सुप्रीम कोर्ट के आवारा कुत्तों पर फैसले के बाद दिल्ली में हंगामा- इंडिया गेट पर प्रदर्शन, सीएम रेखा गुप्ता ने कही सख्ती की बात।
दिल्ली-एनसीआर में आवारा कुत्तों की समस्या को लेकर सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले ने एक तीखी बहस छेड़ दी है। कोर्ट ने दिल्ली सरकार और नागरिक....
दिल्ली-एनसीआर में आवारा कुत्तों की समस्या को लेकर सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले ने एक तीखी बहस छेड़ दी है। कोर्ट ने दिल्ली सरकार और नागरिक निकायों को निर्देश दिया है कि आठ सप्ताह के भीतर सभी आवारा कुत्तों को पकड़कर विशेष आश्रय स्थलों में रखा जाए, ताकि सड़कों, कॉलोनियों और सार्वजनिक स्थानों पर कोई आवारा कुत्ता न दिखे। इस फैसले के खिलाफ पशु प्रेमी और कार्यकर्ता सड़कों पर उतर आए हैं। इंडिया गेट पर पशु अधिकार कार्यकर्ताओं, कुत्तों की देखभाल करने वालों और पशु प्रेमियों ने प्रदर्शन किया, जिसे दिल्ली पुलिस ने बीच में ही रोक दिया और कई प्रदर्शनकारियों को हिरासत में लिया। इस बीच, दिल्ली की मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश का स्वागत करते हुए कहा कि आवारा कुत्तों का आतंक खत्म करने के लिए इस आदेश को सख्ती से लागू किया जाएगा।
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला दिल्ली-एनसीआर में कुत्तों के हमलों और रेबीज के बढ़ते मामलों के बाद आया है। कोर्ट ने इस स्थिति को "अत्यंत गंभीर" बताते हुए, दिल्ली सरकार, नगर निगम (MCD), और नई दिल्ली नगर पालिका परिषद (NDMC) को 5,000 कुत्तों के लिए आश्रय स्थल तैयार करने और नसबंदी व टीकाकरण के लिए पर्याप्त कर्मचारी तैनात करने का निर्देश दिया। कोर्ट ने यह भी आदेश दिया कि एक हेल्पलाइन शुरू की जाए, जहां कुत्तों के काटने की शिकायतें दर्ज की जा सकें, और शिकायत के चार घंटे के भीतर संबंधित कुत्ते को पकड़ा जाए। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि इस प्रक्रिया में बाधा डालने वाले किसी भी व्यक्ति या संगठन के खिलाफ अवमानना की कार्रवाई शुरू की जाएगी। इस आदेश का उद्देश्य बच्चों और बुजुर्गों को कुत्तों के हमलों से बचाना है, विशेष रूप से रेबीज जैसे जानलेवा रोग से, जिसने हाल के महीनों में कई जिंदगियों को प्रभावित किया है। आंकड़ों के अनुसार, दिल्ली में लगभग दस लाख आवारा कुत्ते हैं, जिनमें से केवल 4.7 लाख की नसबंदी की गई है। इस साल, कुत्तों के काटने के 35,000 से अधिक मामले दर्ज किए गए, और रेबीज से 54 लोगों की मृत्यु हुई। एक छह वर्षीय बच्ची, चावी शर्मा, की रेबीज से मृत्यु ने इस मुद्दे को और गंभीर बना दिया। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले का स्वत: संज्ञान लिया, जब एक समाचार रिपोर्ट में दिल्ली-एनसीआर में कुत्तों के हमलों और रेबीज से होने वाली मौतों की बढ़ती संख्या को उजागर किया गया। कोर्ट ने कहा कि बच्चों और बुजुर्गों को किसी भी कीमत पर रेबीज का शिकार नहीं बनने देना चाहिए, और इस दिशा में तत्काल कार्रवाई की आवश्यकता है।
हालांकि, इस फैसले ने पशु अधिकार कार्यकर्ताओं और कुत्ता प्रेमियों के बीच तीव्र विरोध को जन्म दिया है। इंडिया गेट पर हुए प्रदर्शन में सैकड़ों लोग शामिल हुए, जिनमें पशु प्रेमी, देखभालकर्ता, और कार्यकर्ता शामिल थे। उन्होंने तख्तियां और मोमबत्तियां लेकर कोर्ट के फैसले को "अमानवीय" और "अवैज्ञानिक" करार दिया। प्रदर्शनकारियों का कहना था कि दिल्ली में दस लाख कुत्तों को आश्रय स्थलों में रखना व्यवहारिक रूप से असंभव है और इससे कुत्तों को भारी पीड़ा और अराजकता का सामना करना पड़ेगा। PETA इंडिया की सीनियर डायरेक्टर ऑफ वेटरनरी अफेयर्स, डॉ. मिनी अरविंदन, ने इस फैसले की आलोचना करते हुए कहा कि कुत्तों को जबरन हटाने और "जेल में बंद करने" से न तो कुत्तों की आबादी कम होगी, न ही रेबीज के मामले घटेंगे। उन्होंने जोर देकर कहा कि नसबंदी और टीकाकरण ही इस समस्या का एकमात्र वैज्ञानिक समाधान है।
पूर्व केंद्रीय मंत्री और पशु अधिकार कार्यकर्ता मेनका गांधी ने भी इस फैसले को "अप्रायोगिक" और "आर्थिक रूप से असंभव" बताया। उन्होंने कहा कि दिल्ली में तीन लाख कुत्तों को आश्रय स्थलों में रखने के लिए 3,000 पाउंड बनाने होंगे, जिनमें जल निकासी, पानी, शेड, रसोई, और चौकीदार की व्यवस्था हो। इसके लिए लगभग 15,000 करोड़ रुपये की आवश्यकता होगी, जो दिल्ली सरकार के पास उपलब्ध नहीं है। उन्होंने यह भी चेतावनी दी कि कुत्तों को हटाने से अन्य समस्याएं, जैसे चूहों और बंदरों की संख्या में वृद्धि, उत्पन्न हो सकती हैं। मेनका गांधी ने इस आदेश को "गुस्से में दिया गया फैसला" करार देते हुए कहा कि यह न केवल कुत्तों के लिए क्रूर है, बल्कि यह दिल्ली की पारिस्थितिकी संतुलन को भी नुकसान पहुंचाएगा। इंडिया गेट पर प्रदर्शन के दौरान, दिल्ली पुलिस ने सुरक्षा कारणों का हवाला देते हुए कई प्रदर्शनकारियों को हिरासत में लिया। पुलिस ने प्रदर्शनकारियों के खिलाफ भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 223 (सार्वजनिक सेवक द्वारा विधिवत आदेश की अवहेलना) के तहत प्राथमिकी दर्ज की। एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने बताया कि स्वतंत्रता दिवस की तैयारियों के कारण इंडिया गेट पर किसी भी तरह के जमावड़े की अनुमति नहीं थी, और प्रदर्शनकारियों ने बार-बार चेतावनी के बावजूद नियमों का उल्लंघन किया। कुछ प्रदर्शनकारियों ने आरोप लगाया कि पुलिस ने उन्हें शांतिपूर्ण प्रदर्शन करने से रोका और जबरन हिरासत में लिया। एक प्रदर्शनकारी, तारिणी, ने हिंदुस्तान टाइम्स को बताया, "हमें विरोध करने की इजाजत नहीं दी जा रही है। हम सिर्फ मोमबत्ती लेकर शांतिपूर्वक खड़े थे, लेकिन पुलिस ने हमें वहां से हटा दिया।"
दिल्ली की मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता ने इस फैसले का समर्थन करते हुए कहा कि आवारा कुत्तों का आतंक कई वर्षों से दिल्लीवासियों के लिए परेशानी का सबब बना हुआ है। उन्होंने आश्वासन दिया कि दिल्ली सरकार जल्द ही एक नीति बनाएगी और सुप्रीम कोर्ट के आदेश को योजनाबद्ध तरीके से लागू करेगी। दिल्ली के विकास मंत्री कपिल मिश्रा ने भी इस कदम का स्वागत किया और कहा कि यह शहर को रेबीज और आवारा जानवरों के डर से मुक्त करेगा। हालांकि, उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि इतनी बड़ी संख्या में कुत्तों के लिए आश्रय स्थल बनाना और उनकी देखभाल करना एक बड़ी चुनौती होगी। सोशल मीडिया पर इस मुद्दे ने व्यापक बहस छेड़ दी है। जहां कुछ लोग कोर्ट के फैसले का समर्थन कर रहे हैं, वहीं अन्य इसे क्रूर और अव्यवहारिक बता रहे हैं। कांग्रेस सांसद कार्ति चिदंबरम ने इस आदेश का समर्थन करते हुए कहा कि यह आवारा कुत्तों के खिलाफ गंभीर और समन्वित कार्रवाई की शुरुआत है। वहीं, तृणमूल कांग्रेस के सांसद साकेत गोखले ने इसे "क्रूर और अमानवीय" करार देते हुए सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश से इस आदेश की समीक्षा करने की अपील की। लेखक और निर्देशक सिमी गरेवाल ने लोगों से एक याचिका पर हस्ताक्षर करने की अपील की, जिसमें दावा किया गया कि आश्रय स्थलों के नाम पर कुत्तों को भूखा मारा जाएगा। अभिनेता वीर दास ने दिल्लीवासियों से अपील की कि वे सड़क पर रहने वाले कुत्तों को गोद लें और स्थानीय पशु कल्याण संगठनों का समर्थन करें।
पशु अधिकार संगठन, जैसे PETA इंडिया और FIAPO, ने इस आदेश को भारत के पशु संरक्षण ढांचे, विशेष रूप से प्रिवेंशन ऑफ क्रुएल्टी टू एनिमल्स एक्ट और एनिमल बर्थ कंट्रोल नियम, 2023, का उल्लंघन बताया। उन्होंने कहा कि कुत्तों को जबरन हटाने से न केवल सामुदायिक कुत्तों को नुकसान पहुंचेगा, बल्कि यह रेबीज नियंत्रण और कुत्तों की आबादी को कम करने में भी विफल रहेगा। इन संगठनों ने दिल्ली सरकार से अपील की है कि वह नसबंदी और टीकाकरण कार्यक्रमों को और प्रभावी बनाए, क्योंकि ये उपाय पहले से ही कानून द्वारा अनिवार्य हैं।विशेषज्ञों का कहना है कि दिल्ली में आश्रय स्थलों की कमी और नसबंदी अभियानों की धीमी गति इस समस्या की जड़ में है। 2022-23 के एक सर्वेक्षण के अनुसार, दिल्ली में केवल 4.7 लाख कुत्तों की नसबंदी हुई है, जबकि कुल आबादी दस लाख के करीब है। आश्रय स्थलों की कमी और उनकी खराब स्थिति भी एक बड़ी चुनौती है। कई कार्यकर्ताओं ने चेतावनी दी है कि कुत्तों को हटाने से क्षेत्रीय विवाद बढ़ सकते हैं, और बाहरी क्षेत्रों से नए कुत्ते दिल्ली में प्रवेश कर सकते हैं, जिससे समस्या और जटिल हो जाएगी।
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