष्टता को दर्शाती है।

16 मई 2025 को, बलरामपुर के नवाजपुर गांव का 7 वर्षीय बच्चा एक दुर्घटना का शिकार हो गया, जिसमें एक 8 सेंटीमीटर लंबी कील उसकी गर्दन के रास्ते सिर में घुस गई। यह कील बच्चे के मुंह के निचले हिस्से और तालु (palate) से होते हुए दिमाग तक पहुंच गई थी। बच्चे की हालत गंभीर थी, और उसे तत्काल बलरामपुर जिला अस्पताल ले जाया गया। वहां प्रारंभिक जांच में कील की गंभीर स्थिति का पता चला, जिसके बाद उसे तुरंत KGMU ट्रॉमा सेंटर, लखनऊ रेफर किया गया। KGMU में बच्चे की स्थिति का आकलन करने पर पता चला कि कील दिमाग के संवेदनशील हिस्से में प्रवेश कर चुकी थी, और किसी भी गलत कदम से बच्चे के ब्रेन डेड होने या स्थायी न्यूरोलॉजिकल क्षति होने का खतरा था। ट्रॉमा सर्जरी विभाग ने तुरंत एक विशेषज्ञ टीम गठित की, जिसमें न्यूरोसर्जरी, ट्रॉमा सर्जरी, और एनेस्थेसिया के विशेषज्ञ शामिल थे। इस ऑपरेशन की जटिलता को देखते हुए, यह सर्जरी KGMU के शताब्दी अस्पताल के अत्याधुनिक ऑपरेशन थिएटर में की गई।

  • सर्जरी की प्रक्रिया

सर्जरी की योजना बनाने के लिए सबसे पहले बच्चे की स्थिति का गहन अध्ययन किया गया। डॉ. यदवेंद्र धीर और डॉ. निशांत वर्मा के नेतृत्व में इमेजिंग जांच, जैसे कि एक्स-रे और सीटी एंजियोग्राफी, की गईं, ताकि कील की सटीक स्थिति का पता लगाया जा सके। जांच से पता चला कि कील दिमाग के महत्वपूर्ण हिस्सों, जैसे कि सेरेबेलम और ब्रेन स्टेम के पास थी, जिसके कारण सर्जरी में अत्यधिक सावधानी की आवश्यकता थी। ऑपरेशन की शुरुआत ट्रॉमा सर्जरी टीम के विशेषज्ञों डॉ. वैभव जायसवाल, डॉ. आकांक्षा कुमारी, डॉ. लोकेश, डॉ. अर्पिता शुक्ला, और डॉ. एकता सिंह ने की। न्यूरोसर्जरी विभाग के विशेषज्ञों ने न्यूरोनेविगेशन और इंट्राऑपरेटिव न्यूरोफिजियोलॉजिकल मॉनिटरिंग का उपयोग किया, ताकि सर्जरी के दौरान दिमाग और महत्वपूर्ण नसों को कोई नुकसान न पहुंचे। सर्जरी में लगभग 10 घंटे का समय लगा, जिसमें कील को धीरे-धीरे और सावधानीपूर्वक निकाला गया। इस दौरान, बच्चे की हृदय गति, रक्तचाप, और न्यूरोलॉजिकल स्थिति की निरंतर निगरानी की गई।

सर्जरी की सफलता का एक प्रमुख कारण KGMU के विभिन्न विभागों, जैसे कि न्यूरोसर्जरी, ट्रॉमा सर्जरी, और एनेस्थेसिया, के बीच उत्कृष्ट समन्वय था। सर्जरी के बाद, बच्चे को न्यूरो-आईसीयू में स्थानांतरित किया गया, जहां उसकी स्थिति पर कड़ी नजर रखी गई। डॉक्टरों के अनुसार, बच्चा अब न्यूरो-आईसीयू से बाहर है और सामान्य वार्ड में रिकवरी कर रहा है। उसे कुछ और दिनों तक निगरानी में रखा जाएगा, और उसकी स्थिति स्थिर होने पर डिस्चार्ज किया जाएगा।

  • KGMU ट्रॉमा सेंटर

KGMU का ट्रॉमा सेंटर उत्तर भारत का एक प्रमुख चिकित्सा केंद्र है, जो गंभीर चोटों और आपातकालीन मामलों के लिए जाना जाता है। 2003 में स्थापित, यह सेंटर वर्तमान में लगभग 400 बेड की क्षमता के साथ संचालित होता है और लखनऊ के साथ-साथ अन्य जिलों और नेपाल से भी मरीजों को सेवा प्रदान करता है। सेंटर में सीटी स्कैन, अल्ट्रासाउंड, एक्स-रे, मोबाइल एक्स-रे, और पैथोलॉजी लैब जैसी सुविधाएं उपलब्ध हैं, जो इसे एक स्व-निहित इकाई बनाती हैं। ट्रॉमा सेंटर में न्यूरोसर्जरी, ऑर्थोपेडिक, सर्जरी, इमरजेंसी मेडिसिन, और पीडियाट्रिक सर्जरी जैसे विभागों के विशेषज्ञ मौजूद हैं। विशेष रूप से, न्यूरोसर्जरी विभाग न्यूरोएंडोस्कोपिक सर्जरी, न्यूरोनेविगेशन असिस्टेड सर्जरी, और मिनिमली इनवेसिव न्यूरोसर्जरी में अग्रणी है। इस सर्जरी में भी इन तकनीकों का उपयोग किया गया, जिसने बच्चे की जान बचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। बाल चिकित्सा में इस तरह की जटिल सर्जरी कई चुनौतियों के साथ आती है। बच्चे अपनी चोटों के बारे में स्पष्ट रूप से बता पाने में असमर्थ होते हैं, जिससे निदान और उपचार में विशेष विशेषज्ञता की आवश्यकता होती है। इस मामले में, कील की असामान्य स्थिति और दिमाग के संवेदनशील हिस्सों में उसका प्रवेश सर्जरी को और जटिल बना रहा था। KGMU के डॉक्टरों ने न केवल तकनीकी विशेषज्ञता का प्रदर्शन किया, बल्कि बच्चे की मनोवैज्ञानिक स्थिति को भी ध्यान में रखा, ताकि वह सर्जरी के दौरान और बाद में तनावमुक्त रहे।

KGMU ने हाल के वर्षों में बाल चिकित्सा ट्रॉमा केयर को मजबूत करने के लिए कई कदम उठाए हैं। 2023 में, भोपाल के AIIMS के सहयोग से एक समर्पित पीडियाट्रिक ट्रॉमा केयर सुविधा विकसित करने की योजना बनाई गई थी। इसके अलावा, 2024 में, KGMU ने पीडियाट्रिक ऑर्थोपेडिक इमरजेंसी विंग की स्थापना की घोषणा की, जिसमें 20 बेड और दो ऑपरेशन थिएटर होंगे। ये कदम बच्चों के लिए विशेष चिकित्सा सुविधाओं की आवश्यकता को दर्शाते हैं। इस तरह की सर्जरी में कई जोखिम शामिल थे। कील के दिमाग में प्रवेश करने से इंट्राक्रैनियल हेमरेज, न्यूरोलॉजिकल क्षति, या इंफेक्शन का खतरा था। इसके अलावा, बच्चे की कम उम्र और नाजुक शारीरिक संरचना ने सर्जरी को और चुनौतीपूर्ण बना दिया। न्यूरोसर्जरी में बच्चों के मामले वयस्कों से अलग होते हैं, क्योंकि उनके दिमाग और खोपड़ी की हड्डियां अभी पूरी तरह विकसित नहीं होती हैं। KGMU की टीम ने इन जोखिमों को कम करने के लिए न्यूरोनेविगेशन और इंट्राऑपरेटिव मॉनिटरिंग का उपयोग किया। सर्जरी के बाद, बच्चे को हाइड्रोसेफलस या अन्य जटिलताओं से बचाने के लिए विशेष देखभाल दी गई। डॉक्टरों ने यह भी सुनिश्चित किया कि सर्जरी के दौरान और बाद में बच्चे को कोई स्थायी न्यूरोलॉजिकल क्षति न पहुंचे।

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  • डॉक्टरों की भूमिका

इस सर्जरी की सफलता में KGMU के विभिन्न विभागों का समन्वय महत्वपूर्ण था। ट्रॉमा सर्जरी विभाग के प्रमुख, प्रोफेसर संदीप तिवारी, ने इस ऑपरेशन की निगरानी की और सुनिश्चित किया कि सभी संसाधन उपलब्ध हों। न्यूरोसर्जरी विभाग के डॉ. बी.के. ओझा, डॉ. अनिल चंद्रा, और अन्य विशेषज्ञों ने तकनीकी विशेषज्ञता प्रदान की। इसके अलावा, एनेस्थेसिया और पीडियाट्रिक विशेषज्ञों ने बच्चे की स्थिति को स्थिर रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

  • बच्चे की रिकवरी

सर्जरी के बाद, बच्चा न्यूरो-आईसीयू में रहा, जहां उसकी स्थिति की गहन निगरानी की गई। वर्तमान में, वह सामान्य वार्ड में स्थानांतरित हो चुका है और रिकवरी की प्रक्रिया में है। डॉक्टरों के अनुसार, बच्चे की स्थिति स्थिर है, और उसे जल्द ही डिस्चार्ज किया जा सकता है, बशर्ते कोई जटिलता न हो। बच्चे की रिकवरी में न्यूरोफिजियोथेरेपी और मनोवैज्ञानिक सहायता भी प्रदान की जा रही है, ताकि वह सामान्य जीवन में वापस लौट सके। KGMU ट्रॉमा सेंटर की इस उपलब्धि ने एक बार फिर साबित किया है कि भारत के चिकित्सा संस्थान विश्वस्तरीय स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान करने में सक्षम हैं। 7 वर्षीय बच्चे के दिमाग से 8 सेंटीमीटर कील निकालने की यह सर्जरी न केवल एक चिकित्सा चमत्कार है, बल्कि यह डॉक्टरों की मेहनत, समर्पण, और तकनीकी उत्कृष्टता का प्रतीक है।

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